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गर्भावस्था के दौरान महिला और भ्रूण का स्वस्थ रहना जरूरी है। अगर गर्भवती महिला के स्वास्थ्य में कोई भी समस्या आती है, तो उससे सीधा भ्रूण के विकास पर असर पड़ता है। ऐसी ही एक समस्या प्री-एक्लेम्पसिया है, जिसके बारे में हर गर्भवती महिला और उसके परिजनों को पता होना चाहिए। प्री-एक्लेम्पसिया, उच्च रक्तचाप का एक गंभीर रूप है और एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं उच्च रक्तचाप का शिकार होती हैं। इनमें से लगभग तीन से पांच प्रतिशत मामले प्री-एक्लेम्पसिया के होते हैं (1)मॉमजंक्शन के इस लेख में हम इस समस्या पर विस्तार से बात करेंगे। हम समझेंगे कि गर्भावस्था के दौरान प्री-एक्लेम्पसिया क्यों होता है। हम यह भी समझेंगे कि आप उसका निदार और उपचार कैसे कर कर सकती हैं।

आइए, सबसे पहले समझते हैं कि प्री-एक्लेम्पसिया क्या होता है।

प्री-एक्लेमप्सिया क्या है? | Preeclampsia Kya Hota Hai

प्री-एक्लेम्पसिया एक उच्च रक्तचाप विकार है, जो गर्भावस्था के 20वें सप्ताह के बाद एक गर्भवती महिला को हो सकता है। इस स्थिति में महिला का रक्तचाप अचानक बढ़ने लगता है और यूरिन में प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ जाती है। रक्तचाप का यह विकार गंभीर माना जाता है, क्योंकि यह गर्भवती के लिवर और किडनी को प्रभावित कर सकता है (1)

कुछ दुर्लभ मामलों में यह प्रसव के बाद हो सकता है। तब इसे प्रसवोत्तर प्री-एक्लेम्पसिया (postpartum preeclampsia) कहा जाता है (1)। इसे दो भागों में बांटा जाता है (2):

  1. माइल्ड प्री-एक्लेमप्सिया: अगर आपका सिस्टोलिक रक्तचाप 140 या उससे अधिक और डायस्टोलिक रक्तचाप 90 या उससे अधिक पाया गया है, तो यह माना जाएगा कि आपको माइल्ड यानी हल्का प्री-एक्लेम्पसिया है।
  1. गंभीर प्री-एक्लेमप्सिया: वहीं, अगर आपका सिस्टोलिक रक्तचाप 160 या उससे अधिक और डायस्टोलिक रक्तचाप 110 या उससे अधिक पाया गया है, तो यह माना जाएगा कि आपको गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया है।

प्री-एक्लेमप्सिया होना कितना आम है?

प्री-एक्लेम्पसिया एक आम समस्या नहीं है। विश्व में लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं को गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप का सामना करना पड़ता है। इनमें तीन से पांच प्रतिशत मामले प्री-एक्लेम्पसिया के होते हैं। एक शोध के अनुसार, भारत में 7.8 प्रतिशत महिलाओं में हाइपरटेंशन के मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें 5.4 प्रतिशत प्री-एक्लेम्पसिया के थे (1)

आइए, अब आपको बता दें कि प्री-एक्लेम्पसिया होने के क्या कारण हो सकते हैं।

प्री-एक्लेम्पसिया के कारण

जैसा कि हमने ऊपर बताया कि गर्भावस्था के दौरान प्री-एक्लेम्पसिया होना आम नहीं है, लेकिन कुछ निम्नलिखित कारण इसके होने की वजह बन सकते हैं – (1):

  • आनुवंशिक
  • पिछली गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप या प्री-एक्लेम्पसिया
  • गर्भावस्था से पहले उच्च रक्तचाप
  • किडनी खराब होना
  • मधुमेह
  • मोटापा
  • यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन
  • माइग्रेन
  • रुमेटाइट अर्थराइटिस
  • पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (हार्मोन विकार)
  • मल्टीपल स्क्लेरोसिस (नर्वस सिस्टम से जुड़ी समस्या)
  • जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावस्था के दौरान मधुमेह)

लेख के अगले भाग में जानिए प्री-एक्लेम्पसिया के लक्षण के बारे में।

प्री-एक्लेम्पसिया के लक्षण

प्री-एक्लेम्पसिया के कुछ लक्षण गर्भावस्था के आम लक्षण जैसे ही हैं, लेकिन कुछ लक्षण ऐसे हैं, जिनसे आप प्री-एक्लेम्पसिया को पहचान सकते हैं (1)

  • उच्च रक्तचाप
  • पेशाब में प्रोटीन
  • अचानक वजन का बढ़ना
  • हाथों-पैरों और आंखों के आस-पास सूजन
  • लगातार सिरदर्द
  • ज्यादा उल्टी होना और जी मिचलाना (मॉर्निंग सिकनेस से अलग)
  • पेट दर्द
  • सांस लेने में तकलीफ
  • धुंधला दिखना

नोट: गर्भावस्था में पैरों में हल्की-सी सूजन आना आम है, लेकिन हाथों, पैरों और चेहरे पर ज्यादा सूजन आना प्री-एक्लेम्पसिया का लक्षण हो सकता है।

आगे जानिए कि प्री-एक्लेम्पसिया का निदान कैसे किया जा सकता है।

प्री-एक्लेम्पसिया का निदान

अक्सर प्री-एक्लेमप्सिया के लक्षण गर्भावस्था के सामान्य लक्षणों से अलग हो सकते हैं। इसलिए, इस समस्या का निदान करना महत्वपूर्ण है। नीचे बताए गए तरीकों से प्री-एक्लेम्पसिया का निदान किया जा सकता है (1)

  • रक्तचाप की जांच: निदान के पहले चरण में डॉक्टर रक्तचाप की जांच करेगा। अगर जांच में गर्भवती का रक्तचाप 140/90 या उससे ज्यादा रहा हो, तो माना जाएगा कि गर्भवती को प्री-एक्लेम्पसिया की समस्या है।
  • यूरिन टेस्ट: रक्तचाप 140/90 होने का मतलब सिर्फ हाइपरटेंशन भी हो सकता है। इसलिए, निदान के दूसरे चरण में गर्भवती का यूरिन टेस्ट होगा। अगर गर्भवती के यूरिन में प्रोटीन की अधिक मात्रा (0.3g/24 घंटे या उससे अधिक) पाई गई तो माना जाएगा कि गर्भवती को प्री-एक्लेम्पसिया है।
  • ब्लड टेस्ट: ब्लड टेस्ट की मदद से डॉक्टर गर्भवती के रेड ब्लड सेल्स, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स चेक करेंगे। इस दौरान गर्भवती का प्लेटलेट्स काउंट अचानक कम होने लगता है। अगर आपका प्लेटलेट्स काउंट कम आया, तो माना जाएगा कि गर्भवती को प्री-एक्लेम्पसिया है।

प्री-एक्लेम्पसिया भ्रूण के विकास पर भी असर डाल सकता है। इस वजह से भ्रूण का विकास जानने के लिए भी जांच करना जरूरी हो जाता है, जो कुछ इस प्रकार की जा सकती हैं:

  • अल्ट्रासोनोग्राफी: और डॉप्लर फ्लो की जांच: इस जांच को भ्रूण की स्थिति का आंकलन करने के साथ-साथ भ्रूण के विकास का मूल्यांकन और रक्त संचार पता करने के लिए किया जाता है।
  • बायोफिजिकल प्रोफाइल: इस जांच के जरिए भ्रूण की धड़कन, सांस और उसकी गतिविधियों के बारे में पता लगाया जाता है।

आइए, अब आपको बताते हैं कि प्री-एक्लेम्पसिया का उपचार कैसे किया जा सकता है।

प्री-एक्लेम्पसिया का उपचार

प्री-एक्लेम्पसिया एक ऐसी समस्या है जिसका उपचार करना जरूरी है। एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार, गर्भावस्था में हाइपरटेंशन गर्भवती और भ्रूण के लिए जानलेवा हो सकता है (3)। नीचे जानिए कि प्री-एक्लेम्पसिया का उपचार कैसे किया जा सकता है (4)

माइल्ड प्री-एक्लेम्पसिया:

  • माइल्ड यानी हल्के प्री-एक्लेम्पसिया की स्थिति में प्रसव के लिए रुका जा सकता है और आगे के जोखिम से बचने के लिए डॉक्टर गर्भवती को आराम करने और रक्तचाप कम करने की सलाह दे सकता है। इसके अलावा, महिला को प्लेसेंटा में रक्त संचार बढ़ाने की सलाह भी दी जा सकती है।
  • रक्तचाप कम करने के लिए महिला को अपने आहार से नमक की मात्रा कम और पानी की मात्रा ज्यादा करने की सलाह भी दी जा सकती है।
  • महिला को निरंतर निगरानी में रखने के लिए अस्पताल में भर्ती भी किया जा सकता है। इस दौरान, गर्भवती को रक्तचाप कम करने के लिए दवाइयां दी जा सकती हैं।
  • प्री-एक्लेम्पसिया से सिजेरियन डिलीवरी और पूर्व प्रसव का खतरा बढ़ जाता है। इसे कम करने के लिए महिला को मैग्नीशियम सल्फेट जैसी एंटीकॉन्वल्सिव (Anticonvulsive) दवा दी जा सकती है।

गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया:

  • गंभीर प्रीक्लेम्पसिया की स्थिति में गर्भवती महिला को जल्द से जल्द अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा, ताकि उसकी निगरानी ठीक से की जा सके।
  • इस दौरान रक्तचाप को नियंत्रित करने और सीजर जैसी जटिलताओं से बचने के लिए नसों के माध्यम से दवाइयां (Intravenous) दी जा सकती हैं।
  • भ्रूण के फेफड़ों के विकास को बढ़ाने के लिए स्टेरॉयड इंजेक्शन भी महिला को लगाए जा सकते हैं।
  • गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया में गर्भवती और भ्रूण का जीवन प्राथमिकता पर होता है। अगर महिला अपनी गर्भावस्था के 34 या उससे ज्यादा सप्ताह पूरे कर चुकी है, तो डॉक्टर जल्द से जल्द प्रसव का सुझाव दे सकते हैं।
  • अगर गर्भावस्था 34 सप्ताह से कम की हैं, तो महिला को कोर्टिकोस्टेरोइड (Corticosteroids) लेने की सलाह दी जाती है, ताकि भ्रूण के फेफड़ों के विकास की गति बढ़ सके और जल्द प्रसव किया जा सके (3)

नोट: ध्यान रखें कि बताई गई दवा डॉक्टर से परामर्श किये बिना न लें।

लेख के अगले भाग में जानिये कि प्री-एक्लेम्पसिया से कैसे बचा जा सकता है।

प्री-एक्लेमप्सिया होने से कैसे बचा जा सकता है?

कुछ बातों का ध्यान रख कर प्री-एक्लेम्पसिया से बचा जा सकता है। हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती कि ये कितने लाभदायक रहेंगे। इनमें ज्यादातर प्री-एक्लेम्पसिया के जोखिम कारणों से बचने के उपाय हैं (1)

  • प्री-एक्लेम्पसिया से बचने के लिए महिला को गर्भावस्था से पूर्व ही स्वयं का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है, जैसे पोष्टिक आहार लेना व व्यायाम करना आदि।
  • अगर गर्भवती के शरीर में कैल्शियम की मात्रा कम है, तो प्री-एक्लेम्पसिया से बचने के लिए कैल्शियम सप्लीमेंट लेने की सलाह दी जा सकती है।
  • अगर गर्भवती प्री-एक्लेम्पसिया के जोखिम कारकों से पीड़ित है (जैसे – मधुमेह, उच्च रक्तचाप, माइग्रेन, आदि) तो उसे एस्पिरिन 75mg लेने की सलाह दी जा सकती है।

नोट: ध्यान रखें कि बताई गई दवा डॉक्टर से परामर्श किए बिना न लें।

आगे जानिये कि प्री-एक्लेम्पसिया होने से महिला को किस तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।

प्री-एक्लेमप्सिया से आने वाली जटिलताएं

प्री-एक्लेम्पसिया एक गंभीर समस्या है, जिसके चलते गर्भवती को कई जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है (1)

  • प्रीटर्म सिजेरियन डिलीवरी – निर्धारित समय से पहले सिजेरियन डिलीवरी।
  • हेल्प सिंड्रोम (HELLP): इसमें लाल रक्त कोशिकाएं टूटने लगती हैं, प्लेटलेट्स कम होने लगते हैं और लिवर एंजाइम बढ़ने लगते हैं।
  • प्लेसेंटा में समस्या: प्री-एक्लेम्पसिया में प्लेसेंटा गर्भाशय की आतंरिक दीवार से अलग हो जाता है। ऐसा होने से गर्भवती के गर्भाशय में भारी रक्तस्त्राव हो सकता है, जो मां और शिशु के लिए जानलेवा हो सकता है।
  • स्ट्रोक: उच्च रक्तचाप से मस्तिष्क में रक्त संचार बिगड़ सकता है, जिससे स्ट्रोक या ब्रेन हेमरेज हो सकता है।
  • किडनी और लिवर फेल्योर।
  • फेंफड़ो में पानी भर जाना।
  • जान का खतरा बढ़ जाना।

प्री-एक्लेम्पसिया सिर्फ गर्भवती के लिए नहीं, बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी खतरनाक हो सकता है।

  • भ्रूण के विकास दर में कमी।
  • प्रीटर्म बर्थ: प्रसव के निर्धारित समय से पहले जन्म।
  • स्टिल बर्थ: गर्भावस्था के 28वें सप्ताह या उसके बाद हुए प्रसव से जन्मे शिशु की मृत्यु।
  • प्रसव के समय प्री-एक्लेम्पसिया से पीड़ित गर्भवती के शिशु को भविष्य में उच्च रक्तचाप, मधुमेह और कोरोनरी आर्टरी डिजीज जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

आगे जानिए कि प्री-एक्लेम्पसिया होने का अधिक जोखिम किसे है।

गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया होने का सबसे अधिक जोखिम किसे है?

गर्भावस्था के दौरान प्री-एक्लेम्पसिया होने का सबसे अधिक जोखिम निम्नलिखित को हो सकता है (5):

  • 20 से कम या 35 या उससे ज्यादा की आयु की महिला को।
  • जुड़वां या उससे ज्यादा की गर्भावस्था में।
  • अगर परिवार में किसी को पहले प्री-एक्लेम्पसिया हुआ हो।

प्री-एक्लेम्पसिया के लिए डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए?

प्री-एक्लेम्पसिया के लक्षण जैसे सिरदर्द, धुंधला दिखना, सांस लेने में तकलीफ, सामान्य से अधिक उल्टी, सूजन, पेट दर्द आदि होने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें (6)। हमने ऊपर प्री-एक्लेम्पसिया के लक्षण विस्तार से बताएं हैं, आप उन्हें भी एक बार जरूर पढ़ें।

क्या मैं प्री-एक्लेमप्सिया से पूरी तरह ठीक हो जाऊंगी?

जी हां, प्री-एक्लेम्पसिया से पूरी तरह ठीक हुआ जा सकता है। ज्यादातर महिलाओं का रक्तचाप प्रसव के बाद कुछ दिनों में ही सामान्य होने लगता है। प्रसव से एक से छह हफ्तों में प्री-एक्लेम्पसिया के लक्षण पूरी तरह खत्म हो जाते हैं (3)

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या प्री-एक्लेमप्सिया होने के बाद भी नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है?

अगर गर्भावस्था 34 हफ्तों से कम की है, तो डॉक्टर निरंतर निगरानी में महिला को प्राकृतिक रूप से गर्भावस्था जारी रखने की सलाह देते हैं। साथ ही, गर्भवती का रक्तचाप कम करने के प्रयास किए जाते हैं, ताकि नार्मल डिलीवरी हो सके। वहीं, अगर महिला अपनी गर्भावस्था के 34 या उससे ज्यादा सप्ताह पूरे कर चुकी है, तो डॉक्टर जल्द से जल्द प्रसव का सुझाव या इंडक्शन जिसमें दर्द की शुरुआत के लिए दवाई दी जाती है, दे सकते हैं (1)

प्री-एक्लेमप्सिया से शिशु पर कैसा फर्क पड़ सकता है?

प्री-एक्लेम्पसिया से अजन्मे शिशु की विकास दर कम हो सकती है। गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया की स्थिति में समय से पहले डिलीवरी (प्रीबर्थ) हो सकती है और जन्म के समय शिशु की मृत्यु भी हो सकती है (1)

क्या ज्यादा चिंता करना प्री-एक्लेमप्सिया का कारण है?

जी हां, ज्यादा चिंता करने से उच्च रक्तचाप की समस्या हो सकती है, जो गंभीर होने पर प्री-एक्लेम्पसिया का रूप ले सकती है (7)

इस आर्टिकल में हमने प्री-एक्लेम्पसिया से जुड़ी लगभग हर जानकारी देने का प्रयास किया है। अगर आप गर्भधारण करने के बारे में सोच रही हैं, तो जितना हो सके खुद को स्वस्थ रखने का प्रयास करें, ताकि प्री-एक्लेम्पसिया आपको आसपास तक न फटके। वहीं, अगर आप गर्भवती हैं और प्री-एक्लेम्पसिया से पीड़ित हैं, तो इस आर्टिकल में दी गई जानकारी आपके काम आ सकती है। उचित दवा, आहार, व्यायाम और डॉक्टरी मार्गदर्शन की मदद से इसे नियंत्रित किया जा सकता है और इसकी जटिलताओं से बचा जा सकता है। लेख से जुड़ा कोई भी सवाल या सुझाव आप नीचे दिए कमेंट बॉक्स में लिख कर हम तक पहुंचा सकती हैं।

References

1. Preeclampsia by National Health Portal
2. Hypertensive Disorders of Pregnancy by NCBI
3. What are the treatments for preeclampsia, eclampsia, & HELLP syndrome by U.S Department of Health and Human Services
4. Preeclampsia and Eclampsia by Cedars-Sinal
5. Preeclampsia by U.S National Library of Medicine
6. Preeclampsia – self-care by MedlinePlus
7. Will stress during pregnancy affect my baby by U.S Department of Health and Human Services

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