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मॉनसून अपने साथ बारिश ही नहीं, कई बीमारियां भी लाता है, इसलिए इस दौरान सतर्क रहना जरूरी है। खासकर, घर में छोटे बच्चे हों, तो उन पर और ध्यान देना पड़ता है, क्योंकि मॉनसून में बच्चे तेजी से बीमार पड़ते हैं। मॉमजंक्शन इस लेख में उन्हीं बीमारियों की लिस्ट लेकर आया है, जो बच्चों को जल्दी पकड़ लेती हैं। यहां मॉनसून में होने वाली बीमारियों के साथ ही उनके कारण, लक्षण और बचाव भी बताए गए हैं।

नीचे स्क्रॉल कर जानें बरसात के मौसम में होने वाली बीमारियों की लिस्ट।

बरसात के मौसम में छोटे बच्चों को होने वाली आम बीमारियां

यहां हम ऐसी बीमारियों के नाम बता रहे हैं, जिनका खतरा बरसात के मौसम में सबसे ज्यादा बच्चों को होता है। नीचे क्रमवार जानें मॉनसून में बच्चों को होने वाली बीमारियों के कारण, लक्षण और बचाव के तरीके।

1. मलेरिया

एक रिसर्च की मानें, तो बारिश के मौसम में खासकर अगस्त से अक्टूबर के बीच मलेरिया होने की आशंका बढ़ जाती है। इस मौसम में छोटे बच्चों की तुलना में 5 से 9 वर्ष तक के बच्चों में मलेरिया होने का जोखिम दो से नौ गुना अधिक हो जाता है (1)।

लेख में आगे हमने मलेरिया के कारण, लक्षण और बचाव के बारे में बताया है।

मलेरिया के कारण :

बच्चों को मलेरिया प्रोटोजोआ परजीवी संक्रमण के कारण होता है। यह एनोफिलीज नामक मच्छर के काटने से फैलता है, जो एक मादा मच्छर होती है (2)। यह परजीवी शरीर में खून के माध्यम से लीवर तक पहुंचते हैं। यहां ये परिपक्व होकर पैरासाइट्स के एक अन्य रूप को पैदा करते हैं, जिसे मेरोजोइटस कहा जाता है।

यहां से ये परजीवी रक्त प्रवाह में प्रवेश करके लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करने लगते हैं। इसके अलावा, मलेरिया मां से उसके होने वाले बच्चे को भी हो सकता है। यही नहीं, यह बीमारी ब्लड ट्रांसफ्यूजन यानी रक्तदान से भी फैलती है (3)।

मलेरिया के लक्षण :

बच्चों में मलेरिया के लक्षण कुछ इस प्रकार दिखाई दे सकते हैं (3) ( 4)।

  • बुखार और सिरदर्द
  • एनीमिया की समस्या
  • मल में खून आना
  • ठंड लगना
  • पेट में इंफेक्शन
  • पसीना आना
  • बेहोश होना
  • दौरा पड़ना
  • पीलिया की समस्या
  • मांसपेशियों में दर्द होना
  • मतली और उल्टी

मलेरिया से बचाव :

निम्नलिखित बातों का ध्यान रखकर बच्चों को मलेरिया से बचाया जा सकता है (3):

  • घर और उसके आसपास साफ-सफाई रखें, ताकि वहां मच्छर पैदा न हों।
  • बच्चों को मच्छर से बचाने के लिए कमरे में मच्छर भगाने वाले हर्बल लिक्विड का इस्तेमाल करें।
  • पूरी आस्तीन वाले कपड़े पहनाकर ही शिशु को बाहर लेकर जाएं।
  • बच्चों को मॉस्क्यूटो बाइट से बचाने के लिए मॉस्क्यूटो रेपलेंट क्रीम का उपयोग करें।
  • बच्चे के साथ अगर कोई ट्रिप प्लान कर रहे हैं, तो उससे पहले डॉक्टर से मिलें। डॉक्टर मलेरिया से बचाव के लिए एंटी मलेरियल दवाइयां दे सकता है।

2. टाइफाइड

बरसात के मौसम में होने वाली बीमारियों की लिस्ट में टाइफाइड का भी नाम शामिल है। इस बात की जानकारी इससे संबंधित एक शोध से होती है। उसमें बताया गया है कि मॉनसून में टाइफाइड के मामले सबसे अधिक देखे जाते हैं। छोटे बच्चों में इस रोग के होने का सबसे अधिक जोखिम होता है (5)।

आगे जानें टाइफाइड के कारण, लक्षण और बचाव के तरीकों के बारे में।

टाइफाइड के कारण :

टाइफाइड आमतौर पर साल्मोनेला टाइफी नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह एक प्रकार का संक्रमण है, जो दस्त और रैशेज का कारण बन सकता है। यह बच्चों में निम्नलिखित माध्यमों से फैल सकता है (6):

  • अगर बच्चा एस टाइफी नामक बैक्टीरिया से संक्रमित खाद्य पदार्थों का सेवन करता है।
  • एस टाइफी बैक्टीरिया से संक्रमित पेय पदार्थों के सेवन से भी बच्चों को टाइफाइड हो सकता है।
  • संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से भी बच्चों को टाइफाइड हो सकता है। संक्रमित व्यक्ति के मल में यह बैक्टीरिया लंबे समय तक रह सकता है।

टाइफाइड के लक्षण :

बच्चों को टाइफाइड होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं (7):

टाइफाइड से बचाव :

नीचे बताए गए बातों का ध्यान रखकर बच्चों को टाइफाइड से बचाया जा सकता है (8) (6):

  • शिशु को टाइफाइड का टीका जरूर लगवाएं।
  • बच्चों को बर्फ या फिर उससे बने किसी भी पेय या खाद्य पदार्थ का सेवन न करवाएं।
  • बच्चों को भोजन गर्म और अच्छी तरह से पका कर ही दें।
  • ऐसे कच्चे फलों और सब्जियों का सेवन न कराएं, जिसे छिला नहीं जा सकता।
  • खाने से पहले बच्चों को साबुन और पानी से हाथ धोने के लिए कहें।
  • बच्चों को स्ट्रीट वेंडर्स के खाद्य व पेय पदार्थ तभी दें जब वो गर्म हो।
  • बच्चों को पिलाने के लिए केवल बोतलबंद पानी का ही इस्तेमाल करें। अगर नल के पानी का इस्तेमाल करना चाह रहे हैं. तो उसे कम-से-कम एक मिनट के लिए उबाल लें।
  • नॉन कार्बोनेटेड पानी की तुलना में बोतलबंद कार्बोनेटेड पानी अधिक सुरक्षित होता है।
  • यात्रा के दौरान बच्चों को केवल उबला हुआ ही खाना खिलाएं और बोतलबंद पानी पिलाएं।

3. दस्त

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) द्वारा प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, मॉनसून में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में दस्त होने का खतरा बढ़ जाता है (9)। यही वजह है कि बरसात के मौसम में होने वाली बीमारियों की लिस्ट में दस्त को भी शामिल किया गया है।

आगे स्क्रॉल कर जानें बच्चों को दस्त होने के कारण, लक्षण और बचाव के टिप्स।

दस्त के कारण :

दस्त की समस्या में बच्चों का मल एकदम पानी जैसा पतला हो जाता है। संक्रमण को इसका मुख्य कारण माना जाता है (10)। इसके अलावा, दस्त के कुछ अन्य कारण इस प्रकार हैं (11) :

  • दूषित भोजन या पानी के माध्यम से बैक्टीरिया के फैलने से।
  • फ्लू, नोरोवायरस या रोटावायरस जैसे वायरस। रोटावायरस बच्चों में दस्त का सबसे आम कारण है।
  • दूषित भोजन या पानी में पाए जाने वाले छोटे परजीवों के कारण।
  • कुछ दवाओं की वजह से भी दस्त की समस्या हो सकती है।
  • ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन, जिन्हें पचाने में समस्या हो रही हो। उदाहरण के लिए लैक्टोज इंटॉलरेंस।
  • पेट, छोटी आंत या कोलन को प्रभावित करने वाले रोग, जैसे क्रोहन रोग।

दस्त के लक्षण :

बच्चों को दस्त होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं (12):

  • मल में खून आना
  • ठंड लगना
  • बुखार आना
  • अनियंत्रित मल त्याग
  • मतली और उल्टी की समस्या
  • पेट में दर्द या ऐंठन

दस्त से बचाव :

यहां बताए गए उपायों से बच्चों को दस्त की समस्या से बचाया जा सकता है (11):

  • बच्चों को पीने के लिए और ब्रश करने के लिए हमेशा बोतलबंद या फिर प्यूरीफाइड वाटर ही दें।
  • अगर नल का पानी इस्तेमाल किया जा रहा है तो उसे उबालना न भूलें या फिर उसमें आयोडीन की गोलियां डालें।
  • बच्चों को भोजन देने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि वह अच्छी तरह से पका हुआ और गर्म हो।
  • इसके अलावा, बच्चों को बिना धुले या बिना छिलके वाले कच्चे फलों और सब्जियों को देने से बचें।

4. कॉलरा या हैजा

बरसात के मौसम में बच्चे कॉलरा यानी हैजा की चपेट में भी जल्दी आ जाते हैं। दरअसल, हैजा मॉनसून की बारिश से पहले और बाद में दोनों समय हो सकता है। इस मौसम में नवजात शिशुओं के साथ-साथ पांच साल से कम उम्र तक के बच्चों को हैजा होने का खतरा अधिक होता है (13)।

लेख में नीचे हमने हैजा के कारण, लक्षण और बचाव के तरीके बताए हैं।

हैजा के कारण :

हैजा मुख्यतौर पर विब्रियो कॉलरा बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बैक्टीरिया एक प्रकार का विष छोड़ता है, जिससे आंतों की कोशिकाओं में पानी की मात्रा बढ़ जाती है। पानी में वृद्धि होने पर गंभीर दस्त हो सकता है। इस प्रकार के संक्रमण का फैलाव हैजा बैक्टीरिया से संक्रमित खाद्य व पेय पदार्थों के सेवन से हो सकता है (14)।

हैजा के लक्षण :

हैजा के लक्षण हल्के और गंभीर दोनों तरह के हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं (14):

  • पेट में ऐंठन होना
  • मुंह का सूखना
  • रूखी त्वचा
  • अधिक प्यास लगना
  • आंखें का धसना और आंसुओं का सूखना
  • सुस्ती लगना
  • पेशाब कम आना
  • मतली की समस्या
  • निर्जलीकरण होना
  • हृदय गति का बढ़ना
  • शिशु के सिर के मध्य भाग का धंसना (फॉन्टानेल)
  • असामान्य नींद या थकान लगना
  • उल्टी होना
  • पानी जैसे दस्त का अचानक आना
  • दस्त से खराब गंध आना

हैजा से बचाव :

इन बातों का ध्यान रखकर हैजा के प्रकोप से बच्चों को बचाया जा सकता है (13):

  • बच्चों को हैजा का टीका जरूर लगवाएं
  • घर और आसपास के इलाकों को साफ रखें
  • समय-समय पर बच्चों के हाथ धोते रहें
  • बच्चों को साफ और सुरक्षित खाद्य व पेय पदार्थों ही दें।

5. हेपेटाइटिस-ए

बच्चों को हेपेटाइटिस भी बरसात के मौसम में अधिक होता है। इस विषय पर हुए एक शोध में पाया गया है कि एचएवी (हेपेटाइटिस-ए वायरस) संक्रमण का प्रभाव मौसम के अनुसार होता है। मॉनसून और मॉनसून के बाद के मौसम यानी जुलाई से नवंबर के बीच यह अधिक प्रभावी होता है। प्री-मॉनसून सीजन मतलब दिसंबर से जून तक यह थोड़ा कम प्रभावी होता है (15)।

आगे हम हेपेटाइटिस-ए के कारण, लक्षण और उससे बचाव के तरीके बताएंगे।

हेपेटाइटिस के कारण :

बच्चों को हेपेटाइटिस होने का एक प्रमुख कारण हेपेटाइटिस-ए वायरस यानी एचएवी संक्रमण को माना गया है। यह वायरस संक्रमित बच्चे के मल और खून में पाया जाता है। बच्चों में यह वायरस निम्नलिखित कारणों से फैल सकता है (16):

  • अगर बच्चा संक्रमित व्यक्ति के रक्त या मल के संपर्क में आता है।
  • एचएवी से संक्रमित खून या मल से दूषित खाद्य व पेय पदार्थ का सेवन। फल, सब्जियां, शेलफिश, बर्फ और पानी इस रोग को फैलाने के प्रमुख कारक माने जाते हैं।
  • ऐसे किसी व्यक्ति के द्वारा बनाए गए भोजन को खाना, जो पहले से इस वायरस से संक्रमित है और बाथरूम का उपयोग करने के बाद ठीक से हाथ नहीं धोता है।
  • अगर बच्चा किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आता है, जो बाथरूम का उपयोग करने के बाद अपने हाथ नहीं धोता है।
  • हेपेटाइटिस-ए का टीका लगाए बिना दूसरे देश की यात्रा करना से।

हेपेटाइटिस-ए के लक्षण :

अगर बात करें हेपेटाइटिस-ए के लक्षणों की तो 6 वर्ष और उससे कम उम्र के अधिकांश बच्चों में कोई लक्षण नहीं होते हैं। इसका मतलब यह है कि बच्चे को यह बीमारी होती है, लेकिन हो सकता है कि इस बारे में माता पिता को पता ही न चले। वहीं, अगर इसके लक्षण दिखाई देते हैं, तो वह संक्रमण के लगभग 2 से 6 सप्ताह बाद। इसके लक्षण बच्चों में फ्लू जैसे हो सकते हैं या फिर बहुत हल्के लक्षण दिख सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं (16) :

  • पेशाब का रंग गहरा होना
  • थकान महसूस होना
  • भूख में कमी होना
  • बुखार लगना
  • मतली और उल्टी की समस्या होना
  • मल का पीला होना
  • पेट दर्द (लिवर के ऊपर)
  • त्वचा और आंखों का पीला होना (पीलिया की समस्या)

हेपेटाइटिस-ए से बचाव :

इन बातों का ध्यान रख बच्चों को हेपेटाइटिस-ए से बचाया जा सकता है (16) :

  • बच्चे को हेपेटाइटिस ए का टीका लगवाकर एचएवी के संक्रमण से बचाया जा सकता है।
  • हेपेटाइटिस ए का टीका लगाने की सलाह सभी बच्चों को उनके पहले और दूसरे जन्मदिन यानी 12 से 23 महीने की उम्र के बीच दी जाती है।
  • अगर माता-पिता उन देशों की यात्रा कर रहे हैं, जहां बीमारी का प्रकोप पहले से ही है, तो खुद को और बच्चे को हेपेटाइटिस ए का टीका जरूर लगवाएं।
  • बच्चा हेपेटाइटिस ए के संपर्क में आया है, तो इम्युनोग्लोबुलिन थेरेपी के साथ इलाज के बारे में बच्चे के डॉक्टर से बात करें।

6. इन्फ्लूएंजा

बरसात के मौसम में होने वाली बीमारियों की लिस्ट में इन्फ्लूएंजा का नाम भी शामिल है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध की मानें, तो यह बीमारी शिशुओं, छोटे बच्चों के साथ-साथ बुजुर्गों को जल्दी अपनी चपेट में लेती है। बरसात के मौसम में इसका खतरा अधिक होता है (17)।

अब इसके फैलने के कारण, लक्षण और बचाव के बारे में पढ़िए।

इन्फ्लूएंजा के कारण :

इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण होने वाला सांसों का संक्रमण है। यह वायरस नाक और गले में पाया जाता है। जब बच्चे अपनी नाक, आंख और मुंह को छूते हैं या फिर खेलने के दौरान एक-दूसरे को छूते हैं, तो फ्लू के कीटाणु आसानी से फैल जाते हैं। इसके अलावा, अन्य कई माध्यमों से भी यह वायरस फैल सकता है, जैसे (18) :

  • इन्फ्लूएंजा वायरस हवा में बूंदों के माध्यम से फैल सकता है। ये बूंदें खांसने या छींकने के दौरान नाक और मुंह से निकलती हैं और हवा में फैल जाती हैं। हवा से फिर दूसरों के मुंह या नाक तक पहुंचती है।
  • अगर बच्चा फ्लू से पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में आता है। दरअसल, वायरस नाक या मुंह को छूने, नाक पोंछने, खांसने या छींकने पर हाथों में आ सकता है। फिर यह बच्चों तक पहुंचता है।
  • पीड़ित व्यक्ति द्वारा छूए गए खिलौने या फर्नीचर जैसी किसी वस्तु को बच्चा छूता है, तो उसके माध्यम से भी यह वायरस फैल सकता है। इन्फ्लूएंजा के वायरस खिलौने, डोर नॉक्स, कंप्यूटर कीबोर्ड या अन्य कठोर वस्तुओं पर कई घंटों तक जीवित रहते हैं।
  • देखभाल करने वालों के हाथों के माध्यम से भी इन्फ्लूएंजा वायरस बच्चों तक पहुंच सकता है।

इन्फ्लूएंजा के लक्षण :

इन्फ्लूएंजा से पीड़ित बच्चों में कई लक्षण दिख सकते हैं, जो इस प्रकार हैं (18) :

  • नवजात शिशुओं को तेज बुखार होना। शिशुओं में इसके अलावा कोई अन्य लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।
  • छोटे बच्चों के शरीर का तापमान आमतौर पर 39.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है और बुखार के दौरान उन्हें दौरे भी पड़ सकते हैं।
  • फ्लू छोटे बच्चों में गले और वोकल कॉर्ड का संक्रमण, निमोनिया और ब्रोंकियोलाइटिस (छोटे वायु मार्ग के संक्रमण) का कारण बन सकता है।
  • छोटे बच्चों को पेट खराब, उल्टी, दस्त और पेट दर्द की भी समस्या हो सकती है।
  • कान दर्द और लाल आंखें भी फ्लू के आम लक्षण माने गए हैं।
  • मांसपेशियों में सूजन, गंभीर पैर या पीठ दर्द।

इन्फ्लूएंजा से बचाव :

इन्फ्लूएंजा को फैलने से रोकने के लिए हाथ धोना सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। आगे समझिए कि कब-कब हाथ धोना जरूरी है, ताकि इन्फ्लूएंजा से बचा जा सके (18)।

  • सांसों के संक्रमण वाले किसी भी व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने के बाद हाथों को धोएं।
  • बच्चे की नाक पोंछने के बाद अपने और अपने बच्चे के हाथों को धोएं।
  • खांसने और छींकने के बाद भी हाथों को धोएं।
  • अगर पानी या साबुन उपलब्ध न हों, तो किसी गीले हैंड वाइप्स या अल्कोहल आधारित हैंड वॉश का उपयोग करें। ध्यान रखें कि हैंड वॉश बच्चे की पहुंच से दूर हो, ताकि वह उसे मुंह में न डाल सके। यह उनके लिए हानिकारक हो सकता है।
  • इन्फ्लूएंजा से पीड़ित किसी व्यक्ति द्वारा छुई वस्तुओं को छूने के बाद हाथों को अच्छी तरह से धोएं।
  • बच्चों को सिखाएं कि छींकते या खांसते समय अपनी नाक और मुंह को टिश्यू से ढकें। फिर इस्तेमाल किए गए टिश्यू को तुरंत कूड़ेदान में डालें और अपने हाथ धोएं।
  • यदि परिवार के किसी सदस्य को फ्लू है, तो बीमार व्यक्ति द्वारा छुई गई वस्तु (जैसे- खिलौने, बाथरूम के नल और दरवाजे के हैंडल आदि) को साफ करना न भूलें।
  • अगर बच्चा डे-केयर जाता है, तो जब तक वो ठीक न हो जाए उसे डेकेयर या स्कूल से दूर रखें।

  7. चिकनगुनिया

चिकनगुनिया की गिनती भी मॉनसून के मौसम में तेजी से फैलने वाली बीमारियों में की जाती है (19)। यही कारण है कि बच्चों को मॉनसून के दौरान होने वाली बीमारियों की लिस्ट में इसे भी शामिल किया गया है।

आगे स्क्रॉल करके पढ़िए चिकनगुनिया के कारण, लक्षण और बचाव के तरीके।

चिकनगुनिया के कारण :

चिकनगुनिया एक वायरस है, जो डेंगू और जीका वायरस फैलाने वाले मच्छरों के काटने से फैलता है। दुर्लभ मामलों में यह जन्म के समय मां से नवजात को भी हो सकता है। इसके अलावा, संक्रमित खून से भी ये बीमारी फैल सकती है (20)।

चिकनगुनिया के लक्षण :

चिकनगुनिया के लक्षण संक्रमित मच्छर द्वारा काटे जाने के 3 से 7 दिन बाद दिखाई दे सकते हैं। इसके सबसे आम लक्षणों में बुखार और जोड़ों का दर्द शामिल है। इसके कुछ अन्य लक्षण इस प्रकार हैं (21) :

  • सिरदर्द होना
  • जोड़ों में सूजन
  • मांसपेशियों में दर्द होना
  • मतली की समस्या
  • रैशेज होना

सामान्य तौर पर चिकनगुनिया के लक्षण फ्लू के समान ही होते हैं, जो कुछ मामलों में गंभीर भी हो सकते हैं। हां, आमतौर पर यह घातक नहीं होते हैं। ज्यादातर लोग एक हफ्ते में इससे ठीक हो जाते हैं। कुछ को महीनों या उससे अधिक समय तक जोड़ों का दर्द हो सकता है।

चिकनगुनिया से बचाव :

चिकनगुनिया से बचाव के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है। इस वायरस से बच्चों को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है कि उन्हें मच्छरों के काटने से बचाया जाए। इसके अलावा निम्नलिखित उपायों को भी अपनाकर बच्चों को चिकनगुनिया से बचाया जा सकता है (21) :

  • बच्चों को पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहनाएं ताकि उन्हें मच्छर न काटे।
  • मच्छर से बचने के लिए इंसेक्ट रेपेलंट का इस्तेमाल करें।
  • अगर सनस्क्रीन का उपयोग कर रहे हैं, तो उसके बाद इंसेक्ट रेपेलंट का इस्तेमाल करें।
  • घर की खिड़कियां बंद करके सोएं, ताकि मच्छर घर में न आ पाए।
  • घर में या घर के बाहर कहीं भी कंटेनर और बाल्टी में पानी जमा न होने दें।
  • अगर घर के बाहर सो रहे हैं, तो मच्छरदानी लगाकर ही सोएं।

8. डेंगू

डेंगू मच्छर से फैलने वाली वायरल बीमारी है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, बरसात के समय डेंगू तेजी से फैलता है। इसकी चपेट में बच्चे भी आसानी से आ जाते हैं (22)।

आगे जानें डेंगू के कारण, लक्षण और बचाव के तरीकों के बारे में।

डेंगू के कारण :

डेंगू भी वायरस के कारण होने वाला संक्रमण है (23)। ये वायरस डेन -1, डेन -2, डेन -3 और डेन -4 के नाम से जाने जाते हैं। इन चार वायरस में से किसी एक के भी संक्रमण के कारण डेंगू हो सकता है (24)। इन वायरस से संक्रमित मच्छर किसी को काट ले, तो उसे डेंगू हो जाता है। डेंगू एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता (23)।

डेंगू के लक्षण :

डेंगू के हल्के लक्षण अन्य बीमारियों के संकेत जैसे लग सकते हैं। बुखार के साथ डेंगू के सबसे आम लक्षण निम्न हैं (24) (25)।

  • मतली और उल्टी की समस्या
  • रैशेज होना
  • मांसपेशियों, जोड़ों या फिर हड्डियों में दर्द होना
  • आंखों में दर्द (खासकर आंखों के पीछे)
  • शरीर के तापमान का अधिक बढ़ना
  • सिर में तेज दर्द होना
  • भूख में कमी 
  • अस्वस्थ महसूस करना

डेंगू के लक्षण आमतौर पर 2 से 7 दिन तक रहते हैं। ज्यादातर मामलों में करीब एक हफ्ते बाद लक्षण ठीक हो जाते हैं।

डेंगू से बचाव :

यहां बताई गई बातों को ध्यान में रखकर डेंगू के प्रकोप से बच्चों को बचाया जा सकता है (26)।

  • बच्चों को मच्छर के काटने से बचाएं। इसके लिए अपने बच्चे को ऐसे कपड़े पहनाएं, जो हाथ और पैर को पूरी तरह से ढकते हों।
  • स्ट्रोलर और बेबी कैरियर को मच्छरदानी से ढककर रखें।
  • अगर बच्चे के लिए इंसेक्ट रेपेलंट का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो निम्न बातों का ध्यान रखें:

 (i)  इंसेक्ट रेपेलंट के पैकेट पर दिए गए निर्देशों का पालन करें।

 (ii)  3 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए नींबू, यूकेलिप्टस या पैरा-मेंथेन-डायोल के तेल वाले उत्पादों का उपयोग न करें।

 (iii) बच्चे के हाथ, आंख, मुंह और जली व कटी त्वचा पर इंसेक्ट रेपेलंट न लगाएं।

9. गैस्ट्रोएंटेराइटिस

जैसा कि हमने लेख में बताया कि संक्रमण मुख्य रूप से बरसात के मौसम में फैलते हैं। इनमें गैस्ट्रोएंटेराइटिस भी शामिल है। यह पेट में होने वाला फ्लू है, जिसके मामले बरसात में ज्यादा आते हैं (27)। गैस्ट्रोएंटेराइटिस को स्टमक फ्लू के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्य रूप से एक वायरस के कारण होता है जो पेट और आंत के संक्रमण की वजह बनता है (28)।

नीचे हम गैस्ट्रोएंटेराइटिस के कारण, लक्षण और बचाव के तरीकों को बता रहे हैं।

गैस्ट्रोएंटेराइटिस के कारण :

गैस्ट्रोएंटेराइटिस तेजी से फैलने वाली बीमारी है। इसके फैलने के पीछे निम्नलिखित चीजें जिम्मेदार हो सकती हैं (29) :

  • वायरस
  • बैक्टीरिया
  • बैक्टीरिया के विषाक्त पदार्थ
  • परजीवी
  • कुछ खास प्रकार के रसायन
  • कुछ दवाओं के उपयोग से

गैस्ट्रोएंटेराइटिस के लक्षण :

गैस्ट्रोएंटेराइटिस होने पर निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं। हां, जरूरी नहीं कि बच्चों में सभी लक्षण दिखाई दें। आगे जानें  गैस्ट्रोएंटेराइटिस के सामान्य लक्षण (29) :

  • भूख में कमी
  • सूजन होना
  • जी मिचलाना
  • उल्टी होना
  • पेट में ऐंठन
  • पेट में दर्द
  • दस्त की समस्या
  • मल में खून का आना (कुछ मामलों में)
  • मल में मवाद का निकलना ( कुछ मामलों में)
  • अस्वस्थ महसूस करना, जैसे सुस्ती या शरीर में दर्द

गैस्ट्रोएंटेराइटिस से बचाव :

गैस्ट्रोएंटेराइटिस के प्रसार को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं (29) :

  • खाने से पहले और शौचालय का उपयोग करने के बाद घर के सभी सदस्यों का अपने हाथों को अच्छी तरह से धोना।
  • शौचालय के बाद और खाने से पहले व बाद में बच्चे के हाथों को गुनगुने पानी और साबुन से धुलाना।
  • बच्चों को खाना खिलाने से पहले और उसके कपड़े बदलने के बाद भी अपने हाथ धोना।
  • खिलौने, टॉयलेट सीट, टेबल और नल को अच्छी तरह से साफ करें, ताकि इनके माध्यम से संक्रमण न फैले।
  • बच्चे में गैस्ट्रोएंटेराइटिस के लक्षण दिखते हैं, तो उसे 48 घंटे बाद तक दूसरों से दूर रखें।
  • अगर गैस्ट्रोएंटेराइटिस के लक्षण 48 घंटे में भी कम नहीं होते, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।
  • बच्चे को चाइल्ड केयर या स्कूल में भी बार-बार हाथ धोने के लिए कहें।

10. निमोनिया

बच्चों को मॉनसून के मौसम में निमोनिया होने का भी खतरा होता है। इससे जुड़े एक रिसर्च में भी जिक्र मिलता है कि मलेरिया और डायरिया के साथ-साथ निमोनिया भी बारिश में ज्यादा होता है (30)। यही कारण है कि बरसात के मौसम में इससे बचाव के लिए ध्यान रखना जरूरी है।

अब पढ़िए निमोनिया के कारण, लक्षण और बचाव के टिप्स।

निमोनिया के कारण :

निमोनिया फेफड़ों का संक्रमण है, जो बैक्टीरिया, वायरस या कवक के कारण होता है। यह बच्चों में निम्नलिखित माध्यमों से फैल सकता है (31)।

  • नाक, साइनस या मुंह में बैक्टीरिया और वायरस के पहुंचने से।
  • बच्चा संक्रमित भोजन, तरल पदार्थ को सूंघता या निगलता है।

निमोनिया के लक्षण :

बच्चों में निमोनिया के आम लक्षण निम्नलिखित हैं (31):

  • भरी हुई या बहती नाक
  • सिरदर्द
  • तेज खांसी
  • बुखार, जो हल्का या अधिक हो सकता है
  • ठंड लगना और पसीना आना
  • तेजी से सांस लेना
  • नथुनों में सूजन
  • पसलियों के बीच की मांसपेशियों में खिंचाव
  • घरघराहट महसूस होना
  • सीने में तेज दर्द, जो गहरी सांस लेने या खांसने पर बढ़ जाता हो
  • अच्छा महसूस न करना
  • उल्टी या भूख न लगना

गंभीर संक्रमण वाले बच्चों में नीचे बताए गए लक्षण दिख सकते हैं:

  • खून में ऑक्सीजन की कमी कारण होंठ और नाखून का नीला होना
  • भ्रमित होना या बहुत मुश्किल से जगना

निमोनिया से बचाव :

निमोनिया से बचाव के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है (31):

  • बच्चों को निम्नलिखित समय में हाथ धोना सिखाएं

(i) खाना खाने से पहले

(ii)  नाक छूने के बाद

(iii)  बाथरूम जाने के बाद

(iv)  दोस्तों के साथ खेलने के बाद

(v)  बीमार लोगों के संपर्क में आने के बाद

  • नीचे बताए गए टीकों के माध्यम से भी निमोनिया को रोकने में मदद मिल सकती है (31):

(i) न्यूमोकोकल वैक्सीन

(ii) फ्लू के टीके

(iii) पर्टुसिस वैक्सीन और हिब वैक्सीन

11. कॉमन कोल्ड

सर्दी और जुकाम होना भी बरसात के मौसम में आम है। हवासा यूनिवर्सिटी स्टूडेंट क्लिनिक की रिपोर्ट के अनुसार, सामान्य कॉमन कोल्ड का प्रकोप बरसात में या अक्टूबर से जनवरी तक सबसे अधिक होता है (32)। इसकी चपेट में बच्चे काफी आसानी से आ सकते हैं।

बच्चों को बरसात के मौसम में सर्दी जुकाम से बचाने के लिए आगे कोल्ड के कारण, लक्षण और बचाव जानिए।

कॉमन कोल्ड के कारण :

सर्दी को कॉमन कोल्ड कहा जाता है, क्योंकि यह अन्य बीमारी की तुलना में अधिक होती है। यूं तो बच्चों को सालभर वायरस की वजह से कई बार सर्दी-जुकाम हो सकता है, लेकिन ठंड और बरसात के मौसम में इसके मामले ज्यादा आते हैं। यह आमतौर पर दूसरे बच्चों से फैलता है। इसके माध्यम कुछ इस प्रकार हैं (33):

  • इसका वायरस हवा में छोटी बूंदों से फैलता है, जो किसी बीमार व्यक्ति के छींकने, खांसने या नाक साफ करने पर निकलती है।
  • वायरस से दूषित किसी चीज को छूने के बाद अगर बच्चा अपनी नाक, आंख या मुंह को छूता है। उदाहरण के लिए कोई खिलौना या दरवाजे का लॉक।

कॉमन कोल्ड के लक्षण :

सर्दी के लक्षण आमतौर पर वायरस के संपर्क में आने के लगभग 2 या 3 दिन बाद दिखने शुरू होते हैं। कई बार इसमें एक हफ्ते तक का समय भी लग सकता है। इसके लक्षण ज्यादातर नाक को प्रभावित करते हैं, जो इस प्रकार हैं (33):

सर्दी से पीड़ित छोटे बच्चों को 100°F से 102°F (37.7°C से 38.8°C) के आसपास बुखार होता है। इसके अलावा, अन्य प्रकार के वायरस के कारण अगर सर्दी हुई है, तो निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं :

  • खांसी होना
  • भूख में कमी
  • सिरदर्द होना
  • मांसपेशियों में दर्द
  • गले में खराश होना

कॉमन कोल्ड से बचाव :

नीचे बताई गई बातों का ध्यान रखकर बच्चों को सर्दी से बचाया जा सकता है (33) :

  • हमेशा अपने हाथों को अच्छे से धोएं।
  • नाक पोंछने, डायपर पहनने और बाथरूम का उपयोग करने के बाद हाथों को अच्छे से साफ करना जरूरी है।
  • खाना बनाने और खाने से पहले भी हाथ धोना जरूरी है।
  • आसपास के इलाके को साफ रखें, ताकि वहां कीटाणु न पनपें।
  • डोर लॉक, सिंक, नल के हैंडल, स्लीपिंग मैट जैसी चीजों को कीटाणुनाशक से साफ करें।
  • बच्चों के लिए छोटी डे-केयर कक्षाएं चुनें।
  • कीटाणुओं के प्रसार को रोकने के लिए हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करें।
  • कपड़े के तौलिए के बजाय कागज के तौलिये का उपयोग करें।
  • तौलिए का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो घर के हर सदस्य के लिए अलग तौलिया रखें।

तो ये थी बरसात के मौसम में बच्चों को होने वाली बीमारियों की लिस्ट। इनमें से अधिकतर बीमारियां संक्रमण के कारण फैलती है। ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रखकर बच्चों को इनके प्रकोप से बचाया जा सकता है। इसके लिए हमने मॉनसून संबंधी बीमारियों के कारण, लक्षण और बचाव पर चर्चा की है। बस तो सतर्क रहें और बरसात के मौसम में अपने बच्चों को बीमारियों से सुरक्षित रखें।

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