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किसी भी महिला के लिए गर्भावस्था उसके जीवन का सबसे खूबसूरत समय होता है। वजह यह है कि इस समय एक महिला को पहली बार मां होने का एहसास होता। साथ-साथ कई शारीरिक और मानसिक जटिलताओं का सामना भी करना पड़ता है। इन्हीं समस्याओं में डायस्टेसिसि रेक्टि की समस्या भी शामिल है। डिलिवरी के बाद कई महिलाएं इस परेशानी का सामना करती हैं। मगर, उन्हें इस समस्या के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है। जानकारी की इस कमी के कारण डायस्टेसिसि रेक्टि की यह समस्या गंभीर रूप ले सकती है। यही वजह है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में हम प्रसव के बाद होने वाली डायस्टेसिसि रेक्टि की समस्या के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। साथ ही यहां आपको डायस्टेसिसि रेक्टि के कारण और इससे बचाव के तरीके भी पता चलेंगे।
तो आइए सबसे पहले जानते हैं कि गर्भावस्था में डायस्टेसिसि रेक्टि क्या है।
डायस्टेसिसि रेक्टि की समस्या क्या है?
डायस्टेसिसि रेक्टि महिलाओं में गर्भावस्था के समय या प्रसव के बाद के होने वाली एक आम समस्या है (1)। दरअसल, पेट में रेक्टी एब्डोमिनल मांसपेशियां होती हैं, जो लाइनिया अल्बा (सफेद रेशेदार धारी, जो पेट के दाएं और बाएं हिस्से को आपस में जोड़ती है) से जुड़ी होती हैं। रेक्टी एब्डोमिनल मांसपेशियां जब लाइनिया अल्बा से अलग हो जाती हैं तो मांसपेशियों के बीच खाली जगह बन जाती है। इसे ही डायस्टेसिसि रेक्टि कहते हैं (2)।
आगे अब हम प्रेग्नेंसी के बाद डायस्टैसिस रेक्टी की समस्या होने के कारणों के बारे में जानेंगे।
प्रेग्नेंसी के बाद डायस्टैसिस रेक्टी (पेट की दीवार अलग होना) होने के कारण
रेक्टी एब्डोमिनल मांसपेशियों का कमजोर होना इस समस्या का मुख्य कारण माना जाता है। वजह यह है कि गर्भावस्था के समय हार्मोन में बदलाव और गर्भाशय के विकास के कारण रेक्टी एब्डोमिनल मांसपेशियां में खिंचाव पैदा होता है। वहीं जैसे-जैसे गर्भाशय बढ़ता है, पेट की दाएं और बाएं हिस्से की मांसपेशियां एक दूसरे से अलग हो जाती है। सामान्य तौर पर यह मांसपेशियां प्रसव के बाद धीरे-धीरे अपनी वास्तविक स्थिति में वापस आ जाती हैं। मगर, मांसपेशियों के कमजोर होने की स्थिति में यह मांसपेशियां अपनी वास्तविक स्थिति में वापस नहीं आ पाती हैं और पेट के बीच एक खाली जगह सी बन जाती है। यही वजह है कि इसे डायस्टेसिसि रेक्टि के अलावा एब्डोमिनल सेपरेशन के नाम से भी जाना जाता है (3)।
लेख के इस भाग में हम बता रहे हैं कि किन महिलाओं को डायस्टेसिस रेक्टी के होने का खतरा अधिक होता है।
डायस्टेसिस रेक्टी होने का खतरा किसे सबसे अधिक है?
लेख में आपको पहले ही बताया जा चुका है कि रेक्टी एब्डोमिनल मांसपेशियों का कमजोर होना डायस्टेसिसि रेक्टि का मुख्य कारण माना जाता है। वहीं कुछ स्थितियां ऐसी भी है, जिनके कारण यह मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं। इन्हें डायस्टेसिसि रेक्टि के जोखिम कारकों के रूप में देखा जा सकता है। यह स्थितियां कुछ इस प्रकार हैं (3) (4):
- मां की उम्र का ज्यादा होना: अधिक उम्र में गर्भवती होने वाली महिलाओं में डायस्टेसिस रेक्टी होने का खतरा अधिक होता है।
- मल्टीपल प्रेगनेंसी: ट्विन्स और ट्रिप्लेट्स बच्चे होने पर भी डायस्टेसिस रेक्टी होने का खतरा अधिक होता है। ऐसा गर्भाशय में बच्चों के विकास के साथ बढ़ रहे वजन का मांसपेशियों पर दबाव बढ़ने के कारण होता है।
- सीजेरियन सेक्शन: सीजेरियन डिलीवरी के बाद भी डायस्टेसिस रेक्टि होने की आशंका अधिक रहती है।
- अधिक वजन: गर्भवती महिला का अधिक वजन भी डायस्टेसिस रेक्टी होने का जोखिम बढ़ा सकता है।
- अधिक वजन के साथ बच्चे का जन्म : गर्भवती महिला के पेट में पल रहे बच्चे का वजन सामान्य से ज्यादा होने पर भी डायस्टेसिस रेक्टी की समस्या हो सकती है।
- कई बार मां बनना : कई बार मां बनना यानी तीन या उससे अधिक बार गर्भवती होने कारण भी यह स्थिति पैदा हो सकती है।
लेख के अगले भाग में अब हम डायस्टेसिस रेक्टि का खुद से पता लगाने का तरीका बताएंगे।
डायस्टेसिस रेक्टि होने का पता कैसे लगाएं?
डायस्टेसिस रेक्टि का खुद से पता लगाना बेहद आसान है। मगर, इसका सही तरीका पता रहना जरूरी है। नीचे हम बता रहे हैं कि डायस्टेसिस रेक्टी का घर पर टेस्ट कैसे करना चहिए (4)।
- सबसे पहले मैट या कोई चादर बिछाकर जमीन के बल लेट जाएं।
- इसके बाद अपने घुटनों को मोड़ते हुए तलवों को जमीन से सटाकर रखें।
- अब अपने पेट के बीच के हिस्से यानी नाभी के नीचे एक हाथ को रखें।
- इसके बाद उंगलियों के सहारे पेट को हल्का सा दबाएं।
- फिर इसी स्थिति में अपने सिर को जमीन से थोड़ा ऊपर उठाएं।
- ध्यान रहे, इस दौरान कंधे जमीन पर ही रहेंगे।
- अब इस स्थिति में रहकर अपनी उंगलियों से महसूस करें कि पेट के दाएं और बाएं हिस्से के मध्य कितना खाली स्थान है (एक उंगली, दो उंगली या फिर उससे अधिक)।
नोट :- बेशक इस तरीके से घर पर डायस्टेसिस रेक्टि का पता लगाया जा सकता है, लेकिन इसकी पुष्टि के लिए डॉक्टर से परामर्श करना आवश्यक है।
लेख में आगे बढ़कर अब हम डायस्टेसिस रेक्टि के इलाज के संबंध में थोड़ा जान लेते हैं।
डायस्टेसिस रेक्टि के लिए ट्रीटमेंट
ज्यादातर महिलाओं में डायस्टेसिस रेक्टी के इलाज की जरूरत नहीं होती है। 6-8 हफ्ते में यह परेशानी अपने आप ठीक हो जाती है। यदि पोस्टपार्टम पीरियड के बाद भी यह समस्या बनी रहती है तो इसके लिए फिजियोथेरेपी यानी कुछ खास एक्सरसाइज का सहारा लिया जा सकता है। डायस्टेसिस रेक्टि को कम करने में एक्सरसाइज फायदेमंद मानी गई है (1)। वहीं अगर फिजियोथेरेपी से डायस्टेसिस रेक्टि के लक्षणों से राहत नहीं मिलती है तो सर्जरी की सलाह दी जाती है। इसके लिए ओपन और लैप्रोस्कोपिक दोनों में से कोई भी सर्जरी कराई जा सकती है (5)।
आगे जानिए डायस्टेसिस रेक्टि से होने वाली गंभीर परेशानियों के बारे में।
डायस्टेसिस रेक्टि से जुड़े जोखिम
अगर समय रहते किसी समस्या का इलाज न कराया जाए या लापरवाही बरती जाए, तो इसके नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। ऐसा ही डायस्टेसिस रेक्टि के साथ भी मुमकिन है। इस स्थिति में सतर्कता न बरतने पर कुछ गंभीर स्थितियां पैदा हो सकती हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं :
- अम्बिलिकल हर्निया: डायस्टेसिस रेक्टि में एब्डोमिनल मांसपेशियों में अधिक गैप आ जाता है। ऐसे में कई बार यह डायस्टेसिस रेक्टि के कारण अम्बिलिकल हर्निया (नाभि के पास मौजूद कमजोर मांसपेशियों से आंत का बाहर आना) की स्थिति पैदा हो सकती है (6)।
- पोस्चर खराब होना: पेट की मांसपेशियों के लंबे समय तक अलग रहने के कारण रीढ़ और कूल्हे की सामान्य स्थिति पर प्रभाव पड़ सकता है। इससे आगे चलकर पोस्चर खराब होने का खतरा बढ़ सकता है (1)।
- पेल्विक फ्लोर डिसफंक्शन: पेट की मांसपेशियों में कमजोरी आने के कारण कई बार पेल्विक पेन व पेल्विक फ्लोर डिसफंक्शन की शिकायत हो सकती है (1)। इसमें पेट साफ न होना या दस्त और मूत्र को रोकने की क्षमता का कम होना जैसी स्थितियां देखने को मिल सकती हैं।
- हिप पेन: कई मामलों में यह कूल्हे में दर्द का कारण बन सकता है (1)।
लेख में आगे बढ़ते हुए जानिए कि डायस्टेसिस रेक्टि से बचाव कैसे किया जा सकता है।
डायस्टेसिस रेक्टि से बचाव
डायस्टेसिस रेक्टि की स्थिति में कुछ विशेष बातों का ध्यान रख इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। ध्यान रखने योग्य यह बातें कुछ इस प्रकार हैं :
- डायस्टेसिस रेक्टि के दौरान एक्सरसाइज को फायदेमंद माना गया है। मगर, ऐसी किसी भी एक्सरसाइज को करने से परहेज करने की सलाह भी दी जाती है, जिसके कारण पेट की मांसपेशियों पर बाहर की ओर जोर आए। इसलिए किसी भी एक्सरसाइज को करने से पहले अपने चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
- क्रंचेजस, सिटअप्स, प्लैंक्स जैसी एक्सरसाइज को तब तक नहीं करना चाहिए, जब तक आपकी पेट की मांसपेशियां ठीक से काम करना शुरू नहीं कर देती हैं।
- किसी भारी सामान को उठाने से बचें।
- बच्चे को कमर के सहारे न उठाएं। ऐसा करने से पेट और कूल्हों दोनों में दर्द की स्थिति पैदा हो सकती है।
लेख के इस भाग में हम डायस्टेसिस रेक्टि के लिए उपयोगी कुछ एक्सरसाइज के बारे में बता रहे हैं।
डायस्टेसिस रेक्टि में उपयोगी व्यायाम | Diastasis Recti After Pregnancy Exercise In Hindi
डायस्टेसिस रेक्टि की समस्या से राहत पाने के लिए पेट की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने वाली एक्सरसाइज को प्रभावी माना जाता है (7)। इसलिए यहां हम कुछ ऐसी एक्सरसाइज बता रहे हैं, जो रेक्टी मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद कर सकती हैं। मगर, इन एक्सरसाइज के अभ्यास की शुरुआत किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही करनी चाहिए। वजह यह है कि आपके द्वारा की गई छोटी सी लापरवाही किसी बड़ी मुसीबत को दस्तक दे सकती है।
1. बर्ड डॉग एक्सरसाइज
- सबसे पहले योग मैट बिछाकर घुटनों के बल बैठ जाएं।
- इसके बाद आगे की ओर झुकते हुए दोनों हाथों को जमीन से लगाएं और शरीर को ठीक उस स्थिति में लाएं जैसे एक कुत्ता अपने चारों पैरों पर सीधा खड़ा होता है।
- इस दौरान सुनिश्चित करें कि घुटने और कूल्हों के साथ हाथों और कंधे के मध्य 90 डिग्री का कोण बन रहा हो।
- इसके बाद सुनिश्चित करें कि पीठ बिल्कुल सीधी रहे।
- फिर अपने बाएं हाथ और दाएं पैर को जमीन से उठाते हुए बिल्कुल सीधा फैलाएं और 5 सेकेंड के लिए इसी अवस्था में रुकें।
- बाद में अपने हाथ और पैर को वापस जमीन पर ले आएं और फिर यही प्रक्रिया दाएं हाथ और बाएं पैर के साथ दोहराएं।
- शुरुआती अभ्यास में इस एक्सरसाइज के तीन से चार चक्र पूरे किए जा सकते हैं।
2. मर्जरी आसन
- इस एक्सरसाइज को करने के लिए सबसे पहले एक चटाई बिछाकर वज्रासन की मुद्रा में बैठें।
- फिर दोनों हाथों को सामने की तरफ फैलाकर जमीन पर रखें।
- सुनिश्चित करें कि इस स्थिति में पीठ बिल्कुल सीधी रहे।
- इसके बाद सांस छोड़ते हुए गर्दन को नीचे की ओर झुकाते हुए ठोड़ी को सीने से लगाएं।
- बाद में पेट वाले भाग को ऊपर की ओर गोलाकार में उठाएं।
- फिर धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर को ऊपर की तरफ उठाएं और पेट वाले हिस्से को नीचे की तरफ दबाएं।
- इस अवस्था में पीठ और सीने पर हल्का तनाव महसूस होगा।
- ध्यान रहे, इस एक्सरसाइज का अभ्यास जोर जबरदस्ती से बिल्कुल न करें।
- शुरुआत में इस एक्सरसाइज का अभ्यास करीब 10 से 15 मिनट तक किया जा सकता है।
3. सेतुबंधासन (ब्रिज पोज)
- सेतुबंधासन करने के लिए पीठ के बल लेट जाएं।
- घुटनों को मोड़ लें और एड़ियों को नितंबों से सटा लें।
- फिर दोनों हाथों से एडियों को पकड़ लें।
- अब धीरे-धीरे सांस लेते हुए कमर को ऊपर की तरफ उठाएं।
- इसके बाद ठोड़ी को छाती से लगाने की कोशिश करें।
- करीब 20 से 30 सेकेंड तक इसी अवस्था में रहने का प्रयास करें।
- अंत में सांस छोड़ते हुए अपनी प्रारम्भिक स्थिति में वापस आ जाएं।
- एक बार में इस एक्सरसाइज का अभ्यास करीब 4 से 5 बार तक किया जा सकता है।
4. साइड प्लैंक
- साइड प्लैंक करने के लिए सबसे पहले बाई ओर करवट लेकर लेट जाएं।
- घुटनों को बिल्कुल सीधा रखें।
- इसके बाद बाएं हाथ पर जोर देते हुए धीरे-धीरे शरीर के ऊपरी हिस्से को उठाएं।
- इस दौरान सुनिश्चित करें कि शरीर बिल्कुल सीधा रहे और बिल्कुल भी हिले नहीं।
- साथ ही इस दौरान पेट की मांसपेशियों को भी ढीला न छोड़ें।
- इस स्थिति में करीब 30 सेकेंड बने रहने का प्रयास करें और सामान्य गति से सांस लेते रहें।
- 30 सेकेंड का अभ्यास होने के बाद धीरे-धीरे 60 सेकेंड फिर 90 सेकेंड के सेट में इस एक्सरसाइज को किया जा सकता है।
5. सिंग्ल लेग लिफ्ट
- पीठ के बल सीधा लेट जाएं।
- दोनों हाथों को फ्लोर पर सीधा रखें।
- अब बाएं पैर को जमीन पर जमाते हुए दाएं पैर को सीधे आसमान की ओर जितना संभव हो उठाएं।
- कुछ सेकेंड इस स्थिति में रुकने के बाद प्रारम्भिक स्थिति में आ जाएं।
- इसके बाद इस प्रक्रिया को ठीक वैसे ही दूसरे पैर के साथ करें।
- करीब 20-20 बार इस प्रक्रिया को दोनों पैरों से करने का प्रयास करें।
अब तो आप अच्छे से समझ गए होंगे कि डायस्टेसिस रेक्टि एक सामान्य समस्या है। इसलिए गर्भावस्था के बाद इसे लेकर अधिक परेशान होने की जरूरत नहीं है। मगर, इसका मतलब यह भी नहीं है कि इसे हल्के में ले लिया जाए। इसलिए गर्भावस्था के बाद अगर किसी को संदेह होता है कि उसे डायस्टेसिस रेक्टि है तो बिना देर किए इसकी जांच कराएं और बचाव संबंधी तरीकों को अपनाएं। इसके लिए लेख में शामिल बचाव के तरीके और प्रभावी व्यायाम को अपनाया जा सकता है। उम्मीद है, गर्भावस्था से जुड़ी डायस्टेसिस रेक्टि की समस्या को समझने में यह लेख सभी के लिए लाभकारी सिद्ध होगा। गर्भावस्था से जुड़े ऐसे ही अन्य विषयों के बारे में जानने के लिए पढ़ते रहें मॉमजंक्शन।
References
2. Prevalence and risk factors of diastasis recti abdominis from late pregnancy to 6 months postpartum, and relationship with lumbo-pelvic pain By Sciencedirect
3. Neuromuscular Electrical Stimulation and Strength Recovery of Postnatal Diastasis Recti Abdominis Muscles By Ncbi
4. Diastasis recti By Medlineplus
5. Treatment Options for Abdominal Rectus Diastasis By Ncbi
6. Management of Diastasis of the Rectus Abdominis Muscles: Recommendations for Swedish National Guidelines By Sagepub
7. Efficacy of deep core stability exercise program in postpartum women with diastasis recti abdominis: a randomised controlled trial By Ncbi
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