Written by , (शिक्षा- बैचलर ऑफ जर्नलिज्म एंड मीडिया कम्युनिकेशन)

स्वस्थ शरीर के लिए कई पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। अगर इन पोषक तत्वों की मात्रा घट जाए, तो शरीर कई रोगों से घिर सकता है। पोषक तत्वों की कमी का ही नतीजा है मरास्मस रोग। हो सकता है कई लोगों को मरास्मस से जुड़ी जानकारी न हो। यही कारण है कि स्टाइलक्रेज का यह लेख खासतौर पर, मरास्मस, मरास्मस के कारण और साथ ही मरास्मस का इलाज से जुड़ी जानकारियों को लेकर लिखा गया है। तो मरास्मस रोग के लक्षण से मरास्मस की रोकथाम तक की सभी जरूरी जानकारियों के बारे में जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़ें।

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सबसे पहले जानते हैं कि मरास्मस रोग क्या है।

मरास्मस क्या है? – What is Marasmus in Hindi

मरास्मस कैलोरी की कमी के परिणामस्वरूप होने वाली कुपोषण की समस्या है। मरास्मस की स्थिति में शरीर के एडिपॉज टिश्यू (Adipose Tissue) और मांसपेशियों को नुकसान हो सकता है। इससे बच्चे और बड़े प्रभावित हो सकते हैं। इसकी वजह से शारीरिक वजन और कद प्रभावित हो सकता है। एनीसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की रिपोर्ट के अनुसार मरास्मस से ग्रस्त बच्चा अपनी उम्र के सामान्य बच्चे से 3 गुना अविकसित हो सकता है (1)। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मरास्मस रोग एक साल से छोटी उम्र के बच्चों में अधिक देखा जा सकता है। हालांकि, मरास्मस रोग दुर्लभ होता है। आकाल के समय या ऐसे बच्चे जिनका किसी कारण से स्तनपान अधूरा रह जाता है, उनमें इसका जोखिम देखा जा सकता है (2)। आगे जानेंगे मरास्मस रोग से जुड़ी अन्य जरूरी बातें।

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मरास्मस रोग के बारे में जानने के बाद, अब हम मरास्मस रोग के लक्षण बता रहे हैं।

मरास्मस के लक्षण – Symptoms of Marasmus in Hindi

मरास्मस सीधे तौर पर शारीरिक विकास को प्रभावित करता है। इस वजह से मरास्मस रोग के लक्षण शारीरिक तौर पर आसानी से पहचाने जा सकते हैं। मरास्मस रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं, जिनमें शामिल हैं (1) (2)

  • शारीरिक रूप से बच्चे का बहुत कमजोर होना
  • बालों का रूखा और बेजान होना
  • शरीर की त्वचा पतली, झुर्रीदार और बेजान होना
  • आंखों का बड़ा नजर आना या ड्राई आई की समस्या होना
  • मांसपेशियों में ऐंठन होना
  • अंगों में अकड़न होना
  • उम्र के हिसाब से बच्चे का कम वजन होना।
  • नाखूनों में बदलाव होना।
  • एनीमिया और रिकेट्स से मिलते-जुलते लक्षण।

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इस भाग में पढ़ें मरास्मस के कारण और इससे होने वाली जटिलताओं के बारे में।

मरास्मस रोग के कारण और जोखिम कारक – Marasmus Causes and Risk factors in Hindi

मरास्मस कुपोषण का ही एक जाना-माना और गंभीर रूप है। यह अधिकतर खाने में प्रोटीन और कैलोरी (एनर्जी) की कमी के कारण होता है। इसके अलावा, मरास्मस के कारण और जोखिम कारक नीचे विस्तार से बताए गए हैं (1) (2) (3) (4) :

  • बच्चे को गंभीर डायरिया होना
  • सांस से संबंधित संक्रमण होना
  • काली खांसी या खसरा रोग जैसे महामारी होना
  • शिशु का सही से स्तनपान न करना
  • कमजोर आर्थिक स्थिति (गरीबी)
  • भूख में कमी (Anorexia)
  • महिलाओं और बच्चों को मरास्मस का जोखिम अधिक होता है।
  • अपर्याप्त भोजन करना
  • पैरासिटिक डिजीज (परजीवी के कारण होने वाले रोग)
  • पोषक तत्वों का शरीर में अवशोषित न होने देने वाली स्वास्थ्य स्थितियां
  • ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थों की कमी
  • संक्रामण, जैसे – पायलाइटिस (गुर्दे में सूजन), ओटिटिस मीडिया (कानों में सूजन), टॉक्सेमिया (खून का विषाक्त होना)।
  • शिशु में जन्मजात रोग, जैसे – समय से पहले जन्म होना, जन्मजात हृदय रोग आदि।
  • स्वच्छता की कमी होना
  • विटामिन, आयरन, कैल्शियम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होना।
  • जरूरत से ज्यादा फैट, स्टार्च और शुगर युक्त खाद्य पदार्थ खाना।

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लक्षणों के बाद अब हम मरास्मस रोग के निदान के बारे बता रहे हैं।

मरास्मस रोग का निदान – Marasmus Diagnosis In Hindi

मरास्मस रोग का निदान करने के लिए डॉक्टर कई तकनीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं (1):

एंथ्रोपोमेट्री (शारीरिक परीक्षण) :

एंथ्रोपोमेट्री (Anthropometry) एक शारीरिक परीक्षण की विधि है। इसमें शरीर की मांसपेशियों, हड्डी और ऊतकों के बारे में जांच की जाती है। इस दौरान उम्र के अनुसार व्यक्ति का शारीरिक कद, वजन और बॉडी मास इंडेक्स को मापा जाता है। साथ ही, कमर, कूल्हों और अन्य अंगों की मोटाई, लंबाई और चौड़ाई मापी जा सकती है। शरीर में पोषक तत्वों के बारे में पता लगाने के लिए इस प्रक्रिया में मिड-अपर आर्म सरकम्फ्रेंस (MUAC – कंधे और कोहनी के बीच का हिस्सा) और बीएमआई के परिणामों पर भी ध्यान दिया जाता है (5)

लैब टेस्ट करना :

मरास्मस का पता लगाने के लिए डॉक्टर लैब टेस्ट की सलाह भी दे सकते हैं। इसमें मूत्र या रक्त जांच शामिल है। दरअसल, शरीर में किसी प्रकार के संक्रमण का पता लगाने के लिए मल-मूत्र की जांच कराने की सलाह दी जा सकती है। साथ ही पोषक तत्वों की कमी और अन्य स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पता लगाने के लिए खून की जांच कराने की सलाह भी दी जा सकती है। हीमोग्लोबिन और एनिमिया का पता लगाने के लिए, एल्ब्यूमिन (Albumin – एक प्रकार का प्रोटीन) स्तर के लिए, इलेक्ट्रोलाइट्स का स्तर के लिए और अन्य पोषक तत्वों के बारे में पता लगाने के लिए भी खून की जांच कराने की सलाह दी जा सकती है (1)

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मरास्मस रोग के कारण व लक्षण जानने के बाद, अब पढ़ें मरास्मस का इलाज क्या है।

मरास्मस का इलाज – Treatment of Marasmus in Hindi

जैसा कि हम लेख में बता चुके हैं कि मरास्मस पोषण की कमी से होने वाली स्थिति है, तो ऐसे में उचित खानपान और पोषण के जरिए इसका इलाज किया जा सकता है। मरास्मस का इलाज करने के लिए डॉक्टर नीचे बताई गई तीन विधियां अपना सकते हैं (1)

1. रिससेटेशन एंड स्टेबलाइजेशन (Resuscitation and Stabilization) :

मरास्मस में निर्जलीकरण और संक्रमण जान का जोखिम भी पैदा कर सकता है। इसलिए, रिससेटेशन एंड स्टेबलाइजेशन का चरण इसके इलाज के लिए अपनाया जा सकता है। इस चरण में मरास्मस के कारण हुए स्वास्थ्य लक्षणों का उचित उपचार किया जाता है। इसकी प्रक्रिया एक सप्ताह तक चल सकती है। इस चरण के दौरान विभिन्न स्थितियों का उपचार किया जा सकता है।

  • डिहाइड्रेशन के इलाज के लिए नसों के माध्यम से तरल पदार्थ दिया जा सकता है।
  • हाइपोवोल्मिया (Hypovolemia – खून से संबंधित विकार) की स्थिति में नसों के जरिए रक्त की पूर्ति भी की जा सकती है।
  • हाइपोथर्मिया (Hypothermia – शरीर का तापमान सामान्य से कम होना) होने पर गर्म कमरे में मरीज को रखा जा सकता है।
  • वहीं, संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन की सलाह दी जा सकती है
  • इसके अलावा, रीफीडिंग सिंड्रोम के जोखिम को रोकने के लिए, उम्र के अनुसार आहार की मात्रा और खाना खिलाने का समय निर्धारित किया जा सकता है।

2. न्यूट्रिशनल रिहैबिलिटेशन (Nutritional Rehabilitation) :

पहले चरण में मरास्मस की गंभीर जटिलताओं का इलाज करने के बाद दूसरे चरण की प्रक्रिया शुरू की जाती है। जब मरीज के शरीर में इलेक्ट्रोलाइट (तरल पदार्थ) संतुलित होने लगते हैं और उसे सामान्य भूख लगने लगती है, तो न्यूट्रिशनल रिहैबिलिटेशन का चरण शुरू किया जा सकता है। इस चरण में बच्चे के शरीर में कैलोरी की मात्रा, उचित टीकाकरण के साथ ही शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाने पर भी ध्यान दिया जा सकता है। इस प्रक्रिया का चरण 2 से 6 सप्ताह तक चल सकता है। इसके अलावा, इस चरण के दौरान बच्चे में विकासात्मक शक्ति बढ़ाने के लिए मां और बच्चे के बीच बातचीत को प्रोत्साहित किया जाता है। वहीं, वयस्कों में भी कुछ इसी प्रकार की उपचार की तकनीक अपनाई जा सकती है। यह पूरी तरह से व्यक्ति की उम्र और स्थिति पर निर्भर करता है कि व्यक्ति को इस दौरान किस प्रकार के और कितनी मात्रा में पोषक तत्व देने की आवश्यकता है।

3. रोकथाम के चरणों को पालन करना:

उपचार के बाद भी मरास्मस रोग का खतरा दोबारा से हो सकता है। इसलिए, इसे दोबारा होने से रोकने के लिए इस संबंध में मां को शिशु को स्तनपान कराने और आहार के संबंध में जरूरी जानकारी देनी जरूरी है। साथ ही, अगर बड़े लोगों में मरास्मस रोग होता है, तो उन्हें भी इलाज के दोनों चरणों के बाद तीसरे चरण का पालन करने की सलाह दी जा सकती है। इसके लिए आहार स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह लेकर उचित कैलोरी व पोषण युक्त आहार का भी सेवन किया जा सकता है।

इसके अलावा, कुछ अन्य तरीके भी हैं, जिससे मरास्मस का जोखिम कम किया जा सकता है। ये कुछ इस प्रकार हैं (1):

  • स्वच्छ पानी का इस्तेमाल करना।
  • शरीर में पोषक तत्वों की कमी न हो इसके लिए पर्याप्त मात्रा में आहार का सेवन करना
  • संक्रामक रोगों का नियंत्रण करना, आदि।

बने रहें हमारे साथ

मरास्मस रोग के दौरान क्या खाएं या क्या नहीं यह जानना भी जरूरी है।

मरास्मस में क्या खाना चाहिए – Foods to Eat for Marasmus in Hindi

शिशु या बच्चों में मरास्मस के उपचार में ब्रेस्ट मिल्क सबसे उपयुक्त आहार माना जा सकता है (4)। इसके साथ ही, कुछ अन्य पौष्टिक आहार का भी सेवन करना जरूरी होता है। इसलिए इस भाग में हम मरास्मस रोग होने पर क्या खाएं और क्या न खाएं, इसकी जानकारी दे रहे हैं।

मरास्मस रोग में क्या खाएं :

पहले जानते हैं कि मरास्मस रोग में किन चीजों का सेवन कर सकते हैं :

  • प्रोटीन युक्त खाद्य : मरास्मस प्रोटीन और एनर्जी की कमी से होने वाली कुपोषण की समस्या है (1)। ऐसे में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ शामिल किए जा सकते हैं, जैसे मछली, अंडा, दूध, सोया प्रोडक्ट, बीन, फलियां (6)। शाकाहरी प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों में, पालक, ब्रोकली, टोफू, पनीर, ड्राई फ्रूट्स शामिल का सकते हैं।
  • थियामिन (विटामिन बी1) युक्त खाद्य पदार्थ : मरास्मस रोग होने पर थियामिन (विटामिन बी1) युक्त खाद्य आहार में शामिल किए जा सकते हैं। दरअसल, मरास्मस में रिफीडिंग यानी पोषक तत्व युक्त आहार को दोबारा डाइट में शामिल किया जाता है। ऐसे में इस दौरान आहार में 60 से 80 फीसदी की मात्रा में ही कैलोरी शामिल करने की सलाह दी जा सकती है। इससे अधिक मात्रा रिफीडिंग सिंड्रोम (Refeeding Syndrome) का कारण बन सकती है। साथ ही रिफीडिंग के दौरान हाइपोफॉस्फेटेमिया (Hypophosphatemia – रक्त में फॉस्फेट का निम्न स्तर) के जोखिम को कम करने के लिए थियामिन युक्त खाद्य पदार्थों को आहार में शामिल करना आवश्यक है (1)

बता दें कि, विटामिन बी1 या थियामिन मुख्य रूप से कोशिकाओं में कार्बोहाइड्रेट को ऊर्जा में बदलने में मदद कर सकता है। यह मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में से एक है (7)। इसके लिए आहार में चावल, संतरा, दही, ओटमील, दूध, बाजरा, सेब, फलियां, के साथ ही अंडा, मछली और अन्य मांसाहारी खाद्य भी शामिल किए जा सकते हैं (8)

  • विटामिन डी युक्त खाद्य : कुछ स्थितियों में मरास्मस के कारण शरीर में विटामिन डी की भी कमी हो सकती है। इसके कारण पेट दर्द, दस्त, वजन घटाने और ऑस्टियोपीनिया या ऑस्टियोपोरोसिस जैसे हड्डी से जुड़े विकारों का भी जोखिम बढ़ सकता है (9)। ऐसे में विटामिन डी युक्त खाद्य शरीर में विटामिन डी की कमी होने के जोखिम को कम कर सकते हैं। साथ ही, इससे होने वाली स्वास्थ्य स्थितियों से बचाव करने में भी यह मदद कर सकता है। इसके लिए आहार में अंडा, मछली, दूध, मशरूम और अनाज जैसे खाद्य शामिल किया जा सकता है (10)
  • वनस्पति तेल : वनस्पति तेलों में वसा मुख्य तत्व होता है, जो कुपोषण या मरास्मस जैसी स्थिति से बचाव व उपचार में मदद कर सकती है। इसके लिए मरास्मस रोगी के आहार में नारियल तेल, ताड़ का तेल, जैतून का तेल, सूरजमुखी का तेल, मूंगफली का तेल, अलसी का तेल, सोयाबीन का तेल और मछली के तेल जैसे समृद्ध वसा वाले विभिन्न वनस्पति तेल शामिल किए जा सकते हैं (11)
  • चीनी युक्त आहार : कुपोषण की हल्की-फुल्की समस्या में ग्लूकोज, फ्रक्टोज, लैक्टोज, और सुक्रोज युक्त खाद्य शामिल किए जा सकते हैं। दरअसल, ये ऊर्जा के अच्छे स्त्रोत होते हैं (11)। ऐसे में कुपोषण की हल्की-फुल्की समस्या या शुरुआती चरण में ही व्यक्ति के आहार में चीनी युक्त आहार शामिल करना अच्छा विकल्प हो सकता है। हालांकि, ध्यान रहे कि आहार में चीनी का प्राकृतिक स्त्रोत जैसे – फल, दूध के जरिए शामिल किया जाए तो बेहतर है। मन में संशय हो तो बेहतर है इस बारे में डॉक्टरी सलाह भी ली जाए।

मरास्मस रोग में क्या न खाएं :

यहां जानिए मरास्मस में न खाने वाले खाद्य पदार्थों के बारे में:

  • लो प्रोटीन खाद्य पदार्थ : जैसे कि हमने लेख की शुरुआत में ही जानकारी दी है कि मरास्मस रोग प्रोटीन की कमी से होने वाली स्वास्थ्य स्थिति है। इसलिए मरास्मस रोग होने पर प्रोटीन की कम मात्रा वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए। इसके लिए ब्रेड, पास्ता और बिस्कुट जैसे खाद्य खाने से बचाव करना चाहिए (12)
  • जंक फूड : इसके साथ ही, डिब्बा बंद और जंक फूड खाने से भी परहेज करना चाहिए। इस तरह के खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की कमी होती है। साथ ही, इनमें शुगर और नमक की अधिक मात्रा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है (13)

नोट : मरास्मस में चीनी और नमक की मात्रा के बारे में पहले एक बार डॉक्टरी सलाह जरूर लें। खासकर, जब बात शिशु व बच्चों के आहार में नमक या चीनी को शामिल करने की हो। साथ ही मरास्मस मरीज की डाइट या डाइट चार्ट से जुड़ी अन्य जानकारियों के लिए भी डॉक्टरी सलाह लेना बेहतर विकल्प हो सकता है।

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इस भाग में जानें मरास्मस रोग होने पर कब जरूरी है डॉक्टरी उपचार।

मरास्मस के लिए डॉक्टर की सलाह कब लेनी चाहिए?

बच्चा बहुत कमजोर है या उसके शरीर की त्वचा पतली, झुर्रीदार और बेजान नजर आती है या उम्र के हिसाब से बच्चे का बहुत कम वजन है, तो ये मरास्मस के लक्षण हो सकते हैं (2)। इसलिए ऐसे कोई भी लक्षण बच्चे में दिखाई देते हैं, तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इसके अलावा, अगर आहार में उचित पोषक तत्व शामिल हैं, इसके बाद भी मरास्मस के लक्षण नजर आते हैं, तो तुरंत डॉक्टरी सलाह लें।

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लेख के आखिरी भाग में पढ़ें मरास्मस की रोकथाम कैसे करें।

मरास्मस से बचाव – Prevention Tips for Marasmus in Hindi

मरास्मस रोग पोषण की कमी से होता है। इसलिए जरूरी है कि मरास्मस की रोकथाम करने के लिए आहार में उचित पोषक तत्व शामिल किए जाए। साथ ही कुछ अन्य जरूरी बातों का ध्यान रखकर भी मरास्मस की रोकथाम की जा सकती है, जैसे:

  • उपचार के बाद रोकथाम के चरणों का पालन करें।
  • हमेशा स्वच्छ पानी और आहार खाएं।
  • डिहाइड्रेशन से बचाव के लिए उचित मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें
  • प्रतिदिन के आहार में शरीर के लिए जरूरी पोषण संबंधी डाइट शामिल करें।
  • माता-पिता बच्चे के लिए डॉक्टर से डाइट चार्ट से जुड़ी जानकारी लेकर उसमें बताए गए खाद्य पदार्थों को बच्चे के डाइट में शामिल कर सकते हैं।
  • जन्म के बाद बच्चे को नियमित स्तनपान कराएं।
  • 6 माह के होने के बाद शिशु के आहार में मां के स्तनपान के साथ ही अन्य पोषक तत्व युक्त ठोस आहार शामिल करें (14)
  • उचित समय पर बच्चों को आवश्यक टीकाकरण कराएं।
  • साफ-सफाई का ध्यान रखें।
  • भोजन को अच्छे से धोकर, उबालकर और पकाकर खाएं।
  • आहार में कैलोरी, प्रोटीन, विटामिन, शुगर और नमक की उचित मात्रा शामिल करें।
  • सब्जियों के साथ-साथ फलों को भी डाइट का हिस्सा बनाएं
  • अगर आहार के जरिए उचित कैलोरी, प्रोटीन या अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं होती है, तो डॉक्टरी सलाह पर इनके सप्लीमेंट्स का भी सेवन कर सकते हैं।

लेख में दी गई जानकारी से आप समझ गए होंगे की मरास्मस एक गंभीर रोग है। यह बच्चों के साथ ही बड़े लोगों को भी अपना शिकार बना सकता है (1)। इसलिए, मरास्मस की रोकथाम करने के लिए हमेशा पौष्टिक तत्व युक्त आहार का सेवन करें। साथ ही, लेख में बताई गए मरास्मस की रोकथाम से जुड़ी बातों का भी ध्यान रखें। इसके बाद भी अगर मरास्मस रोग के लक्षण नजर आते हैं, तो मरास्मस का इलाज कराने के लिए डॉक्टरी सलाह लें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या मरास्मस का इलाज किया जा सकता है?

हां, अगर समय रहते उचित शारीरिक पोषण पर ध्यान दिया जाए, तो मरास्मस का इलाज किया जा सकता है (1)

किसे मरास्मस होने का जोखिम अधिक हो सकता है?

मरास्मस रोग व्यस्क और बच्चों दोनों को हो सकता है, लेकिन नवजात शिशुओं खासकर 3 से 9 माह की उम्र वाले छोटे बच्चों को मरास्मस होने का जोखिम अधिक हो सकता है (3)

आपको यह कैसे पता चलेगा कि आपको मरास्मस हुआ है?

शारीरिक रूप से मरास्मस रोग के लक्षण कई होते हैं, जिनकी पहचान करके मरास्मस रोग होने की पुष्टि कर सकते हैं। इन लक्षणों में शामिल हैं (2):

  • शारीरिक रूप से बहुत कमजोर होना।
  • बालों का रूखा होना।
  • शरीर की त्वचा पतली, झुर्रीदार और बेजान होना।
  • आंखों का बड़ा नजर आना।

मरास्मस रोग किस विटामिन की कमी से होता है?

वैसे तो कई पोषक तत्वों की कमी मरास्मस रोग का कारण बन सकती हैं। हालांकि, मरास्मस रोग के पीछे प्रोटीन और कैलोरी की कमी को माना जा सकता है (1)

संदर्भ (Sources)

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  1. Marasmus
    https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK559224/
  2. MALNUTRITION AND DISEASE
    https://apps.who.int/iris/bitstream/handle/10665/42050/a58435_eng.pdf?sequence=1&isAllowed=y
  3. Marasmus
    https://www.sciencedirect.com/topics/medicine-and-dentistry/marasmus
  4. Marasmus
    https://pmj.bmj.com/content/postgradmedj/1/9/129.full.pdf
  5. Anthropometric Measurement
    https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK537315/
  6. Protein in diet
    https://medlineplus.gov/ency/article/002467.htm
  7. Thiamin
    https://medlineplus.gov/ency/article/002401.htm
  8. Thiamin
    https://ods.od.nih.gov/factsheets/Thiamin-HealthProfessional/
  9. Serum vitamin D status in children with protein-energy malnutrition admitted to a national referral hospital in Uganda
    https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4562347/
  10. Vitamin D
    https://medlineplus.gov/ency/article/002405.htm
  11. Choice of foods and ingredients for moderately malnourished children 6 months to 5 years of age
    https://www.who.int/nutrition/publications/moderate_malnutrition/FNBv30n3_suppl_paper2.pdf
  12. Low Protein Foods
    https://www.sciencedirect.com/topics/agricultural-and-biological-sciences/low-protein-foods
  13. Junk food
    https://www.healthywa.wa.gov.au/Articles/J_M/Junk-food
  14. Foods and Drinks for 6 to 24 Month Olds
    https://www.cdc.gov/nutrition/InfantandToddlerNutrition/foods-and-drinks/index.html
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Saral Jain
Saral Jainहेल्थ एंड वेलनेस राइटर
सरल जैन ने श्री रामानन्दाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, राजस्थान से संस्कृत और जैन दर्शन में बीए और डॉ.

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