विक्रम बेताल की कहानी: किसका पुण्य बड़ा? – बेताल पच्चीसी तेईसवीं कहानी
June 17, 2024 द्वारा लिखित nripendra
रात के अंधेरे और घने जंगल में कुछ देर भटकने के बाद राजा विक्रमादित्य ने फिर से बेताल को अपनी पकड़ में ले लिया। बेताल ने हर बार की तरह कहानी सुनाने और सवालों का सिलसिला जारी रखा। बेताल ने कहानी सुनाना शुरू किया….
एक समय की बात है, मिथलावती नाम का एक नगर था। वहां गुणधिप नाम के राजा का शासन चलता था। राजा से मिलने के लिए रोजाना दूर-दूर से लोग आया करते थे। एक बार उनसे मिलने और उनकी सेवा करने के लिए किसी राज्य से एक युवक आया। युवक ने राजा से मिलने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो राजा से मिल नहीं पाया। अपने साथ युवक जो भी सामान लाया था, वो सब भी खत्म हो गया था।
एक दिन की बात है, जब राजा शिकार के लिए जंगल जाते हैं। युवक भी उनके पीछे-पीछे चला जाता है। जंगल इतना घना था कि राजा से उनके नौकर-चाकर बिछड़ जाते हैं। बस राजा और युवक साथ रह जाते हैं। जब राजा जंगल की ओर आगे बढ़ने लगते हैं, तो युवक उन्हें रोकता है। राजा उसकी तरफ देखते हुए कहते हैं, “तुम इतने कमजोर क्यों लग रहे हो।” युवक जवाब देता है, “राजन यह मेरा कर्म दोष है। मैं कई राजाओं के पास रहा हूं, जो हजारों लोगों को पालता है, लेकिन उनकी नजर कभी मुझ पर नहीं पड़ी।”
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए युवक कहता है, “राजन, छह बातें इंसान को कमजोर बनाती हैं – गलत व्यक्ति से प्रेम, बिना कारण हंसना, स्त्री से बहस करना, बुरे स्वामी के लिए काम करना, गधे पर सवारी और संस्कृत के बिना भाषा। इसके अलावा, पांच चीजें आयु, कर्म, धन, विद्या और यश व्यक्ति के जन्म के साथ ही विधाता उनके नसीब में लिख देता है। जब तक कोई पुण्य करता है, तब तक उसके पास सेवन करने के लिए बहुत से दास होते हैं। जब पुण्य कम हो जाता है, तो भाई ही भाई का दुश्मन बन जाता है, लेकिन राजन, स्वामी की सेवा का फल किसी न किसी दिन जरूर मिलता है।”
युवक की इन बातों का राजा पर बहुत असर हुआ। थोड़ी देर बाद दोनों नगर को लौट आए। राजा उस युवक को नौकरी पर रख लेते हैं।
कुछ दिन बाद युवक किस काम से बाहर जाता है। उसे रास्ते में एक मंदिर दिखाई देता है। वह अंदर जाता है और वहां स्थापित देवी की पूजा करता है। फिर वह बाहर आता है, तो उसे वहां एक सुंदर स्त्री दिखाई देती है। युवक उस स्त्री पर मोहित हो जाता है। वह स्त्री युवक से कहती है, “तुम पहले इस कुण्ड के पानी से स्नान करों, फिर तुम जो कहोगे वो मैं करूंगी।”
स्त्री की बातें सुनकर युवक कुण्ड में उतरकर गोता लगाता है। गोता लगाते ही वह अपने नगर पहुंच जाता है। फिर वह राजा से मिलकर सारी बात बताता है। युवक की बात सुनकर राजा बोलते हैं, “मुझे भी वहां ले चलो, मैं भी यह चमत्कार देखना चाहता हूं।”
फिर दोनों घोड़े पर बैठकर मंदिर की ओर चल देते हैं। मंदिर पहुंचकर वो दर्शन करते हैं और जब बाहर निकलते हैं, तो उन्हें वहां एक स्त्री मिलती है, जो राजा पर मोहित हो जाती है। स्त्री राजा से कहती है, “आप जो कहोगे मैं वही करूंगी।”
यह सुनकर राजा कहता है, “ तुम इस सेवक से शादी कर लो।” राजा की बात सुनकर स्त्री कहती है, “मुझे तो आप पसंद हो।” फिर राजा उस स्त्री से कहते हैं, “सज्जन इंसान जो कहता है, उस बात को निभाता भी है। इसलिए, तुम्हें अपनी बात का पालन करना चाहिए।” फिर उस स्त्री और युवक का विवाह हो जाता है।
इस कहानी को सुनाने के बाद बेताल बोलता है, “हे राजन, अब बताओं कि राजा और सेवक में किसका काम बड़ा हुआ।” राजा विक्रमादित्य ने कहा, “नौकर का काम बड़ा हुआ।” बेताल पूछता है कि कैसे? राजा विक्रमादित्य कहते हैं, “उपकार करना एक राजा का धर्म होता है, लेकिन जिसका धर्म नहीं था उसने उपकार किया है, तो युवक का काम बड़ा हुआ।” राजा का जवाब सुनने के बाद बेताल उड़कर फिर से जंगल के किसी पेड़ पर जाकर लटक जाता है।
कहानी से सीख:
अपने वादे से इंसान को कभी नहीं मुकरना चाहिए। सच्चे मनुष्य की पहचान यही होती है कि वो किए गए वादे को कैसे पूरा करता है। वो यह नहीं देखता कि वादा पूरा करने के लिए उसे किस चीज का त्याग करना पड़ रहा है।