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नवजात शिशु को पानी कब पिलाना चाहिए? क्या वयस्कों की तरह नवजात के लिए पानी जरूरी होता है? ऐसे कई सवाल मां बनने के बाद महिला के जहन में आते हैं। इन सभी सवालों के जवाब आपको मॉमजंक्शन के इस लेख में मिलेंगे। दरअसल, शिशुओं को पानी देने का नियम होता है। किस उम्र से यह नियम लागू होता है और कितनी मात्रा में उन्हें पानी दिया जाना चाहिए। इनकी पूरी जानकारी यहां दी गई है। बच्चों को पानी कब पिलाना चाहिए, इससे जुड़ी छोटी-बड़ी सभी बातों के बारे में जानने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
लेख के शुरुआत में हम बता रहे हैं कि छह महीने से कम उम्र के शिशु को पानी पिलाने से क्या हो सकता है।
6 महीने से कम उम्र के शिशुओं को पानी देने से डायरिया और कुपोषण की समस्या पैदा हो सकती है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक नवजात/शिशु को पानी देने से उनका पेट भर जाता है और वो दूध नहीं पी पाते। इससे शिशुओं को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते और उनमें कुपोषण का शिकार होने का जोखिम बढ़ सकता है (1)।
कुपोषण का शिकार होने के खतरे की सबसे बड़ी वजह है नवजात के पेट की क्षमता। बताया जाता है कि शिशु के जन्म के एक दिन बाद उसकी पेट की क्षमता केवल 5 से 7 ml ही होती है। तीसरे दिन तक यह क्षमता बढ़कर 27 ml हो जाती है। फिर 10 दिन का होते-होते बच्चे के पेट में लगभग 81 ml जगह हो जाती है। इतने छोटे पेट को अगर पानी से भर दिया जाएगा, तो कुपोषण होना लाजमी है (2)। इसी वजह से 6 महीने तक के शिशु को पानी पिलाने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि मां के दूध में ही पर्याप्त पानी होता है, जो शिशु के लिए काफी है।
आगे जानिए बच्चे को पानी कब से दिया जा सकता है।
बच्चे को पानी पिलाना कब शुरू करें?
मां-बाप को अक्सर लगता है कि तपती गर्मी है, तो उनके शिशु को भी पानी की जरूरत होगी। सही जानकारी न होने की वजह से कई पेरेंट्स समय से पहले ही बच्चे को पानी पिला देते हैं। इस कारण होने वाली समस्या के बारे में हम ऊपर बता ही चुके हैं। अब हम आगे बताएंगे कि शिशु को किस उम्र में पानी पिलाना चाहिए और किस उम्र में नहीं।
जन्म से 4 महीने तक के शिशु :
शिशुओं को छह महीने से पहले पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। भले ही मौसम कितना ही गर्म क्यों न हो। दरअसल, मां के दूध में 80 प्रतिशत से ज्यादा पानी होता है। इसी वजह से इस उम्र में शिशु को पानी बिल्कुल भी न पिलाएं (1)। कुछ लोग शिशुओं को जन्म के एक महीने से ही पेट दर्द व अन्य समस्याओं के लिए ग्राइप वॉटर भी देते हैं, जिसे वैज्ञानिक शोध गलत धारणा व आदत बताते हैं (3)।
5 से 8 महीने तक :
पांचवें और छठवें महीने में नहीं, लेकिन सातवें महीने से शिशु को पानी देना शुरू कर सकते हैं। पांच महीने पूरे होने के बाद बच्चे के पेट की क्षमता थोड़ी बढ़ जाती है। इसी वजह से डब्लूएचओ शिशुओं को छह महीने बाद ही पानी पीलाने की सलाह देता है (1)।
9 से 12 महीने तक :
जैसा कि हम ऊपर बता ही चुके हैं कि सातवें महीने से बच्चे को पानी पिलाया जा सकता है। 9 महीने के होते-होते शिशु दूध की मात्रा थोड़ी कम कर देते हैं। इस दौरान बच्चों को कुछ ठोस आहार भी दिया जाता है (4)। इसी वजह से इन महीनों के बीच बच्चे को पानी की आवश्यकता पड़ सकती है।
बच्चे को कितना पानी पिलाया जाना चाहिए, इसपर एक नजर डाल लेते हैं।
बच्चे को पानी की कितनी मात्रा देनी चाहिए? | Shishu Ko Kitna Pani Dena Chahiye
बच्चे को किस उम्र में पानी पिलाना चाहिए यह हम आपको ऊपर बता ही चुके हैं। इस सवाल के साथ ही मां-बाप के मन में यह सवाल भी आता है कि बच्चे को किस उम्र में कितना पानी पिलाना चाहिए। इसका जवाब हम नीचे दे रहे हैं।
6 से 12 महीने तक के शिशु को कितना पानी पिलाएं?
छह महीने तक के शिशु को पानी नहीं देना चाहिए, यह हम पहले ही बता चुके हैं। हां, सात से बारह महीने के शिशु को कितना पानी दिया जाना चाहिए, यह उसके खानपान पर निर्भर करता है। बच्चे को अगर ठोस आहार देने लगें हैं और उसने स्तनपान करना थोड़ा कम कर किया है, तो पानी की पूर्ति के लिए उसे रोजाना 4 से 8 ओंस यानी लगभग 118 से 236ml पानी दिया जा सकता है (5)। बच्चे को हमेशा सादा पानी देने की सलाह दी जाती है। उन्हें चीनी युक्त मीठे पेय और फलों का जूस देने से बचें (6)।
12 महीने से अधिक शिशु को कितना पानी देना चाहिए?
12 महीने से ऊपर के शिशु (टॉडलर) को रोजाना दो कप पानी दे सकते हैं। मतलब बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, उसके शरीर में पानी की जरूरत उसी हिसाब से बढ़ती है। बच्चे के एक साल पूरे होने पर उसके शरीर में पानी की आवश्यकता ठोस पदार्थ और उसके शरीर के वजन पर निर्भर करती है। पेय पदार्थ में पानी के साथ ही जूस और अन्य लिक्विड भी शामिल करना जरूरी है। बस पानी की पूर्ति के लिए बच्चे को स्पोर्ट्स ड्रिंक, सॉफ्ट ड्रिंक और अन्य मीठा पेय पदार्थ न दें (6)।
अब शिशुओं में पानी पीने से होने वाली गंभीर समस्या पर एक नजर डाल लेते हैं।
शिशुओं में जल मादकता क्या है?
पानी की मादकता का अर्थ है शरीर में एक दम से इसकी मात्रा का अधिक होना। वैसे यह समस्या सिर्फ पानी पीने वाले बच्चों में ही नहीं, बल्कि स्तनपान करने वाले और फॉर्मूला मिल्क पीने वाले शिशुओं में भी हो सकती है। स्तनपान करने वाले शिशुओं को दूध की जगह पानी की बोतल दे देना और फॉर्मूला मिल्क में बहुत पानी मिलाकर बच्चे को पिलाने से पानी की मादकता हो सकती है। इससे बचाव किया जा सकता है, लेकिन कई मामलों में यह प्राणघातक भी साबित हो सकता है। इसके लक्षण हम नीचे बता रहे हैं (5) :
- चिड़चिड़ापन
- अधिक नींद आना
- हाइपोथर्मिया (शरीर के तापमान में गिरावट)
- एडिमा (तरल पदार्थ का शरीर के ऊतकों में एकत्रित होना)
- दौरे पड़ना (मस्तिष्क में सूजन या एडिमा के कारण)
इनके अलावा, अत्यधिक पानी पिलाने वाले शिशुओं को उनकी ग्रोथ और विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त कैलोरी भी नहीं मिल पाती है (5)।
साथ ही हाइपोनेट्रेमिया जैसी समस्या भी जल मादकता की वजह से हो सकती है। इसका मतलब है रक्त में नमक की कमी होना। दरअसल, जब किडनी में क्षमता से अधिक पानी पहुंचने लगता है, तो वह ब्लड स्ट्रेम में चला जाता है। यह ब्लड स्ट्रेम में मौजूद द्रव को पतला करके शरीर में सोडियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट को कम कर देता है। इस स्थिति से जुड़े लक्षण के बारे में हम नीचे बता रहे हैं (7):
प्रारंभिक चरण के लक्षण:
- थकान
- मतली
- उल्टी
- सिरदर्द
- आंखों में धुंधलापन
- मानसिक स्थिति जैसे भ्रम
- बेचैनी
- चिड़चिड़ापन
- सुस्ती
- मांसपेशियों में कंपकंपी
- मांसपेशियों में ऐंठन
- मनोविकृति
- दौरे पड़ना
- लार का गिरना
- दस्त
- हाइपरपीरेक्सिया (तेज बुखार)
- एनहाइड्रोसिस (पसीना न आना)
गंभीर लक्षण :
- फेफड़ों में पानी भरना
- दिमाग में पानी भरना
- कोमा
- मौत
आगे लेख में जानिए शिशुओं में पानी से जुड़ी अन्य जरूरी जानकारी।
क्या शिशुओं को किसी भी समय पानी दे सकते हैं?
जैसा कि हम ऊपर बता ही चुके हैं कि मां के दूध में 80 प्रतिशत से ज्यादा पानी होता है। इसी वजह से बच्चों को खास पानी पीने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है। उनका गला सूखता नहीं है, क्योंकि वो समय-समय पर दूध पीते रहते हैं। हां, छह महीने के बाद जब बच्चा दूध के साथ-साथ ठोस आहार लेना शुरू कर दे और स्तनपान करना व फॉर्मूला मिल्क पीना कम कर दे, तो उसे प्यास का अनुभव हो सकता है और पानी पीने की इच्छा जग सकती है।
अब हम बता रहे हैं कि बच्चों में पानी पीने की आदत डालने के लिए क्या किया जाना चाहिए।
बच्चे को पानी पीने के लिए कैसे प्रोत्साहित करें?
बच्चे में पानी पीने की आदत डालना जरूरी है। शरीर के तापमान का रेगुलेशन, पोषक तत्वों को शरीर में पहुंचाने, सेल मेटाबॉलिज्म और गुर्दे के सामान्य कार्य के लिए बच्चों के शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा जरूरी होती है (5)। वहीं, आदत न होने के कारण बच्चे पानी नहीं पीते हैं। उनमें पानी पीने की इच्छा जगाने और उन्हें इसके लिए प्रेरित करने के लिए नीचे बताए गए कदमों को उठाया जा सकता है –
- सबसे पहले अपने हाथों से रोजाना बच्चे को पानी पिलाएं। ऐसा करने से उसके हाथ से पानी का कप व मग गिरने का खतरा नहीं रहेगा।
- बच्चे को रंग-बिरंगे सिप्पर कप में पानी डालकर दें। वह रंगों से आकर्षित होकर झट से उसे पकड़कर पानी पीने लगेंगे।
- कार्टून बने हुए कप खरीदकर उसमें भी बच्चे को पानी दे सकते हैं। कार्टून को देखकर बच्चे खुश हो जाते हैं और पानी पीने लगेंगे।
- पानी पीने के बाद उसकी तारीफ करें। इससे बच्चे को लगेगा उसने कोई अच्छा काम किया है और वह रोज पानी पीकर आपकी शाबाशी पाना चाहेगा।
- बच्चा का फेवरेट जूस (घर में बना हुआ) पानी में मिलाकर भी उसे पिला सकते हैं। वह अपने मनपसंद जूस के टेस्ट के लिए पानी जरूर पिएगा। ध्यान रहे एक साल के उम्र के शिशुओं को फलों का रस न दें।
- जैसे-जैसे बच्चा बातों को समझने लगे, तो उसे बताएं कि पानी शरीर के लिए कितना जरूरी है। पानी पीने के फायदे और इसे न पीने से होने वाले नुकसान दोनों से ही बच्चे को अवगत कराएं।
नोट : शिशु को हमेशा फिल्टर्ड या स्टरलाइज्ड पानी ही देना चाहिए। उन्हें नल का पानी न दें। यदि आरओ या यूवी फिल्टर मौजूद नहीं हैं, तो शिशु को पानी उबालने के बाद ठंडा करके दें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1. क्या फॉर्मूला दूध को पानी में घोला जा सकता है?
हां, फॉर्मूला मिल्क को पानी में ही घोला जाता है (8)।
2. क्या स्तनपान कराने वाले शिशु को पानी दे सकते हैं?
यह शिशु की उम्र पर निर्भर करता है। जैसा कि हम ऊपर भी बता चुके हैं कि 6 महीने तक बच्चे को पानी नहीं दिया जाना चाहिए। सातवें महीने के बाद आप शिशु को स्तनपान कराने के साथ ही आवश्यकतानुसार पानी भी दे सकते हैं।
अब आप समझ गए होंगे कि छह महीने से कम उम्र के बच्चे को पानी देने से क्या-क्या हो सकता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर ही शिशु से जुड़ा कोई भी कदम उठाएं, अन्यथा हल्की से लेकर गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। यह सब हम आपको डराने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि सतर्क रहने के लिए बता रहे हैं। शिशु का लालन-पालन करने के लिए सतर्कता सबसे ज्यादा जरूरी होती है। सावधानी जितनी आप बरतेंगे, बच्चे को बीमार होने के जोखिम से उतना ही बचा पाएंगे। हैप्पी पैरेंटिंग!
References
1. Why can’t we give water to a breastfeeding baby before the 6 months, even when it is hot? By WHO
2. Belly Models as Teaching Tools: What Is Their Utility? By ResearchGate
3. Gripe Water Administration in Infants 1-6 months of Age-A Cross-sectional Study By NCBI
4. Appropriate complementary feeding By WHO
5. Nutritional Needs Of Infants By USDA
6. Feeding Guidelines for Infants and Young Toddlers: A Responsive Parenting Approach By Healthy Eating Research
7. Hyponatremia caused by excessive intake of water as a form of child abuse By APEM
8. Formula Feeding FAQs: Preparation and Storage By Kids Health
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