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कई महिलाओं को इनफर्टिलिटी के कारण गर्भधारण करने में परेशानी आ सकती है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कई तरह के टेस्ट किए जा सकते हैं, जिनमें से एक फॉलिक्युलर स्टडी टेस्ट भी है। इस टेस्ट की मदद से गर्भधारण करना आसान हो सकता है। अगर आपको पता नहीं है कि फॉलिक्युलर स्टडी टेस्ट क्या होता है, तो मॉमजंक्शन के इस लेख के माध्यम से इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस लेख में दी गई जानकारी वैज्ञानिक रिसर्च के आधार पर है।

आइए, सबसे पहले जानते है कि फॉलिक्युलर स्टडी होती क्या है।

फॉलिक्युलर स्टडी किसे कहते हैं?

प्रत्येक महिलाओं के अंडाशय (ओवरी) में ओवेरियन फॉलिकल पाए जाता है, जो तरल पदार्थ से भरी एक तरह की थैली होती है। ये फॉलिकल्स महिलाओं में जन्म से ही लाखों की संख्या में होते हैं। हर फॉलिकल में अपरिपक्व अंडे होते हैं, जिनमें से कुछ मासिक धर्म के समय विकसित होने लगते हैं। जब महिला मासिक धर्म चक्र के मध्य में पहुंची है, तो सिर्फ एक अंडा पूरी तरह से विकसित हो पाता है, जिसे डॉमिनेंट फॉलिकल यानी प्रधान फॉलिकल कहा जाता है (1)। अंडे के विकास की प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए डॉक्टर मासिक चक्र के शुरुआत से फॉलिक्युलर स्टडी या फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इसके लिए अल्ट्रासाउंड स्कैन की मदद ली जाती है (2)

इसके अगले भाग में हम बताएंगे कि फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग को किस लिए किया जाता है।

फॉलिक्युलर स्टडी की जरूरत क्यों है?

कुछ महिलाओं को बांझपन संबंधित समस्या का सामना करना पड़ता है। इसमें सुधार करने के लिए फॉलिक्युलर स्टडी की सहायता ली जा सकती है। इसके अलावा जब किसी महिला को पीरियड्स बराबर नहीं आते और वो गर्भवति होने का प्रयास कर रही है तो भी डॉक्टर फॉलिक्युलर स्टडी की सलाह दे सकते हैं। फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग की आवश्यकता तब ज्यादा होती है, जब कोई महिला IVF (इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन) का सहारा लेकर गर्भधारण करने का प्रयास करती है। इस मॉनिटरिंग की सहायता से यह पता लगाया जा सकता है कि महिलाओं में ओवुलेशन के दौरान एक समय में कितने अंडे विकसित होते हैं और वे अंडे सही हैं या नहीं। अगर ठीक तरह से फर्टिलिटी नहीं हो पा रही है, तो इसे ठीक करने के लिए डॉक्टर दवाई दे सकते हैं। इससे गर्भधारण करने में आसानी हो सकती है (2)

लेखे में आगे आप जानेंगे कि फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड की जरूरत किसे नहीं होती है।

फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड कौन नहीं करवा सकता है?

इस बारे में स्पष्ट तौर पर कहना मुश्किल है, लेकिन अगर आपको किसी तरह की एलर्जी है तो इसकी जानकारी अपने डॉक्टर को दें। वैसे तो फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। कुछ महिलाओं को इसमें इस्तेमाल की जाने वाली जेल से एलर्जी हो सकती है। ऐसे में डॉक्टर अल्ट्रासाउंड के समय उस जेल का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

आइए, अब जान लेते हैं कि फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग गर्भधारण करने में फायदेमंद है या नहीं।

क्या फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग गर्भधारण करने में मदद कर सकती है? | Follicular Study And Pregnancy In Hindi

जी हां, फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग से गर्भधारण करने में मदद मिल सकती है। इस मॉनिटरिंग की मदद से पता लगाया जा सकता है कि मासिक चक्र में किस समय डिंबोत्सर्जन होगा। मासिक चक्र पर फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग के जरिए नजर रखते समय ओव्यूलेशन प्रेडिक्टर किट का उपयोग करना भी फायदेमंद हो सकता है। इससे ओव्यूलेशन के सही समय को पहचानने में मदद मिल सकती है। फिर उस तय समय में शारीरिक संबंध बनाने पर गर्भवती होने की संभावना बढ़ सकती है। साथ ही फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग से ओव्यूलेशन से जुड़ी कुछ समस्याओं के बारे में भी पता लगाया जा सकता है, जिनके कारण गर्भधारण करने में रुकावट उत्पन्न होती है।

वहीं, अगर ओव्यूलेशन होने के बाद भी महिला गर्भवती नहीं हो पा रही है, तो फॉलिक्युलर स्टडी के जरिए इस कारण का पता लगाना मुश्किल है। फॉलिक्युलर टेस्ट के दौरान कई बार डॉक्टर एस्ट्राडियोल (एस्ट्रोजन का एक प्रकार) के स्तर को भी चेक करते रहते हैं, ताकि फॉलिकल के जीवित रहने की क्षमता के बारे में भी पता लगाया जा सके (3)

लेख के अगले भाग में आप फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग की प्रक्रिया के बारे में जानेंगे।

फॉलिक्युलर स्टडी में अल्ट्रासाउंड की प्रक्रिया क्या है?

  •  इसके लिए अल्ट्रासाउंड स्कैन की मदद ली जाती है। इसे मुख्य रूप से सोनोग्राफर या इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ ही कर सकता है।
  • वह ओवरियन फॉलिकल्स के बारे में पता लगाने के लिए योनि में प्रोब को डालकर आंतरिक अंगों की फोटो ले सकता है। यह प्रोब साफ और हाइजीनिक होता है।
  • इस स्कैन प्रक्रिया को करने के लिए महिला को कमर के बल व पैरों को ऊपर करके लेटने की सलाह दी जाती है। इस दौरान पैरों को ऊपर की ओर रखने के लिए सहारा दिया जाता है और महिला को कमर से नीचे तक चादर से ढक दिया जाता है।
  • इसके बाद योनि मार्ग के जरिए प्रोब को शरीर के अंदर भेजा जाता है। इस प्रोब से निकलने वाली अल्ट्रासाउंड फ्रीक्वेंसी शरीर के आंतरिक अंग की फोटो लेती है। इससे गर्भाशय की अंदरूनी परत की मोटाई का पता लगाकर अंडाें के रिलीज होने का सही समय बताया जा सकता है। इससे गर्भधारण करने में मदद मिल सकती है (4)

चलिए जानते हैं फॉलिक्युलर स्कैन किसे करवाने की जरूरत होती है।

फॉलिक्युलर स्कैन की जरूरत किसे होती है?

  • जिनकी उम्र 35 वर्ष से कम है और एक साल से गर्भवती होने के उपाय से लाभ नहीं हो रहा है, तो इस स्टडी के जरिए डिंबोत्सर्जन से जुड़ी समस्याओं की जांच की जा सकती है (3)
  • अगर कोई महिला 35 वर्ष से अधिक उम्र की है और पिछले छह महीने से गर्भधारण करने की कोशिश कर रही है, लेकिन गर्भवती नहीं हो पा रही है।
  • जिन महिलाओं को ओव्यूलेट करने के लिए फर्टिलिटी ड्रग्स यानी प्रजनन दवाएं दी जा रहा हों।
  • अधिक मात्र में फॉलिकल के निर्माण के लिए इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन (आईयूआई) या इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रक्रिया की मदद लेने वाली महिलाओं को यह टेस्ट करवाना चाहिए ।

इस लेख के अगले भाग में आप फॉलिक्युलर ट्रैकिंग स्कैन में लगने वाले समय के बारे में जानेंगे।

फॉलिक्युलर ट्रैकिंग स्कैन में कितना समय लगता है?

फॉलिक्युलर ट्रैकिंग स्कैन कितनी देर में पूरा होगा। यह इस बात पर निर्भर करता है कि ओवरीज में कितनी संख्य में फॉलिकल है। अगर फॉलिकल  की संख्य अधिक है, तो स्कैनिंग में सामान्य से अधिक समय लग सकता है। सामान्य रूप से फॉलिक्युलर ट्रैकिंग स्कैन में 10 से 15 मिनट लग सकते हैं। फिलहाल, इस संबंध में अभी वैज्ञानिक शोध की कमी है, जिससे कि सटीक समय का पता लगाया जा सके (5)

फॉलिक्युलर स्कैन के बारे में और जानकारी के लिए पढ़ते रहें यह लेख।

एक मासिक चक्र में कितने स्कैन होते हैं?

ओवुलेशन के सही समय के बारे में जानने के लिए मासिक्र चक्र के दौरान 4-6 स्कैन करने की जरूरत पड़ सकती है। इसके तहत किया जाने वाला पहला स्कैन विशेषज्ञों को फॉलिकल की शुरुआती स्थिति के बारे में जानने में मदद कर सकता है, जिसे बेस-लाइन स्कैन कहा जा सकता है।

जब पहला स्कैन पूरा हो जाता है, तो डॉक्टर फॉलिकल्स के विकास की प्रक्रिया को जांचने के लिए अगले स्कैन का उचित समय बताते हैं। प्रत्येक स्कैन के साथ ही डॉक्टर यूट्रस की अंदरूनी लेयर और फॉलिकल की समस्या का पता लगा सकते हैं, ताकि ओवुलेशन होने का सही समय पता लगाया जा सके। यह स्कैन डॉक्टर मासिक चक्र शुरू होने के 11वें दिन में कर सकते हैं। स्कैन से संबंधित अधिक जानकारी के लिए आप विशेषज्ञ की मदद ले सकते हैं। फिलहाल, इस पर अभी किसी तरह का वैज्ञानिक शोध उपलब्ध नहीं है।

फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड से क्या लाभ हो सकता है, आइए इस बारे में जानते हैं।

फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड से फायदे क्या हैं

फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड से कुछ लाभ हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं:

  • गर्भधारण करने में मदद मिल सकती है।
  • अंडे का सही से विकास हो सकता है।
  • यह टेस्ट दर्दरहित होता है, इसलिए अन्य पेनफुल टेस्ट को दूर रखने में मदद मिल सकती है।
  • जो महिलाएं लंबे समय से मां नहीं बन पाए है, उनमें गर्भवती होने की उम्मीद जग सकती है।

लेख के अगले हिस्से में हम बताएंगे कि फॉलिकल अल्ट्रासाउंड करने के दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं।

फॉलिकल अल्ट्रासाउंड के साइड इफेक्ट्स क्या हैं?

ऐसा कहा जाता है कि फॉलिकल अल्ट्रासाउंड से किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। वहीं, कुछ अनुभवी महिलाओं का कहना है कि इससे तनाव और चिंता का सामना करना पड़ सकता है। फिलहाल, इस बात की पुष्टि करने के लिए किसी तरह का मेडिकल रिसर्च मौजूद नहीं है।

आइए, अब जानते हैं कि इस स्कैन से क्या पता चलता है।

फॉलिक्युलर स्टडी से क्या-क्या पता चल सकता है?

यह स्कैन गर्भधारण से जुड़ी कई चीजों का पता लगाने में मदद कर सकता है, जो इस प्रकार है:

  • अंडे का विकास सही से हो रहा है या फिर फॉलिकल विकसित होने से पहले ही नष्ट हो चुका है।
  • इस स्कैन की मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि फॉलिकल्स से अंडे का फर्टिलाइजेशन ठीक समय पर हो रहा है या नहीं।
  • गर्भधारण करने में क्या समस्या आ रही है, इसका भी पता लगाया जा सकता है, ताकि गर्भधारण करने के लिए उचित उपाय अपनाया जा सके।

लेख के अंतिम भाग में फॉलिक्युलर स्टडी के साथ किए जाने वाले अन्य टेस्ट के बारे में बताया गया है।

फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड के साथ कौन से अन्य टेस्ट किए जा सकते हैं?

फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड के साथ किए जाने वाले अन्य टेस्ट इस प्रकार हैं:

  • सर्वाइकल म्यूकस टेस्ट: इसमें पोस्ट-कोइटल टेस्ट (पीसीटी) शामिल होता है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि शुक्राणु (स्पर्म) सर्वाइकल म्यूकस में प्रवेश करने और जीवित रहने में सक्षम है या नहीं। इसमें बैक्टीरियल स्क्रीनिंग भी शामिल होती है (6) (7)
  • अल्ट्रासाउंड टेस्ट:  इसका उपयोग गर्भाशय (एंडोमेट्रियम) की परत (lining)  की मोटाई के बारे में पता लगाने के लिए किया जाता है। इसमें मॉनिटर की मदद से फॉलिकल्स के विकास और गर्भाशय व अंडाशय की स्थिति की जांच की जा सकती है। अल्ट्रासाउंड टेस्ट को मासिक चक्र के दो से तीन दिन बाद किया जा सकता है, ताकि अंडे को रिलीज करने की पुष्टि की जा सके (8)
  • हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राम (Hysterosalpingogram): यह एक तरह का एक्स-रे होता है, जो गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब को देखने में मदद कर सकता है। इसके लिए एक खास प्रकार के रेडियो-ओपेक कॉन्ट्रास्टिंग डाई को पतले कैथेटर की मदद से गर्भाशय ग्रीवा में इंजेक्ट किया जाता है। इस डाई के जरिए पता लगाया जा सकता है कि गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब में कोई रुकावट तो नहीं है (9)
  • हिस्टेरोस्कोपी: यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उपयोग उस समय किया जाता है, जब हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राम (एचएसजी) के जरिए किसी रुकावट का पता चलता है। हिस्टेरोस्कोप को गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से डाला जाता है, जिससे गर्भाशय में किसी भी तरह की रुकवाट या निशान को देखा जा सकता है। हिस्टेरोस्कोप के माध्यम से गर्भाशय का फोटो भी लिया जा सकता है (10)
  • लेप्रोस्कोपी: इस प्रक्रिया को करने के लिए महिला को एनेस्थीसिया (शरीर को सुन्न करने वाली दवाई) दिया जाता है। फिर नैरो फाइबर ऑप्टिक टेलीस्कोप की मदद से महिला की जांच की जाती है (11)
  • एंडोमेट्रियल बायोप्सी: एंडोमेट्रियल बायोप्सी के दौरान डॉक्टर गर्भाशय (एंडोमेट्रियम) की परत से कुछ टिश्यू (ऊतक) जांच के लिए निकालते हैं। इस ऊतक की कोशिकाओं को माइक्रोस्कोप की मदद से देखा जाता है, ताकि एंडोमेट्रियम पर हार्मोन के प्रभाव की जांच की जा सके। यह इनफर्टिलिटी टेस्ट अब कम लोगों को ही कराने की सलाह दी जाती है (12)

जो महिलाएं मां नहीं बन पा रही हैं, उनकी निराशा यह लेख पढ़ने के बाद जरूर कम हुई होगी। उन्हें समझ आ गया होगा कि गर्भधारण करने में फॉलिक्युलर स्टडी किस तरह से मददगार साबित हो सकती है। इसके जरिए उनके घर भी नन्हे-मुन्ने की किलकारी जरूर गूंजेगी। हम उम्मीद करते हैं कि हमारे इस लेख में दिए गए सभी जानकारी आपके लिए उपयोग साबित हुई होगी। अगर आप गर्भावस्था से जुड़ी अन्य प्रकार की जानकारी चाहते हैं, तो हमारी वेबसाइट के अन्य लेख भी जरूर पढ़ें।

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