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मानव जीवन में प्रकृति की महत्ता का जितना वर्णन किया जाए कम है। ये प्रकृति रूपी मां ही है, जो लोगों का पालन-पोषण करती है और बदले में किसी से कुछ नहीं मांगती। सांस लेने के लिए हवा, पीने के लिए पानी, खाने के लिए भोजन, ये सब प्रकृति की ही देन है। इसका महत्व छोटे बच्चों को समझाना भी जरूरी है। इसके लिए आप प्रकृति पर कविता की मदद ले सकते हैं। इसी उद्देश्य के साथ हम प्रकृति पर 20 कविताएं लेकर आए हैं। इन कविताओं को पढ़कर या सुनकर बच्चे प्रकृति की अहमियत को आसानी से समझ जाएंगे।
लेख में आगे बढ़ते हुए सीधे पोयम्स इन हिंदी ऑन नेचर फॉर किड्स पढ़ते हैं।
20 प्रकृति पर बच्चों के लिए कविता | Prakriti Poem In Hindi For Kids
प्रकृति पर बच्चों के लिए कविताएं कुछ इस प्रकार हैं। ये सारी कविताएं हमने खास बच्चों के लिए लिखी हैं, ताकि वो नेचर का महत्व समझ सकें।
- रात का अंधेरा जब छा जाता है
हर बच्चा थोड़ा डर जाता है,
देखता है जब वो चांद सितारों को,
आसमान उसे भा जाता है,
जुगनू उड़ते है रोशनी लेकर,
कौन भेजता है उन्हें लालटेन देकर,
फिर सोता है वो कुछ सपने लेकर,
मां को अपनी एक मुस्कान देकर,
यूं नया दिन फिर आ जाता है,
सूरज चाचू सजकर छा जाता है,
देखता है जब बच्चा नीले आसमान को
आसमान उसे भा जाता है।
- मुर्गा कैसा कुकड़ू कू बांग लगाता है,
बिना अलार्म वो कैसे उठ जाता है,
हवा कैसे इतनी ठंडी होती है,
कौन से पंखे से वो चलती है,
पेड़ कैसे इतने लंबे हो जाते हैं.
दूध में वो कौन सा बॉर्नविटा मिलाते हैं,
पत्ते क्यों चमकीले लगते हैं,
क्या वो रोज नहाते हैं,
पेड़ों की भी मां होती है,
क्या वो धरती कहलाती है?
- पेड़ कितने प्यारे होते हैं,
तेज धूप से हमें बचाते हैं,
मुफ्त में हमें फल हैं देते,
न हमें डांटते, न हम पर चिल्लाते हैं,
कितने पक्षी टहनियों पर रहते हैं,
कितने अपने घोंसले बनाते हैं,
तेज बारिश में भी खड़े हैं रहते,
हमें भीगने से बचाते हैं,
न काटो तुम उनको,
वो बेचारे हमें रोक भी न पाते हैं।
- कल-कल करती नदी
हमें बहुत अच्छी लगती,
ठंडा ठंडा पानी इसका
हमको बहुत मीठा लगता,
इसे गंदा कभी न करना,
कूड़ा इसमें कभी न भरना,
जितना चाहिए उतना इस्तेमाल करना,
व्यर्थ में इसे कभी न बहाना,
इसके न होने पर
हो जाएगा सब सूखा,
बिन इसके हर इंसान,
रहेगा प्यासा और भूखा।
- थक जाएं अगर जो हम,
तो गोद में अपने बिठाती है,
नींद आने लगे अगर,
तो प्यार से सुलाती है,
पहाड़, रेगिस्तान और नदियों को
यह खूब सजाती है,
अपनी मिट्टी पर वो
नित नए पौधे खिलाती है,
थक जाने पर हमें
ठंडी हवा बन सहलाती है,
मां जैसा ख्याल है रखती,
धरती मां ये कहलाती है।
- न कोई मालिक इसका,
न इसका कोई नौकर है,
कोमल मन में इसके न कोई खोट,
भूल से भी न पहुंचाना इसको कोई चोट,
हरियाली रूपी चुनरी है ओढ़ती,
धूप छांव से अपना शृंगार करती,
झोली इसकी कभी खाली न रहती,
लाखों दुख हंसकर है सहती,
कभी ठंड से सताती,
तो कभी गर्मी से तपाती है,
हजारों रंग लिए खुद में
मौसम की बहार लाती है।
- प्रकृति के हैं रंग निराले,
कभी नीले तो कभी हैं बादल काले,
कुछ पल कोई इसके साथ बीता ले
अवश्य ही ये उसे अपना बना ले,
प्रकृति ही कई जीव जंतुओं को पाले,
साथ में ये प्रदूषण को भी संभाले,
पशु पक्षियों को ये स्वयं में बसा ले,
प्रकृति के हैं कई रंग निराले,
देती है हमें कई मिसालें।
- छल न कर,
खिलवाड़ न कर,
जिस जमीन में रहता है तू,
उसे यूं बर्बाद न कर,
सैंकड़ों पेड़ों को काटकर,
विकास की बातें करते हो,
प्रकृति के प्रकोप से फिर डरकर,
ग्लोबल वार्मिंग की दुहाई देते हो,
ऑक्सीजन की कमी होने पर,
संसाधनों का रोना रोते हो,
फिर थक हारकर,
आस प्रकृति से ही करते हो।
- रोज नए रोगों से मिलोगे,
अगर तुम बैर प्रकृति से करोगे,
प्रकृति को गर परेशान करोगे,
नित नई महामारी से लड़ोगे,
कैसे तुम आगे बढ़ोगे,
युद्ध जब तुम प्रकृति से लड़ोगे,
प्राय: जब तुम पौधारोपण करोगे,
ऐसे ही तो तुम आगे बढ़ोगे,
प्रकृति से जब प्यारी बातें करोगे,
इस तरह तुम सुनहरे कल से मिलोगे।
- मन खुश हो जाता है,
हवाओं की जब सरसराहट होती है,
उदास दिल भी झूम उठता है
चिड़ियों की जब चहचहाहट होती है,
रुके कदम भी चल पड़ते हैं
पत्तों की जब आहट होती है,
हंसी होंठों पर आ जाती है
फूलों की जब खिलखिलाहट होती है,
अपने शृंगार से सजी रहती है ये धरती,
जैसे सुंदर कोई लिखावट होती है।
- जंगलों को काटकर
हमने बहुत कुछ खोना है,
सच कहते हैं लोग
कि प्रकृति ही हमारा सोना है,
जंगलों को जलाकर
कितने ही पशु पक्षियों ने घर अपना खोना है,
हत्याएं इतनी करके
कैसे चैन से सोना है,
जंगल भी हमारे घर का ही एक कोना है
तबाह कर इसे ताउम्र रोना ही रोना है।
- काली घटा के आने पर
ज्यों नाच उठता है मोर,
मेरे मन को भाता है
ऊंची लहरों का ये शोर,
काली घटा संग अपने
लाती बारिश घनघोर,
इंद्रधनुष मन चुराता मेरा
जैसे हो वह कोई चोर,
सपने नए सजते इन आंखों में
जब भी होती कोई भोर,
हर पल छूना चाहूं मैं
आकाश व धरती का एक छोर।
- सूरज जब आसमान में निकलता है,
बिन मांगे सबको रोशनी देता है,
गरमाइश यह देता भरपूर,
करदेता सबकी ठंडक दूर,
सूरज जब चमकता है,
हर दिल को खुशियों से भरता है,
कैसे यह धीरे धीरे फिसलता है,
हर शाम जब ये ढलता है,
दिन यूं अगला चढ़ता है,
सूरज जब आसमान में निकलता है।
- प्रकृति के आगे
न कोई अमीर न गरीब,
रहती हर प्राणी के
दिल के बेहद करीब,
सबको धूप बराबर मिलती,
कली हर आंगन में खिलती,
वर्षा सबको बराबर मिलती,
हवा बिना भेदभाव के चलती,
दिल के न रहोगे गरीब,
अगर रहोगे प्रकृति के करीब।
- नदी, झील और झरने
कहां सब खो रहे हैं?
लगता है सब से छुपकर
अकेले में ये रो रहे हैं,
पेड़ सब कट रहे हैं
जंगल सब हट रहे हैं,
गिद्ध अब खत्म हो रहे हैं
धरा पर क्यों सितम हो रहे हैं,
मुफ्त में जो हैं उपलब्ध
लकड़ी, जल और हवा
अब बाजार में बिक रहे हैं,
लगता है इंसान
स्वार्थ में आंखें मूंदे बैठा है।
- प्रकृति कई रंगों में आती,
कभी बाढ़ तो कभी सूखा लाती,
कभी कठोर गर्मी से तपाती,
कभी शीतल हवा बन सहलाती,
कभी बिजली की गर्जन करती,
कभी नए प्राणों का सृजन करती,
कभी गुस्से से खूब कपकपाती,
कभी इंद्रधनुष दिखा मन लुभाती,
कभी बसंत बन हरियाली लाती,
कभी सफेद बर्फ की चादर ओढ़ाती,
हर पल मन में आस जगाती,
प्रकृति कई रंगों में आती।
- तारे यूं टिमटिमाते हैं,
जैसे हमसे शर्माते हैं,
ऊंचे आसमान में उड़ते हैं,
बादल रुई से लगते हैं,
मधुर संगीत सुनाते हैं,
पंछी जब चहचहाते हैं,
हवाई जहाज से लगते हैं,
पंछी जब उड़ान भरते हैं,
खुशबू प्यारी फैलाते हैं,
फूल जब मुस्कुराते हैं।
- कितने रंगों को मिलाया होगा,
भगवान ने जब कुदरत को बनाया होगा,
अपनी कला पर इतराया होगा,
इसे जब सुंदर पाया होगा,
कहां से वो रंग लाया होगा,
कैसे उन्हें मिलाया होगा,
सूरज चांद तारों से फिर इसे सजाया होगा,
उदास मन भी मुस्कुराया होगा,
जब इसे अद्भुत पाया होगा।
- ऊंचे-ऊंचे पर्वत हैं,
उनपर सफेद बर्फ की चादर कमाल,
सुंदर-सुंदर फूल खिले हैं,
उनकी मनमोहक सुगंध कमाल,
हरे भरे पेड़ खड़े हैं,
हवा से झूलते लगते कमाल,
प्रकृति रखती हम सब को पाल,
रखो इसकी हर चीज को संभाल।
- एक था बहुत दुखी इंसान,
प्रकृति की सुंदरता से था वो अनजान,
वो जहां रहता था वहां था अंधेरा,
और था सब कुछ सुनसान,
बहुत दुखी होकर एक दिन चल पड़ा देने अपनी जान,
चलते-चलते सुंदर झरना और फूल देख हुआ बड़ा हैरान,
प्रसन्न होकर सोचने लगा, मैं व्यर्थ देने चला था अपनी जान,
पेड़ पहाड़ और शीतल जल,
मेरे पास था कुदरत का यह सामान,
हाथ जोड़कर कहने लगा,
सृष्टि रचयिता हे प्रभु, तुम कितने महान,
माफ मुझे कर दो, मैं हूं एक तुच्छ इंसान,
प्रकृति की सुंदरता त्याग कर,
देने चला था अपनी जान।
हमें पूरा यकीन है कि आपको बच्चों के लिए प्रकृति पर लिखी गईं ये कविताएं जरूर पसंद आईं होंगी| इन प्रकृति से जुड़ी कविताओं के माध्यम से आप अपने बच्चों को जागरूक कर सकते हैं और उन्हें प्रकृति के और भी करीब ला सकते हैं। आपको पोयम्स इन हिन्दी ऑन नेचर फॉर किड्स का ये कलेक्शन पसंद आया हो, तो इसे दूसरों साथ भी जरूर साझा करें। साथ ही इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए मॉमजंक्शन की वेबसाइट के साथ जुड़े रहिए।
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