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महिलाओं को अपने जीवनकाल में विभिन्न शारीरिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। इन्हीं में से एक है पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS), जिसे पॉलिसिस्टिक ओवरी डिजीज (PCOD) भी कहा जाता है। यह अमूमन महिलाओं को होने वाली आम बीमारी है। वहीं, आजकल किशोरियों को भी इसका सामना करना पड़ रहा है। आंकड़ों के अनुसार महिला जनसंख्या में से 6-10 प्रतिशत महिलाएं इसकी चपेट में आती हैं (1)। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे और जानेंगे कि इस बीमारी के कारण व लक्षण क्या हैं और किस प्रकार इसका इलाज संभव है।
क्या है पीसीओएस (PCOS)?
महिलाओं को यह बीमारी प्रजनन हार्मोंस के संतुलन में गड़बड़ी व मेटाबॉलिज्म खराब होने पर होती है। हार्मोंस असंतुलित होने से मासिक धर्म चक्र प्रभावित होता है। सामान्य स्थिति में हर माह पीरियड्स के बाद ओवरी (अंडाशय) में अंडाणुओं का निर्माण होता है और बाहर निकलते हैं। वहीं, पीसीओएस (PCOS) की स्थिति में ये अंडाणु न तो पूरी तरह से विकसित हो पाते हैं और न ही बाहर निकल पाते हैं (2)।
पीसीओएस (PCOS) के प्रकार
वैज्ञानिक शोध के अनुसार पीसीओएस के विभिन्न प्रकार माने गए हैं :
- इंसुलिन प्रतिरोधक पीसीओएस : जब शरीर में इंसुलिन का स्तर प्रभावित होता है और ब्लड शुगर असंतुलित हो जाता है, तो इस स्थिति में इंसुलिन, ओव्यूलेश की प्रक्रिया को प्रभावित करता है (3)।
- रोग प्रतिरोधक संबंधित पीसीओएस : जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है, तो शरीर में ऑटोएंटीबॉडिस का निर्माण होता है। यह शरीर में प्रोटीन के खिलाफ काम करता है। इस कारण से भी महिलाओं में पीसीओएस की समस्या हो सकती है (4)।
- इनके अलावा टाइप-1, टाइप-2 व टाइप-3 पीसीओएस भी होता है (5)
आइए, अब जान लेते हैं कि किन-किन वजहों से महिलाओं को यह बीमारी होती है।
किन कारणों से होता है पीसीओएस
- आनुवंशिक : वैसे तो हार्मोंस में असंतुलन को इस बीमारी की मुख्य वजह माना गया है, लेकिन अगर किसी की मां को यह समस्या रही है, तो आशंका है कि उनकी बेटी भी इसकी चपेट में आ सकती है। हालांकि, वैज्ञानिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हुई, लेकिन सावधानी बरतना जरूरी है (6)।
- पुरुष हार्मोन : महिलाओं की ओवरी कुछ मात्रा में पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) का भी उत्पादन करती है। पीसीओएस की स्थिति में पुरुष हार्मोन का अधिक मात्रा में उत्पादन होता है, जिस कारण ओव्यूलेशन प्रक्रिया के दौरान अंडाणु बाहर नहीं निकल पाते हैं। इस स्थिति को हाइपरएंड्रोजनिसम कहा जाता है (7)।
- इंसुलिन : कुछ वैज्ञानिक शोध में इंसुलिन को भी इस बीमारी का एक कारण माना गया है। शरीर में मौजूद इंसुलिन हार्मोन, शुगर, स्टार्च व भोजन को ऊर्जा में बदलने का काम करता है। जब इंसुलिन असंतुलित हो जाता है, तो एंड्रोजन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है और ओव्यूलेशन प्रक्रिया प्रभावित होती है। परिणामस्वरूप महिलाओं को पीसीओएस का सामना करना पड़ता है (8)।
- खराब जीवनशैली : भोजन में पौष्टिक तत्वों की कमी, अधिक जंक फूड खाने, शारीरिक व्यायाम न करने और शराब व सिगरेट का सेवन करने से भी महिलाओं को यह बीमारी हो सकती है।
नोट : हालांकि, अभी तक वैज्ञानिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के लिए सबसे अहम कारण क्या है, लेकिन इस पर शोध जारी है।
आगे हम जानेंगे कि पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम होने पर शरीर किस तरह से प्रभावित होता है।
पीसीओएस/पीसीओडी (PCOD/PCOS) मासिक धर्म चक्र और गर्भावस्था को कैसे प्रभावित करता है?
पीसीओएस होने पर महिलाओं की पूरी शारीरिक प्रक्रिया ही गड़बड़ा जाती है। महिलाओं के अंडाशय में तरल पदार्थ से भरी कई थैलियां होती हैं, जिन्हें फॉलिकल्स कहा जाता है। इन्हीं में अंडे विकसित होते हैं और द्रव्य का निर्माण होता है। एक बार जब अंडा विकसित हो जाता है, तो फॉलिकल टूट जाता है और अंडा बाहर निकल जाता है। फिर अंडा फैलोपियन ट्यूब से होता हुआ गर्भाशय तक जाता है। इसे सामान्य ओव्यूलेशन प्रक्रिया कहा जाता है। वहीं, जो महिला पीसीओएस से ग्रस्त होती है, उसमें प्रजनन प्रणाली अंडे को विकसित करने के लिए जरूरी हार्मोन का उत्पादन ही नहीं कर पाती है। ऐसे में, फॉलिकल्स विकसित होने लगते हैं और द्रव्य बनना शुरू हो जाता है, लेकिन ओव्यूलेशन प्रक्रिया शुरू नहीं होती है। परिणामस्वरूप, न अंडे विकसित हो पाते हैं और न ही बाहर आ पाते हैं। एक साथ कई फॉलिकल्स अंडाशय में ही रहते हैं और मिलकर गांठ का रूप ले लेते हैं। इस स्थिति में प्रोजेस्ट्रोन हार्मोंस नहीं बनते और इन हार्मोंस के बिना मासिक धर्म प्रक्रिया बाधित या फिर अनियमित हो जाती है, जिस कारण गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है (9)।
पीसीओएस (PCOS) से जुड़ीं जटिलताएं
अगर समय रहते इस बीमारी का इलाज न किया जाए, तो यह कई परेशानियों का कारण बन सकती है (10):
- टाइप-2 डायबिटीज
- उच्च रक्तचाप
- कोलेस्ट्रॉल
- हृदय संबंधी समस्याएं
- खराब मेटाबॉलिज्म
- लिवर में सूजन
- स्लीप एप्निया यानी सोते समय सांस लेने में दिक्कत
- गर्भाशय से असामान्य रक्तस्राव
- एस्ट्रोजन हार्मोंस के अधिक बढ़ने पर गर्भाशय का कैंसर
- एक्टोपिक प्रेग्नेंसी
पीसीओएस के मुख्य लक्षणों के बारे में जानने के लिए पढ़ते रहिए यह लेख।
पीसीओएस (PCOS) के लक्षण | PCOS/PCOD Ke Lakshan
ऐसे विभिन्न लक्षण हैं, जिनके जरिए पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम होने का अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर आपको इसमें से कोई भी लक्षण नजर आए, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें (11) :
- अनियमित पीरियड्स या फिर बिल्कुल बंद हो जाना।
- योनि से अधिक मात्रा में रक्तस्राव होना।
- सामान्य परिस्थितियों में अंडों के विकसित होने के बाद, अंडाशय प्रोजेस्ट्रोन उत्पन्न करते हैं। इसके बाद प्रोजेस्ट्रोन का स्तर कम होता है और गर्भाशय की परत हल्की हो जाती है, तो पीरियड्स शुरू हो जाते हैं। वहीं, अंडों के विकसित न होने पर गर्भाशय की परत मोटी होने लगती है, जिसे हाइपरप्लासिया कहते हैं। परिणामस्वरूप, महिला को अधिक व लंबे समय तक रक्तस्राव होता है।
- तैलीय त्वचा व चेहरे पर कील-मुंहासे।
- शरीर के कुछ हिस्सों की त्वचा गहरी व मोटी हो जाएगी। मुख्य रूप से ऐसा गर्दन, बगल में और पेट व जांघ के बीच के हिस्से में होता है।
- जांघ, पेट, छाती व चेहरे पर तेजी से बाल बढ़ने लगते हैं।
- टाइप-1 डायबिटीज हो सकती है।
- वजन बढ़ना शुरू हो सकता है।
- अल्ट्रासाउंड के दौरान अंडाशय में गांठ जैसी चीजें अधिक मात्रा में नजर आ सकती हैं।
आइए, अब जान लेते हैं कि पीसीओएस है या नहीं, इसकी पुष्टि करने के लिए कौन-कौन से टेस्ट किए जाते हैं।
पीसीओएस (PCOS) की पुष्टि के लिए परीक्षण
इस बीमारी का इलाज जितना जल्द हो सके करा लेना चाहिए, ताकि आगे चलकर किसी बड़ी समस्या का सामना न करना पड़े। यहां हम उन टेस्ट की बात कर रहे हैं, जिनकी मदद से पता किया जा सकता है कि पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम है या नहीं (12) (13) (14):
- मेडिकल इतिहास : मरीज से डॉक्टर पीरियड्स व सेहत से जुड़े विभिन्न सवाल पूछते हैं, जैसे – योनि से अधिक रक्तस्राव, पेट के निचले हिस्से में ऐंठन, चेहरे पर मुंहासे, बालों का पतला होना व झड़ना। इन सभी सवालों के जवाब के आधार पर डॉक्टर पता करते हैं कि महिला इस बीमारी से ग्रस्त हैं या नहीं।
- शारीरिक परीक्षण : डॉक्टर रक्तचाप, बॉडी मास इंडेक्स (इसके जरिए पता चलता है कि शरीर पर कितना फैट है) व कमर का साइज जांचते हैं। साथ ही यह भी चेक करते हैं कि शरीर में कहीं अचानक से बाल बढ़ने तो शुरू नहीं हुए।
- श्रोणि परीक्षण : डॉक्टर इस बात की भी जांच करते हैं कि कहीं अंडाशय में सूजन व छोटी-छोटी गांठें तो नहीं है।
- रक्त जांच : इसके जरिए डॉक्टर मेल हार्मोन (एंड्रोजन) स्तर के बारे में पता करते हैं। साथ ही ब्लड ग्लूकोज लेवल की भी जांच करते हैं।
- योनि अल्ट्रासाउंड (सोनोग्राम) : इस टेस्ट में ध्वनि तरंगों का सहारा लिया जाता है, जिसके जरिए श्रोणि क्षेत्र की तस्वीरें ली जाती हैं। इन तस्वीरों के जरिए यह जानने में मदद मिलती है कि अंडाशय में किसी प्रकार की गांठें तो नहीं हैं और गर्भाशय की परत मोटी है या नहीं। पीरियड्स अनियमित होने पर गर्भाशय की परत मोटी हो जाती है।
पीसीओएस (PCOS) और गर्भावस्था/गर्भधारण करने के लिए पीसीओएस का इलाज
- बेहतर बीएमआई : महिला को नियमित रूप से पौष्टिक भोजन का सेवन करने व शारीरिक व्यायाम करने की जरूरत है, ताकि बॉडी मास इंडेक्स 18.5 से 25 के बीच रहे। बीएमआई के इस स्तर को सबसे उत्तम माना जाता है (15)। इसके लिए आप हमारे ऑनलाइन बॉडी मास इंडेक्स कैलकुलेटर से अपना बीएमआई जांच सकती हैं। वहीं, अगर पीसीओएस के कारण टाइप-2 डायबिटीज हो गई है, तो इसे नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर दवा लेनी चाहिए।
- नियमित दवाइयों का सेवन : अगर कोई महिला मोटे नहीं हैं, फिर भी गर्भधारण नहीं कर पा रही है, तो डॉक्टर प्रजनन क्षमता को बेहतर करने के लिए गोनैडोट्रॉपिंस व क्लोमीफीन (16) (17) जैसी दवाइयां दे सकते हैं, जो अंडाशय को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। साथ ही पीरियड्स को नियमित करने व पीसीओएस के प्रभाव को कम करने के लिए भी दवा दे सकते हैं। ध्यान रहे कि सिर्फ दवा लेना ही काफी नहीं है, बल्कि नियमित रूप से डॉक्टर से जांच करवाना और समय-समय पर शुगर व रक्तचाप को चेक करवाते रहना भी जरूरी है।
- लेप्रोस्कोपिक ओवेरियन ड्रिलिंग : पीसीओएस से निपटने के लिए यह एक सर्जिकल प्रक्रिया है। इसकी जरूरत है या नहीं, इस बारे में डॉक्टर ही बेहतर बता सकते हैं (18)।
- तनाव से राहत : हर महिला को यह समझना होगा कि किसी को, कभी भी, कोई भी बीमारी हो सकती है। इसलिए, पीसीओएस होने पर तनाव लेने की जरूरत नहीं है। कई बार तनाव के कारण हमारी बीमारी और गंभीर हो जाती है। अगर कोई महिला गर्भधारण करना चाहती हैं, तो इस बीमारी के बारे में सोचना छोड़ दें। अगर संभव हो, तो काउंसलर की मदद ले सकते हैं।
नोट : पीसीओएस का कोई स्थाई इलाज नहीं है। इसलिए, अगर कोई महिला पीसीओएस से ग्रस्त है, तो डॉक्टर विभिन्न तरह के इलाज से अंडाशय को इस स्थिति में लेकर आते हैं कि वह गर्भवती हो सकें।
आगे हम बता रहे हैं कि पीसीओएस होने पर भी किस तरह गर्भधारण किया जा सकता है।
पीसीओएस (PCOS) की स्थिति में भी गर्भवती होने के टिप्स
हालांकि, इस हालत में गर्भवती होना मुश्किल जरूर है, लेकिन असंभव नहीं है। यहां हम कुछ जरूरी टिप्स बता रहे हैं, जिनका पालन करने से पीसीओएस ग्रस्त होने के बावजूद गर्भवती होने में परेशानी नहीं होगी।
- खानपान में बदलाव : इस अवस्था में ताजे फल-सब्जियां, बीन्स, सूखे मेवे व गेहूं के आटे की चीजें खानी चाहिए। इसी के साथ डिब्बाबंद व वसा युक्त खाद्य पदार्थों से दूरी बनाएं। इसके अलावा, मांस, चीज़, दूध व तली हुई वस्तुओं को नहीं खाना चाहिए। साथ ही कार्बोहाइड्रेट व शुगर युक्त खाद्य पदार्थों को भी न कहना सीखना होगा। इससे न सिर्फ वजन कम होगा, बल्कि हार्मोंस भी बेहतर होंगे (19) (20)।
- नियमित व्यायाम : व्यायाम करने से शरीर में एंडोर्फिन नामक हार्मोन पैदा होता है, जो तनाव को कम करने में मदद कर सकता है और महिला खुद को खुशनुमा महसूस करती है। व्यायाम से वजन कम होगा, जिससे पीरियड्स नियमित समय पर आएंगे और गर्भधारण करने की संभावना बढ़ जाएगी (21) (22)।
- स्वस्थ जीवन : धूम्रपान करने और शराब पीने से प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है और पीसीओएस को पनपने का रास्ता मिल जाता है। इसलिए, इन्हें त्यागना ही बेहतर होगा (23)।
- तनाव से मुक्ति : जितना हो सके तनावमुक्त होने की कोशिश करें। इस बीमारी के बारे में सोचना छोड़ दें और सिर्फ यही दिल व दिमाग में रखें कि मुझे एक स्वस्थ्य शिशु को जन्म देना है। तनाव से मुक्ति के लिए अपनी पसंद का कोई भी काम कर सकती हैं या फिर स्पा थेरेपी ले सकती हैं। साथ ही एक जैसी हो चुकी दिनचर्या में कुछ बदलाव लाकर बेहतर महसूस कर सकती हैं (24)।
आइए, अब जानते हैं कि आयुर्वेद में पीसीओएस का इलाज संभव है या नहीं।
पीसीओएस/पीसीओडी (PCOS/PCOD) के लिए आयुर्वेदिक उपचार
प्राकृतिक जड़ी-बुटियों से जुड़ा उपचार, पीसीओएस (PCOS) के लिए सबसे कारगर माना गया है। इसमें जड़ी-बुटियों से बनी दवाओं के जरिए प्रजनन क्षमता को बेहतर किया जाता है और हार्मोंस में संतुलन लाया जाता है। साथ ही नाड़ी परीक्षा व प्रकृति-विकृति के अनुसार खानपान में संतुलन बरतने के लिए जरूरी निर्देश दिए जाते हैं। इस पद्धति से न सिर्फ पीसीओएस का इलाज होता है, बल्कि इससे जुड़ी अन्य बीमारियां भी दूर हो जाती हैं (25)।
इस बीमारी के लिए कुछ आयुर्वेदिक दवाइयां दी जाती हैं, जिनके बारे में नीचे बताया गया है। ये दवाइयां पीरियड्स को नियमित करती हैं और अंडाशय की कार्यक्षमता में सुधार लाकर प्रजनन शक्ति को बढ़ाती हैं।
- अशोकारिष्ट
- चंद्रप्रभा वटी
- कुमार्यासव
- सुकुमार कषाय
नोट : ध्यान रहे कि आयुर्वेदिक दवाइयों का सेवन योग्य आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर ही करें, क्योंकि यह डॉक्टर ही बेहतर बता सकते हैं कि किस मरीज के लिए कौन सी दवा सबसे बेहतर है।
गंभीर दोषों को शरीर से बाहर निकालने के लिए दवा के अलावा पंचकर्म विधि का भी प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में पीसीओएस के लिए मुख्य रूप से तीन प्रकार के शोधन कर्म अपनाए जाते हैं, जो इस प्रकार हैं:
- बस्ती : यह एक प्रकार का आयुर्वेदिक एनीमा है। इसमें आयुर्वेदिक तेलों को मलद्वार के जरिए शरीर में प्रविष्ट किया जाता है। इसके जरिए दूषित वात को नष्ट किया जाता है, जिससे पीसीओएस से राहत मिल सकती है (26)।
- विरेचन : इसके जरिए पेट के विकारों को दूर किया जाता है। इसमें पित्त जैसे दूषित व विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकाला जाता है। इस पद्धति में मलद्वार के जरिए दवाओं को शरीर में प्रविष्ट किया जाता है। ये दवाएं पाचन तंत्र को ठीक करती हैं और विकारों को बाहर निकालती हैं (27)।
- वमन : इस पद्धति में ऐसी दवाएं दी जाती हैं, जिससे रोगी को बार-बार उल्टी आती है। इन उल्टियों के जरिए शरीर में जमा दूषित कफ बाहर निकल जाता है और शरीर के सभी हार्मोंस संतुलित हो जाते हैं (28)।
अगर मैं पीसीओएस (PCOS) होते हुए गर्भधारण कर लूं, तो क्या होगा?
इस स्थिति में आपको अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होगी। जिन गर्भवती महिलाओं को पीसीओएस (PCOS) होता है, उनमें सामान्य गर्भवती महिलाओं के मुकाबले गर्भपात की आशंका तीन गुना ज्यादा होती है। साथ ही अन्य जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है, जैसे (29) :
- गर्भावधि मधुमेह
- प्री-एक्लेमप्सिया
- उच्च रक्तचाप
- 20वें सप्ताह के बाद शरीर में सूजन
- समय पूर्व प्रसव
- सीजेरियन डिलीवरी
बेशक, यह स्थिति कष्टदायक है, लेकिन अगर वजन पर नियंत्रण रखा जाए और समयांतराल पर डॉक्टर से जांच करवाई जाए, तो उपरोक्त जटिलताओं से बचा जा सकता है।
आगे पीसीओएस को रोकने के तरीकों के बारे में जानकारी दी गई है।
पीसीओएस (PCOS) को रोकने के तरीके
अगर परिवार में किसी को यह बीमारी रही है, तो अगली पीढ़ी में कोई भी महिला इसकी चपेट में आ सकती है। हालांकि, इससे बचना मुश्किल है, लेकिन कुछ जरूरी सावधानियां बरतने पर इसे बढ़ने से रोका जरूर जा सकता है।
- वजन को नियंत्रित रखें। वजन न तो कम होना चाहिए और न ही ज्यादा।
- डॉक्टर से नियमित जांच करवाते रहें, ताकि कभी भी गंभीर समस्या नजर आए, तो समय रहते उसका इलाज किया जा सके। खासकर, तब जब गर्भावस्था की योजना बना रही हों।
- अगर पीरियड्स जरा भी अनियमित होते हैं या फिर लगातार दो महीने तक आते ही नहीं हैं, तो बिना देरी किए डॉक्टर से पेल्विक अल्ट्रासाउंड करवाएं।
- तनाव में रहने से गर्भावस्था की संभावना कम हो जाती है। डॉक्टर से बात कर गर्भावस्था से पहले जरूरी विटामिन्स लेना शुरू कर सकती हैं। इससे न सिर्फ सेहत में सुधार होगा, बल्कि प्रजनन क्षमता भी बेहतर होगी। साथ ही अपना खानपान भी बेहतर रखें।
- प्राकृतिक व आयुर्वेदिक उपचार पर विश्वास रखें, इससे फायदा ही होगा। साथ ही स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए प्रेरित करती रहें।
इस लेख के अगले भाग में विभिन्न योगासनों के बारे में बताया गया है, जो पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से लड़ने में मदद करते हैं।
पीसीओएस (PCOS) के लिए योगासन
योग न सिर्फ हमें स्वस्थ रखता है, बल्कि हमारे मन को शांत करता है और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। पीसीओएस (PCOS) को भी योग के जरिए ठीक किया जा सकता है और गर्भधारण कर स्वस्थ शिशु को जन्म दिया जा सकता है। यहां हम बता रहे हैं कि इस बीमारी में कौन-कौन से योगासन सबसे उपयुक्त होते हैं (30)।
- अनुलोम-विलोम प्राणायाम : इसे करने से मानसिक विकार दूर होते हैं और दिल व दिमाग शांत होता है।
- तितली आसन : इसे करने से तनाव दूर होता है और पीरियड्स नियमित समय पर आने लगते हैं।
- भुजंगासन : यह आसन करते समय पेट पर दबाव पड़ता है, जिससे पाचन तंत्र बेहतर होता है और मासिक धर्म से जुड़े विकार दूर होते हैं।
- चक्रासन : मासिक धर्म से जुड़ी हर प्रकार की जटिलताएं इस एकमात्र योगासन से ठीक हो जाती हैं और आप स्वस्थ जीवन जी सकते हैं व आसानी से गर्भधारण कर सकती हैं।
- भ्रामरी प्राणायाम : इसे करने से हर तरह का तनाव व मानसिक विकार जड़ से खत्म हो जाता है और आपका ध्यान केंद्रित हो जाता है।
- पद्मासना : इस आसन को करने से श्रोणि क्षेत्र फैलता है और सभी हार्मोंस संतुलित हो जाते हैं।
- सूर्य नमस्कार : अगर आपने इस आसन को करना सीख लिया, तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता है। यह एकमात्र ऐसा आसन है, जिसे करने से पूरा शरीर फिट हो जाता है और अंदरूनी अंग बेहतर तरीके से काम करने लगते हैं।
नोट : जब आप योग करना शुरू करते हैं, तो तभी से उसका असर नजर आने लगता है। अगर आप पहली बार इन योगासनों को कर रहे हैं, तो बेहतर होगा कि किसी ट्रेनर की देखरेख में करें। साथ ही शारीरिक क्षमता के अनुसार ही योग करें।
आइए, अब पीसीओएस के लिए घरेलू नुस्खों के बारे में भी जान लेते हैं।
पीसीओएस (PCOS) के लिए घरेलू इलाज | PCOS Ka Gharelu Ilaj
हमारे घर की रसोई में ऐसी कई चीजें मौजूद हैं, जो किसी दवा से कम नहीं हैं। इनका उपयोग हर तरह की बीमारी में किया जा सकता है। पीसीओएस में भी इनका इस्तेमाल घरेलू उपचार के तौर पर किया जा सकता है।
- दालचीनी : अगर एक चम्मच दालचीनी को एक गिलास गर्म पानी के साथ लिया जाए, तो इंसुलिन के स्तर को बढ़ने से रोका जा सकता है (31)।
- अलसी : अलसी के बीजों को पीसने के बाद एक-दो चम्मच पाउडर को एक गिलास पानी में डालकर पी जाएं। इससे एंड्रोजन हार्मोंस में कमी आती है (32)।
- पुदीने की चाय : एक शोध में इस बात की पुष्टि की गई है कि पुदीने की चाय एंटी-एंड्रोजन का काम करती है। इसे पीने से पीसीओएस में राहत मिलती है। इस विषय में वैज्ञानिक अभी और शोध कर रहे हैं (33)। पानी में पुदीने की सूखी पत्तियां डालकर उबाल लें और फिर छानकर पिएं।
- मेथी : यह शरीर में इंसुलिन के स्तर को बढ़ने से रोकती है, हार्मोंस को संतुलित करती है और मेटाबॉलिज्म में सुधार लाती है (34)। आप तीन चम्मच मेथी के बीजों को आठ-दस घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखें और फिर इन्हें पीसकर शहद के साथ दिन में तीन बार ले सकते हैं।
- मुलेठी : यह एंड्रोजन को कम करती है, कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है और मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया को बेहतर करती है। प्रतिदिन सूखी मुलेठी को एक कप गर्म पानी में उबालकर पीने से काफी लाभ मिलता है (35)।
नोट : ये घरेलू उपचार बीमारी से बचाव में मदद कर सकते हैं, लेकिन इन्हें संपूर्ण इलाज नहीं माना जा सकता।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
क्या PCOS होने पर प्रेगनेंट नहीं हो सकते?
इस स्थिति में भी महिला गर्भवती हो सकती है, लेकिन उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है। जिन महिलाओं को पीसीओएस हो, उन्हें गर्भधारण करने से पहले डॉक्टर से पूरी जांच करवानी चाहिए और पूरा इलाज करवाना चाहिए। फिर जब गर्भवती हो जाएं, तो निश्चित समय पर डॉक्टर से चेकअप करवाती रहें, ताकि मां व गर्भ में पल रहे शिशु को कोई परेशानी न हो।
क्या पीसीओएस ग्रस्त महिला आईवीएफ या आईसीएसआई की मदद से गर्भवती हो सकती है?
हां, अगर पीसीओएस से पीड़ित महिला को सामान्य रूप से गर्भधारण करने में समस्या आ रही है, तो वह आईवीएफ या फिर आईसीएसआई प्रक्रिया की मदद ले सकती है।
क्या यह सच है कि गर्भावस्था पीसीओएस (PCOS) का इलाज कर सकती है?
ऐसा संभव नहीं है कि अगर आपने गर्भधारण कर लिया है, तो पीसीओएस की समस्या दूर हो जाएगी। गर्भावस्था का पीसीओएस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान इलाज के जरिए पीसीओएस के असर को कम जरूर कर सकते हैं, ताकि स्वस्थ शिशु का जन्म हो सके।
हमें उम्मीद है कि आपको पीसीओएस/पीसीओडी से जुड़े हर सवाल का जवाब इस लेख में मिला होगा। पीसीओएस की अवस्था में भी महिला गर्भवती हो सकती है। बस उसे गर्भधारण करने से पहले कुछ बातों का ध्यान देना जरूरी है। साथ ही गर्भावस्था के समय भी सावधानी बरतना जरूरी है। गर्भावस्था से जुड़ी अन्य जानकारी के लिए आप मॉमजंक्शन के दूसरे आर्टिकल जरूर पढ़ें।
References
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34. Evaluation of Fenugreek (Trigonella foenum-graceum L.), Effects Seeds Extract on Insulin Resistance in Women with Polycystic Ovarian Syndrome By NCBI
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