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इस दुनिया में सबसे बड़ी योद्धा मां होती है, जो गर्भावस्था के दौरान और बच्चे को जन्म देने के बाद भी दर्द भरे तूफानों से टकराती है। इनमें से एक अवस्था ऐसी होती है, जिसे प्रसवोत्तर अवसाद या पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं। डिलीवरी के बाद महिलाओं में शारीरिक और मानसिक बदलाव आना स्वाभाविक है। ये बदलाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के हो सकते हैं। बहुत सारी महिलाएं डिलीवरी के बाद तनाव का शिकार होने लगती हैं। कई बार तनाव का स्तर इतना बढ़ जाता है कि यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। यही कारण है कि मॉमजंक्शन के इस आर्टिकल में हम पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्या है, इसके लक्षण, कारण समेत इलाज और बचाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
आइए, सबसे पहले पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में समझते हैं।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्या होता है?
शिशु को जन्म देने के बाद महिला जिस अवसाद से गुजरती है, उसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं। महिला को यह डिप्रेशन डिलीवरी के तुरंत बाद या एक साल बाद तक हो सकता है। ज्यादातर मामलों में यह प्रसव के तीन महीनों के अंदर ही महिला को हो जाता है (1)। इस दौरान महिलाओं में भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक बदलाव नकारात्मक असर डालते हैं। यही कारण है कि प्रसवोत्तर महिलाओं में चिड़चिड़ापन, चिंता, उदासी, निराशा, अकेलापन और भूख कम या ज्यादा लगना समेत कई लक्षण नजर आने लगते हैं (2)।
लेख के अगले भाग में हम बताएंगे कि प्रेगनेंसी के बाद डिप्रेशन होना कितना सामान्य है।
क्या प्रेगनेंसी के बाद डिप्रेशन होना आम है?
प्रेगनेंसी के बाद महिलाओं में अवसाद होना सामान्य है। रिसर्च के अनुसार, प्रसव के बाद 15 प्रतिशत महिलाएं इसका सामना करती हैं। वहीं, पोस्टपार्टम ब्लूज यानी प्रसवोत्तर उदासी 15 से 85% महिलाओं को होती है (3)। इस दौरान चिड़चिड़ापन, चिंता, निराशा, नींद में कमी समेत कई लक्षण नजर आते हैं। अगर ये लक्षण कुछ दिनों या हफ्तों में ठीक हो जाते हैं, तो इसे बेबी ब्लू या पोस्टपार्टम ब्लू कहते हैं। प्रसवोत्तर इसे गंभीर नहीं माना जाता, लेकिन ये लक्षण लंबे समय तक बन रहे, तो यह डिप्रेशन कहलाता है और मां-बच्चे दोनों के लिए गंभीर हो सकता है (4)।
आगे जानिए कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन का अधिक जोखिम कब होता है।
प्रसवोत्तर अवसाद के जोखिम कारक क्या हैं?
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार नीचे बताई गई बातों के कारण पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने का खतरा बढ़ सकता है, जैसे (5) :
- प्रेगनेंसी के दौरान चिंता या अवसाद होना
- हाल ही में कोई तनावपूर्ण घटना जैसे तलाक, किसी अपने को गंभीर बीमारी या मृत्यु होना
- पहले कभी डिप्रेशन हुआ हो
- समाजिक सहयोग की कमी का एहसास
- बच्चे की देखभाल को लेकर परेशान होना
- आत्मसम्मान में कमी महसूस करना
- बच्चे का रोते रहना
- सिंगल पेरेंट होना
- पार्टनर के साथ रिश्ता सही न होना
- आर्थिक स्थिति कमजोर होना
लेख में आगे जानते हैं कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन कितनी तरह का होता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन कितने प्रकार का होता है?
रिसर्च के अनुसार, पोस्टपार्टम डिप्रेशन खुद एक तरह का मूड डिसऑर्डर है। प्रेगनेंसी के बाद कितने प्रकार के मूड डिसऑर्डर होते हैं यानी पोस्टपार्टम मूड डिसऑर्डर के प्रकार हम आगे बता रहे हैं। वैसे, मुख्यत: यह तीन प्रकार के होते हैं, जिसमें पोस्टपार्टम ब्लूज, पोस्टपार्टम डिप्रेशन और पोस्टपार्टम साइकोसिस आते हैं (2)। आगे हम मूड डिसऑर्डर से संबंधित इन तीन मुख्य प्रकार और इससे संबंधित अन्य प्रकार की जानकारी दे रहे हैं:
- पोस्टपार्टम ब्लूज: आमतौर पर इसे बेबी ब्लूज (Baby Blues) कहा जाता है। यह बेबी ब्लूज 15 से 85 फीसदी मांओं को होता है। मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन, थकान, उदासी, आंखों से आंसू आना, इसके मुख्य लक्षण हैं। डिलीवरी के बाद ही महिला को इन लक्षणों का अनुभव होने लग जाता है। यह कुछ दिनों या हफ्तों में बिना किसी नुकसान के चला जाता है, इसलिए इसे गंभीर स्थिति नहीं माना जाता (3)।
- पोस्टपार्टम डिप्रेशन: नई मां जब अत्यधिक तनाव का शिकार होने लगती है, तो उसे प्रसवोत्तर अवसाद कहा जाता है। मां में यह तनाव लंबे समय तक बना रहता है। नींद न आना, भूख कम या ज्यादा लगना, ऊर्जा की कमी महसूस होना, अपराध बोध की भावना, खुद को व्यर्थ मानना, स्पष्ट सोच न पाना, खुद को नुकसान पहुंचाने की भावना आदि इसके लक्षण होते हैं। यह अवस्था गंभीर होती है और इसके परिणाम भी मां और शिशु के लिए खतरनाक हो सकते हैं। आंकड़ों के मुताबिक 15 फीसदी नई मांओं में यह अवसाद देखने को मिलता है (3)।
- पोस्टपार्टम साइकोसिस: यह एक बेहद गंभीर परेशानी है। एक हजार में से एक या दो नई मांओं में यह अवसाद देखने को मिलता है। इसके लक्षण डिलीवरी के 2 से 3 घंटे से लेकर चार हफ्तों के अंतर्गत नजर आ सकते हैं। पागलपन की स्थिति, हर चीज को शक की निगाहों से देखना, अजीब चीजें नजर आना, डर लगना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं। इसके लक्षण दिखते ही बिना देरी किए मनोरोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन का गंभीर रूप भी कहा जाता है (6)।
ये थे मूड डिसऑर्डर के कुछ मुख्य प्रकार, जिन्हें पोस्टपार्टम डिप्रेशन के प्रकार भी कहा जाता है। अब आगे हम प्रसवोत्तर होने वाली ऐसी समस्याओं के बारे में बता रहे हैं, जिसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मूड डिसऑर्डर और एंग्जाइटी से संबंध है।
- पोस्टपार्टम ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर: प्रसव के छह हफ्ते के अंदर नई मां को कई मानसिक रोग होने की संभावना होती है, जिसमें से एक पोस्टपार्टम ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर भी है (7)। यह बेहद गंभीर स्थिति है, जिसका वक्त पर इलाज कराना जरूरी होता है। इस दौरान महिला के मन में अपने बच्चे को हानि पहुंचाने के ख्याल आ सकता है (8)।
बताया जाता है कि यह डिसऑर्डर होने का खतरा उन महिलाओं में ज्यादा होता है, जिन्हें प्रेगनेंसी के दौरान या पहले डिप्रेशन रहा हो या मूड डिसऑर्डर संबंधी अन्य परेशानी हो। अक्सर निदान के दौरान इसे डिप्रेशन या इसका ही एक प्रकार मान लिया जाता है, जो बिल्कुल गलत है (9)।
- पोस्टपार्टम एंग्जायटी: बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं में पोस्टपार्टम एंग्जायटी होना बेहद आम है। निराश होना, हताशा, मन में अपराध बोध आदि इसके लक्षण हैं। इसका बच्चे के परवरिश और विकास पर बुरा असर पड़ सकता है, इसलिए इसके लक्षण नजर आने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें। अक्सर ऐसा मां बनने के बाद होने वाली थोड़ी बहुत चिंता का स्तर काफी बढ़ने के कारण होता है। (10)।
- पोस्टपार्टम पैनिक डिसऑर्डर: प्रसव के बाद कई महिलाएं पैनिक डिसऑर्डर से जूझने लगती है। इसमें सांस फूलना, धड़कन तेज होना, मरने का डर, सीने में दर्द जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। यह समस्या बात-बात पर जरूरत से ज्यादा चिंता करने वाली महिलाओं को अधिक होती है (10)।
आगे विस्तार से जानिए पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कारणों के बारे में।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कारण
प्रसवोत्तर अवसाद के सटीक कारण अज्ञात हैं, लेकिन गर्भावस्था के दौरान और डिलीवरी के बाद महिला के शरीर में कई तरह के हॉर्मोन बदलाव होते हैं। इन बदलाव को ही महिला के मूड खराब होने का कारण माना जाता है। इसके अन्य नॉन हार्मोनल कारण कुछ इस प्रकार हैं (1):
- प्रेगनेंसी और डिलीवरी के बाद शरीर में आए बदलाव के कारण
- रिश्तों में आई दूरियों के कारण
- अपने लिए समय न निकाल पाना
- नींद पूरी न होना
- अच्छी मां बनने का दबाव
यहां अब हम प्रेगनेंसी के बाद होने वाले डिप्रेशन के लक्षणों की जानकारी देंगे।
प्रेगनेंसी के बाद में डिप्रेशन के लक्षण
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के एक नहीं, बल्कि कई लक्षण होते हैं, जो कुछ-कुछ बेबी ब्लूज के लक्षणों से भी मेल खाते हैं (3) (11)।
- भूख का कम या फिर ज्यादा लगना
- नींद न आना या बहुत ज्यादा नींद आना
- उदास होना और किसी भी चीज में मन न लगना
- अत्यधिक थकान और ऊर्जा हीन महसूस करना
- हताश होना
- मन में अपराध बोध होना
- खुद को नुकसान पहुंचाने का ख्याल आना
- अज्ञात डर बना रहना और असहाय महसूस करना
- कुछ याद न रहना
- किसी काम में मन न लगना
- रोने का मन होना और मन दुखी रहना
- अत्यधिक चिंता करना
- बेचैनी और घबराहट होना
- व्यवहार का लगातार चिड़चिड़ा होते जाना
लेख के इस भाग में पोस्टपार्टम डिप्रेशन और बेबी ब्लूज कैसे अलग हैं, इस बारे में जानेंगे।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन और बेबी ब्लूज के बीच अंतर
जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक लॉन्ग टर्म डिप्रेशन है, जो प्रसव के बाद कभी भी शुरू हो सकता है (12)। वहीं, बेबी ब्लूज डिप्रेशन कुछ हफ्तों में महिला को बिना नुकसान पहुंचाए चला जाता है (41)। हां, बेबी ब्लूज के भी कुछ लक्षण पोस्टपार्टम डिप्रेशन से मेल खाते हैं, लेकिन वे लंबे समय तक नहीं टिकते हैं। बेबी ब्लूज के मामले 80 से 85 फीसदी नई मांओं में देखने को मिलते हैं और पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जूझने वाली महिलाओं की संख्या 15 फीसदी है (3) ।
अगले भाग में जानिए प्रेगनेंसी के बाद डिप्रेशन का निदान व इलाज कैसे किया जा सकता है।
प्रेगनेंसी के बाद के डिप्रेशन की जांच और पहचान
प्रेगनेंसी के बाद महिला को बेबी ब्लूज और पोस्टपार्टम डिप्रेशन अपना शिकार बनाते हैं। इसका पता लगाने के लिए कोई टेस्ट नहीं है, लेकिन स्क्रीनिंग के जरिए डिप्रेशन की पहचान की जा सकती है। इसमें डॉक्टर या गायनोकॉलोजिस्ट प्रसवोत्तर अवसाद के गंभीर लक्षणों का पता लगाने के लिए रूटीन चेकअप के तौर पर स्क्रीनिंग करते हैं। यदि स्क्रीनिंग के दौरान पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण नजर आते हैं, तो डॉक्टर साइकोलॉजिस्ट से परामर्श लेने की सलाह दे सकते हैं (12)।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन का पता लगाने के लिए निम्न बातों का भी ध्यान रखें :
- सबसे पहले नई मां और उसके पार्टनर को यह पता होना चाहिए कि डिलीवरी के बाद क्या-क्या बदलाव महसूस हो रहे हैं।
- प्रसव के बाद उदासी, दुखी मन, चिंता, हताशा, अपराध बोध जैसे लक्षण से पोस्टपार्टम डिप्रेशन का पता चल सकता है। ऐसा कुछ भी महसूस होने पर डॉक्टर को जरूर बताएं।
- प्रसव के बाद डिप्रेशन की पहचान व्यवहार में आए नकारात्मक बदलाव और शारीरिक कमजोरी महसूस होने से भी की जा सकती है। ऐसे में जरूरी है कि महिला शरीर में होने वाले मानसिक और शारीरिक बदलावों के बारे में बताएं, जिससे कि डॉक्टर से सलाह सही समय में ली जा सके।
लेख में आगे बढ़ते हुए जानिए कि प्रसवोत्तर अवसाद का इलाज किस तरह से किया जाता है।
प्रेगनेंसी के बाद में अवसाद का इलाज
गर्भावस्था के बाद बढ़ रहे तनाव का इलाज बहुत जरूरी है। इसका इलाज कुछ इस प्रकार से किया जा सकता है।
- दवाइयां: प्रसव के बाद होने वाले तनाव की गंभीर स्थिति में उपचार के तौर पर एंटी-डिप्रेसेंट का सेवन किया जा सकता है। एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं डिप्रेशन के लक्षण को दूर करने में मदद कर सकती हैं। इस दवा को डॉक्टर की सलाह के बिना बिल्कुल भी न लें (4)।
- थेरेपी: प्रसव के बाद महिला में अवसाद के लक्षण देख डॉक्टर टॉक थेरेपी की सलाह दे सकते हैं। यह थेरेपी पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों से राहत दिलाने में मददगार हो सकती है (4)। इसके अलावा, प्रसव के बाद महिला के शरीर में कम होने वाले एस्ट्रोजन के स्तर को संतुलित करने के लिए हार्मोन थेरेपी से इलाज किया जा सकता है। इससे पोस्टपार्टम डिप्रेशन का असर कम होने लगता है(13)।
- फैमिली सपोर्ट: डिलीवरी के बाद महिला को परिवार के लोग इमोशनल सपोर्ट देकर भी डिप्रेशन से बाहर निकाल सकते हैं। इसके साथ ही उनके दैनिक कार्यों में भी हाथ बटा सकते हैं। इससे भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण को कम करने में मदद मिल सकती है। डॉक्टर दवा और थेरेपी के अलावा प्रसूता के घरवालों को इस तरह की सलाह दे सकते हैं।
आगे जानिए पोस्टपार्टम डिप्रेशन से कैसे बचा जा सकता है।
प्रसवोत्तर अवसाद से कैसे निपटें या इसका सामना कैसे करें?
नीचे बताई बातों का ध्यान रखकर पोस्टपार्टम डिप्रेशन का सामना करने में मदद मिल सकती है (1):
- डिलीवरी के बाद तकरीबन एक साल तक अच्छी देखभाल जरूरी है। इस दौरान महिला को भावनात्मक सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
- बच्चे की देखभाल के लिए पार्टनर, परिवार के लोगों और दोस्तों से मदद लें।
- अपनी भावनाओं को मन में न रखें। इसके बारे में पार्टनर व दोस्तों से बात करें।
- जितना हो सके आराम करें। बच्चे के सोने के समय खुद भी नींद लें।
- महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार न हो, इसलिए ध्यान रहे कि घर का वातावरण अच्छा हो।
- प्रसव के बाद हेल्दी डाइट का सेवन करें।
- प्रसवोत्तर तनाव से बचने के लिए हमेशा लोगों के साथ रहें। इससे अकेलापन महसूस नहीं होगा।
- डॉक्टर की सलाह पर हल्के व्यायाम और योग करें।
- अपने करीबी लोग जैसे दोस्त, मां-पापा, भाई-बहन से फोन पर बात करें या उनसे मिलने जाएं।
- बच्चे की केयर का जिम्मा एक-दो घंटे के लिए किसी को देकर पार्लर जाकर स्पा या अन्य ब्यूटी ट्रीटमेंट करें।
- समय निकालकर शॉपिंग पर जाएं।
- पति के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं।
लेख के अंत में जानिए कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन के संबंध में डॉक्टर से सलाह लेने की जरूरत कब होती है।
डॉक्टर के पास कब जाएं
जैसा कि हम पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों को बारीकी से बता चुके हैं। अगर यह लक्षण महसूस होते हैं, तो डॉक्टर से परामर्श करने की जरूरत है। हर महिला में पोस्टपार्टम डिप्रेशन अलग असर छोड़ता है, इसलिए डॉक्टर से मिलकर बात करना जरूरी है। निम्न लक्षण नजर आने पर बिना किसी देरी किए डॉक्टर से उचित सलाह लें (1)।
- बेबी ब्लूज के लक्षण दो हफ्तों के अंदर खत्म नहीं हो रहे हैं
- किसी काम में मन न लगना
- बच्चे का ध्यान न रख पाना
- तनाव का तेजी से बढ़ना
- खुद को या बच्चे को चोट पहुंचाने का ख्याल आना
- कुछ ऐसा देखना या सुनना, जो दूसरों को दिखाई व सुनाई नहीं दे रहा
इस लेख के माध्यम से पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जुड़ी हर जानकारी आपको मिल ही गई होगी। शुरुआत में ही इस समस्या पर गौर करना जरूरी है। ऐसा करने से इस परेशानी को बढ़ने से बचाया जा सकता है। अगर आपने इसके लक्षणों को नजरअंदाज कर दिया और खुद के स्वास्थ्य पर गौर नहीं किया, तो इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। आप खुद का भी ख्याल रखें और अन्य लोगों को पोस्टपार्टम डिप्रेशन से अवगत कराने के लिए उनके साथ यह आर्टिकल भी साझा करें।
स्वस्थ रहें और खुशहाल जीवन जिएं!
References
1. Postpartum depression By Medlineplus
2. Postpartum Blue is Common in Socially and Economically Insecure Mothers By NCBI
3. Postpartum depression By NCBI
4. Postpartum Depression By Medlineplus
5. POSTPARTUM DEPRESSION: LITERATURE REVIEW OF RISK FACTORS AND INTERVENTIONS By WHO
6. A Review of Postpartum Psychosis By NCBI
7. Postpartum obsessive compulsive disorder: a case series By NCBI
8. Postpartum onset obsessive-compulsive disorder: diagnosis and management By NCBI
9. Obsessive–compulsive disorder in the postpartum period: diagnosis, differential diagnosis and management By Sage Journals
10. Women’s experiences with postpartum anxiety disorders: a narrative literature review By NCBI
11. Postpartum Depression: A Review By Researchgate
12. Postpartum Depression Screening By Medlineplus
13. Transdermal estradiol for postpartum depression: A promising treatment option By NCBI
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