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अवसाद ऐसी समस्या है, जिसका शिकार कोई भी हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान भी यह समस्या देखी जा सकती है। गर्भावस्था में अवसाद होने की आशंका लगभग 4 से 20 प्रतिशत होती है (1) यह समस्या कई कारणों से हो सकती है, जिसकी वजह से गर्भवती व गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए, जरूरी है कि प्रेगनेंसी में अवसाद से जुड़ी जरूरी बातें आपको पता होनी चाहिए। यही वजह है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में हम गर्भावस्था में अवसाद के कारण, इसके लक्षण और इसके इलाज के बारे में विस्तारपूर्वक बता रहे हैं। इसके अलावा, इससे जुड़ी अन्य जरूरी जानकारी भी आपके साथ साझा की जाएगी।

आइए, सबसे पहले समझते हैं कि गर्भावस्था में अवसाद क्या होता है।

गर्भावस्था में अवसाद क्या है?

अवसाद एक गंभीर मूड डिसऑर्डर है, जो हफ्तों या महीनों तक व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित कर सकता है। यह समस्या पीड़ित व्यक्ति की दिनचर्या को भी प्रभावित करने लगती है। वहीं, यह समस्या गर्भावस्था के दौरान भी देखी जा सकती है। इसमें महिला किसी कारण या बिना किसी कारण के उदास, चिंतित और निराश हो जाती है या गिल्ट महसूस करती है। गर्भावस्था में अवसाद कई कारणों से हो सकता है और सभी महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान अवसाद एक समान नहीं होता (2)। नीचे इसके कारणों को विस्तारपूर्वक बताया गया है।

आगे विस्तार से जानिए गर्भावस्था के दौरान अवसाद होने के कारणों के बारे में।

प्रेगनेंसी में डिप्रेशन के कारण

नीचे बताए गए कुछ जोखिम कारक गर्भावस्था में डिप्रेशन के कारण बन सकते हैं (3)

  • वो महिलाएं जो पहले डिप्रेशन या बाइपोलर डिसऑर्डर की मरीज रह चुकी हैं।
  • वो महिलाएं जो पिछली गर्भावस्था के बाद अवसाद (पोस्टपार्टम डिप्रेशन) का शिकार रह चुकी हैं।
  • जिनके परिवार में मानसिक विकार का इतिहास रहा हो।
  • जो महिलाएं प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (पीरियड्स से पहले सामान्य से अधिक मूड स्विंग्स और शारीरिक पीड़ा)
  • जो महिलाएं बाल उत्पीड़न से गुजरी हों।
  • कम उम्र में गर्भावस्था।
  • अनप्लांड गर्भावस्था।
  • तीन या उससे ज्यादा बच्चे होना।
  • सोशल सपोर्ट की कमी।
  • जो महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हों या रही हों।
  • धूम्रपान या शराब का सेवन।
  • शिक्षा की कमी और बेरोजगारी।

लेख में आगे जानिए प्रेगनेंसी में डिप्रेशन के लक्षण के बारे में।

प्रेगनेंसी में डिप्रेशन के लक्षण

नीचे कुछ ऐसे लक्षण बताएं गए हैं, जिनकी मदद से गर्भावस्था के दौरान अवसाद के बारे में पता लगाया जा सकता है (4)

  • मन उदास रहना।
  • आत्मविश्वास की कमी।
  • बहुत कम या सामान्य से अधिक खाना।
  • सामान्य से ज्यादा सोना या बिलकुल नींद आना।
  • थकान या ऊर्जा की कमी।
  • उदास या निराश होने की भावना।
  • बिना कारण के रोना आना।
  • उन चीजों में रुचि न होना, जिनमें पहले रहती थी।

आगे जानिए अवसाद किस प्रकार गर्भावस्था को प्रभावित करता है।

डिप्रेशन की वजह से प्रेगनेंसी पर क्या असर पड़ सकता है?

अवसाद कई तरीकों से गर्भावस्था को प्रभावित कर सकता है एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन) द्वारा प्रकाशित एक शोध में इस बात को साफ किया गया है कि महिला की इस अवस्था पर समय रहते ध्यान देना जरूरी है। अगर ऐसा न किया गया, तो यह महिला के कम खाने, कम आराम और अधिक परेशान होने की वजह बन सकता है। इसके कारण कई गंभीर परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं, जैसे गर्भपात या गर्भावस्था के बाद अवसाद (पोस्टपार्टम डिप्रेशन)। भविष्य में यह महिला को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित कर सकता है (4)

  • ऐसा लगना जैसे बच्चे की देखभाल करने में असक्षम हैं।
  • अत्यधिक चिंता और पैनिक।
  • निर्णय लेने में दिक्कत।
  • उदास रहना।
  • निराश रहना।
  • नियंत्रण में रहने में समस्या होना।

अवसाद होने वाले शिशु की सेहत को भी प्रभावित कर सकता है। जानिए कैसे।

क्या डिप्रेशन की वजह से बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है?

महिला की यह स्थिति उसके होने वाले शिशु को कई तरीकों से प्रभावित कर सकती है। डिप्रेशन के कारण गर्भवती की अनियमित जीवन शैली की वजह से शिशु का समय से पहले जन्म (प्रीटर्म बर्थ) हो सकता है और जन्म के समय कम वजन (लो बर्थ वेट) हो सकता है। अगर महिला के डिप्रेशन का समय रहते इलाज नहीं किया गया, तो यह शिशु के जन्म के बाद भी जारी रह सकता है। ऐसे मामलों में मां का अपने शिशु के प्रति प्रेम या उसके प्रति देखभाल का भाव प्रभावित हो सकता है। इस दौरान मां के बर्ताव पर शिशु का विकास निर्भर करता है और अगर यह अवसाद लंबे समय तक चला, तो बच्चे की उम्र व उसके सोचने-समझने की क्षमता के अनुसार यह उसपर मानसिक रूप से गहरा असर डाल सकता है।

अपनी मां से भावनात्मक रूप से ज्यादा न जुड़े बच्चों के जीवन में निम्नलिखित परिस्थितियां भी पैदा हो सकती हैं, जैसे (4)

  • अपनी मां से खुल कर बात करने में हिचकिचाहट।
  • मां के आसपास रहने में दिक्कत।
  • उनसे बेवजह नाराज रहना।
  • अधिक गुस्सा आना।
  • अन्य बच्चों की तुलना में मानसिक विकास देर से होना।
  • दूसरों से बात न करने का मन होना।
  • अनुशासन में न रहना।
  • स्कूल में अच्छा परफॉर्म न कर पाना।
  • व्यवहार सही न होना।
  • एकाग्रता की कमी।
  • भविष्य में एंग्जायटी और अवसाद होने का जोखिम।

लेख के अगले भाग में जानिए प्रेगनेंसी में अवसाद का इलाज कैसे किया जा सकता है।

प्रेगनेंसी में अवसाद का इलाज

गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन का इलाज नीचे बताए गए तरीकों से किया जा सकता है (4):

  1. दवाइयां – डिप्रेशन का इलाज करने के लिए डाक्टर गर्भवती महिला को एंटी डिप्रेसेंट दवाइयां या गंभीर डिप्रेशन का इलाज करने के लिए एसएसआरआई (सेलेक्टिव सेरोटोनिन रूप्टेक इनहिबिटर) लेने की सलाह दे सकते हैं।
  1. व्यक्तिगत थेरेपी – किसी साइकोलॉजिस्ट या सायकायट्रिस्ट से बात करना।
  1. पारिवारिक थेरेपी – अपने परिवार के सदस्य जैसे पति या बच्चों के साथ मिलकर मनोचिकित्सक से थेरेपी लेना।
  1. सोशल सपोर्ट – इस तरह के सोशल ग्रुप से जुड़ना, जिनमें इसी समस्या से ग्रसित कई लोग मौजूद हों और सबके साथ अपनी परेशानी बांटना।

आगे जानिए इस दौरान किन दवाओं का सेवन किया जा सकता है।

क्या गर्भावस्था में अवसाद का इलाज करने के लिए कोई सुरक्षित दवा है?

प्रेगनेंसी में डिप्रेशन के दौरान नीचे बताई गई दवाइयां ली जा सकती हैं (3)

  • सेलेक्टिव सेरोटोनिन रूप्टेक इनहिबिटर (SSRIs) जैसे फ्लुक्सोटाइन, पैरोक्सेटाइन, सेर्टालाइन, सिटालोप्राम।
  • सेलेक्टिव सेरोटोनिन और नॉरपेनेफ्रिन रीप्टेक इनहिबिटर (SSNRIs) जैसे वेन्लाफैक्सिन।
  • एंटीडिप्रेसेंट जैसे मिरटाजपाइन और बुप्रोपियन। 

नोट : इनमें से किसी भी दवा का सेवन डॉक्टर से परामर्श किए बिना न करें।

आगे जानिए दवाइयों के अलावा इस समस्या का इलाज कैसे किया जा सकता है।

प्रेगनेंसी में अवसाद कम करने के अन्य उपाय

  1. जरूरी पोषक तत्व – जैसा कि हमने बताया कि अवसाद महिला को गर्भावस्था के बाद भी प्रभावित कर सकता है, जिसका एक कारण शरीर में जरूरी पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। इसमें फोलेट, विटामिन-डी, आयरन, सेलेनियम, जिंक और जरूरी फैट शामिल हैं। ऐसे में इन पोषक तत्वों से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन कर प्रेगनेंसी के दौरान और प्रेगनेंसी के बाद आराम पाया जा सकता है (5)। फिलहाल, इस विषय पर अभी और शोध की आवश्यकता है। वहीं, खाद्य पदार्थों से जुड़ी जानकारी के लिए संबंधित डॉक्टर और डाइटीशियन से संपर्क किया जा सकता है।
  1. एक्सरसाइज – एनसीबीआई द्वारा प्रकाशित एक शोध में यह सिद्ध किया गया है कि हफ्ते में कम से कम एक बार शारीरिक गतिविधि करना डिप्रेशन के लक्षणों को कम करने और उससे बचाने में लाभदायक साबित हो सकता है (6)
  1. भरपूर आराम – गर्भावस्था के दौरान आराम या नींद की कमी अवसाद की स्थिति और गंभीर बना सकती है। ऐसे में जरूरी है कि गर्भवती महिला जरूरत अनुसार आराम करें और अधिक स्ट्रेस न लें (7)
  1. एक्यूपंक्चर – एक्यूपंक्चर को गर्भावस्था के दौरान अवसाद का इलाज करने के लिए एक प्रभावी विकल्प बताया गया है। माना जाता है कि अन्य इलाजों की तुलना में एक्यूपंक्चर अवसाद और उसके लक्षणों को कम करने में सहायक हो सकता है। ध्यान रहे कि गर्भावस्था में एक्यूपंक्चर डॉक्टरी सलाह पर और किसी एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ से ही करवाया जाए।

आगे जानिए प्रेगनेंसी में अवसाद से कैसा बचा जा सकता है।

प्रेगनेंसी में डिप्रेशन होने से कैसे बचा जा सकता है?

कुछ आम बातों का ध्यान रखने से गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन से बचा जा सकता है, जैसे –

  • धूम्रपान और शराब का सेवन न करें।
  • नियमित रूप से व्यायाम करें।
  • वो चीजें करें, जो करना पसंद हो, जैसे अपनी मनपसंद किताब पढ़ना, फिल्म देखना, पेंट करना, आदि।
  • किसी भी परिस्थिति या भविष्य में होने वाली संभावित मुश्किलों के बारे में ज्यादा न सोचें।
  • अगर कोई बात परेशान कर रही हो, तो उस बारे में अपने पार्टनर, दोस्त या परिवार के किसी अन्य सदस्य से बात करें।
  • संतुलित और स्वस्थ आहार का सेवन करें।
  • सुबह और शाम थोड़ी देर वॉक करें और स्वयं के साथ समय बिताएं।
  • ऐसे लोगों से बात करने से बचें, जो आपकी मानसिक शांती को भंग करते हों।
  • अपनी जरूरत के अनुसार भरपूर नींद लें।
  • अगर आप डिप्रेशन की दवा ले रही हैं, तो डॉक्टर से बिना पूछे बंद न करें। .

आगे जानिए कि कब लें डॉक्टरी सलाह।

डॉक्टर के पास कब जाएं

गर्भवती महिला को अगर ऊपर बताए गए लक्षणों का एहसास होता है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। लक्षणों को देखते हुए डॉक्टर जरूरी इलाज कर सकता है या किसी थेरेपिस्ट के पास जाने की सलाह दे सकता है।

दोस्तों, गर्भावस्था के दौरान शारीरिक स्वास्थ्य जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी महिला का मानसिक रूप से स्वस्थ रहना भी है। हम आशा करते हैं कि इस लेख के जरिए यह बात आपको अच्छी तरह समझ आ गई होगी। साथ ही यह भी समझ आ गया होगा कि इस दौरान मानसिक स्वास्थ पर ध्यान न देने के परिणाम गंभीर भी हो सकते हैं। यहां ध्यान दें कि प्रेगनेंसी किसी भी महिला के लिए एक बहुत खूबसूरत समय होता है और अगर आप भी गर्भवती हैं, तो इस समय का भरपूर आनंद उठाएं, अच्छा खाएं, पूरी नींद लें और अपना अच्छी तरह से ख्याल रखें।

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