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गर्भावस्था के दौरान अधिक सतर्कता और सावधानी की जरूरत होती है। ऐसे में जरा-सी लापरवाही बड़े जोखिम को न्यौता दे सकती है। फिर चाहे वह खान-पान से संबंधित हो या चलने-फिरने के तरीके में बरती जाने वाली लापरवाही। ऐसे में गर्भावस्था के दौरान गिरना आपके साथ-साथ बच्चे के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। इस विषय को लेकर लोगों में कई मिथ्य हैं। यही कारण है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में मिथ्यों की सच्चाई उजागर करने के साथ हम आपको गर्भावस्था में गिरने के कारण और होने वाले दुष्परिणामों के बारे में भी विस्तार से बता रहे हैं।
आइए, लेख में आगे बढ़ने से पहले क्यों न इस विषय से जुड़े कुछ मिथ्यों के बारे में जान लिया जाए।
गर्भावस्था के दौरान गिरने से जुड़े कुछ मिथक व सच्चाई
गर्भावस्था के दौरान गिरना वाकई खतरनाक है, लेकिन असल हकीकत से हटकर लोगों के बीच कुछ अलग धारणाएं मौजूद हैं, जो लोगों को भ्रमित करती हैं। आइए, उन धारणाओं पर डालते हैं एक नजर।
- किसी भी अवस्था में गिरने से बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
बच्चे के मानसिक विकास में रूकावट संबंधी कई कारण हो सकते हैं, लेकिन अगर यह कहा जाए कि प्रत्येक अवस्था में गिरने से बच्चे का मानसिक विकास बाधित होता है, तो इस संबंध में कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। हां, यह जरूर है कि गिरने के कारण अगर किसी अवस्था में बच्चे के सिर वाले हिस्से पर गहरी चोट लगती है, तो मुमकिन है कि उसके मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर दिखाई दे (1)।
- गर्भावस्था में गिरने से बच्चे की मौत हो जाती है।
यह तथ्य भी पूरी तरह से मिथ्य और अवधारणाओं से प्रेरित है। हर स्थिति में ऐसा कुछ भी होने की आशंका नहीं होती है। यह गिरने की ऊंचाई, स्थिति और लगने वाली चोट की तीव्रता पर निर्भर करता है।
- गिरने से प्राकृतिक प्रसव बाधित होता है।
कई लोगों का मानना है कि गर्भावस्था के दौरान गिरने से महिला बच्चे को प्राकृतिक रूप से जन्म देने में असमर्थ हो जाती है, लेकिन डॉक्टरों के अनुसार गिरने और प्राकृतिक प्रसव के बीच कोई स्पष्ट संबंध नहीं है। साथ ही यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि गिरने के कारण मां और शिशु को कितना गहरा नुकसान हुआ है और मां व शिशु के शरीर का कौन सा हिस्सा अधिक प्रभावित हुआ है। आमतौर पर पेल्विक फ्रैक्चर और भ्रूण को गहरी चोट लगने की स्थिति में डॉक्टर सिजेरियन कराने की सलाह देते हैं। फिर भी इस अवस्था में अंतिम फैसला सिर्फ डॉक्टर का होता है। डॉक्टर गर्भवती महिला की अवस्था को देखकर निर्णय लेते हैं कि प्राकृतिक प्रसव संभव है या नहीं (1) (2)।
- गर्भावस्था में केवल पेट के बल गिरने पर ही चिंता करनी चाहिए।
हालांकि, पेट के बल गिरना बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकता है, लेकिन इसमें भी निर्भर करता है कि महिला गर्भावस्था के किस पड़ाव में हैं और लगने वाली चोट कितनी अधिक तीव्र है। वहीं, इसके अलग सिर और नितंबों के बल गिरने पर भी बच्चे को हानि पहुंच सकती है, लेकिन इसका निर्धारण डॉक्टरी जांच के बाद ही किया जा सकता है (1)।
अब हम लेख के अगले भाग में उन वजहों को जानने की कोशिश करेंगे, जिनके कारण गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के गिरने का खतरा बढ़ जाता है।
गर्भावस्था में इन वजह से हो सकता है गिरने का खतरा
ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाएं गिरती ही हैं, लेकिन कुछ हद तक इस दौरान उनके गिरने की आशंकाएं जरूर बढ़ जाती हैं। इसके पीछे के कारण कुछ इस प्रकार हैं।
- सेंटर ऑफ ग्रेविटी : वैज्ञानिक रूप से यह बात पूरी तरह से सिद्ध है कि कोई भी व्यक्ति तभी गिरता है, जब उसका सेंटर ऑफ ग्रेविटी अपनी जगह से परिवर्तित हो जाता है (3)। गर्भावस्था में भी कुछ ऐसा ही होता है। पेट का आकार बढ़ने के कारण महिलाओं का सेंटर ऑफ ग्रेविटी परिवर्तित हो जाता है, जो उनके गिरने का मुख्य कारण माना जाता है।
- रिलैक्सिन हार्मोन के कारण : गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में एक विशेष हार्मोन रिलैक्सिन तेजी से बनता है। यह इस दौरान शरीर में होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ प्रसव प्रक्रिया को आसान बनाने में भी मदद करता है। वहीं, इसका प्रभाव हड्डियों, जोड़ों और मांसपेशियों को भी प्रभावित कर उन्हें आराम की अवस्था में ले जाता है (4)। इस कारण गर्भवती महिलाओं की चलने की प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है और उनके गिरने की आशंका प्रबल हो जाती है।
- ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर का कम होना : ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर दोनों में से किसी भी एक के कम होने की स्थिति में इंसान को बेहोशी या चक्कर आने की समस्या हो सकती हैं (5) (6)। इस कारण यह कहा जा सकता है कि गर्भावस्था के दौरान लो ब्लड प्रेशर या लो ब्लड शुगर होने की स्थिति में गर्भवती महिला गिर सकती है।
- पैरों में सूजन : कुछ महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान सूजन की समस्या देखने को मिलती है (7)। पैरों में सूजन के कारण इस दौरान महिलाओं को जमीन पर पैर जमाने में तकलीफ होती है। यही कारण है कि ऐसे में उनके गिरने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।
- तीसरी तिमाही में चाल में बदलाव– किसी भी सामान्य महिला के मुकाबले गर्भावस्था के हर चरण के साथ महिला की चाल में बदलाव आना आम है। गर्भवती की चाल में आने वाला यह बदलाव दूसरी तिमाही के मुकाबले तीसरी तिमाही में अधिक देखा जाता है। इस कारण तीसरी तिमाही में गर्भवती महिलाओं के संतुलन खोने की आशंका अधिक रहती है। ऐसे में जरा सी भी असमतल जमीन पर पैर पड़ने की स्थिति में गर्भवती गिर सकती है।
- जोड़ों की स्थिति में परिवर्तन– गर्भावस्था के दौरान होने वाले कई बदलावों में से एक शरीर के भार को संभालना भी है। सामान्य रूप से जो शारीरिक भार टखनों पर होता है। वहीं, गर्भावस्था में यही भार शारीरिक स्थिति में परिवर्तन के कारण कमर पर आने लगता है। इस कारण महिलाओं को लंबे कदम बढ़ाने में तकलीफ होती है। कमर पर जोर देकर चलने के कारण उनके गिरने की आशंका बढ़ जाती है।
- गर्भावस्था में थकान : गर्भावस्था में थकान होना आम है, लेकिन कभी-कभी इसके कारण शारीरिक कमजोरी और निर्जीवता का भी एहसास होने लगता है (8)। इसी वजह से इसे गर्भावस्था में गिरने का एक कारण माना जा सकता है, क्योंकि अधिक थकान की स्थिति में शरीर और दिमाग संतुलन की अवस्था में नहीं रह पाता।
गर्भावस्था में गिरने के खतरों को जानने के बाद अब हम आपको बताएंगे कि इस दौरान कब गिरना खतरनाक हो सकता है।
गर्भावस्था में गिरना कब खतरनाक हो सकता है?
जैसा कि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि गर्भावस्था में गिरना तब तक खतरनाक नहीं हो सकता, जब तक कि गिरने के कारण लगनी वाली चोट गर्भ में मौजूद भ्रूण को प्रभावित न करे।
लेख के अगले भागों में हम आपको गर्भावस्था के अलग-अलग चरणों में गिरने के खतरों के बारे में विस्तार से बताएंगे।
गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान गिरना
गर्भावस्था की पहली तिमाही की बात करें, तो इस दौरान बच्चा अधिक विकसित नहीं होता। इस कारण वह मां के गर्भ में पूर्णतया सुरक्षित होता है। साथ ही गर्भ में इस दौरान भ्रूण के चारों ओर एक द्रव भरा होता है, जिसे एमनियोटिक द्रव कहा जाता है। यह भ्रूण के लिए एक गद्देदार तकिये की तरह काम करता है और बाहरी चोट से भ्रूण की रक्षा करता है (9)। यही कारण है कि गर्भावस्था के इस चरण में गिरने से संभवतः भ्रूण को तब तक कोई हानि नहीं पहुंचती, जब तक मां के पेट में गहरी चोट न लगे। वहीं, इस चरण में मां के गिरने की आशंका भी बहुत कम होती है। इसकी वजह यह है कि इस दौरान महिलाओं में बाहरी रूप से कोई भी शारीरिक परिवर्तन नहीं होता, जिससे उनका सेंटर ऑफ ग्रेविटी अपनी जगह पर बना रहता है (10)।
अब हम गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में महिलाओं के गिरने से जुड़ी जानकारी आपको देंगे।
दूसरी तिमाही के दौरान गिरना
गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में महिलाओं के गिरने की आशंका बढ़ जाती हैं, क्योंकि इस समय तक भ्रूण थोड़ा विकसित हो गया होता है और इस कारण भ्रूण महिलाओं के पेट के निचले हिस्से की बाहरी सतह के पास आ जाता है (11)। ऐसे में पहली तिमाही की तुलना में इस दौरान सेंटर ऑफ ग्रेविटी के परिवर्तित होने की आशंका बढ़ जाती है (10), लेकिन इस स्थिति में भी सामान्य रूप से गिरने पर बच्चे को तब तक हानि नहीं पहुंचती, जब तक कि अधिक गहरी चोट बच्चे को प्रभावित न करे।
अगर इस दौरान आप किसी कारण से गिर जाती हैं, तो आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप कुछ देर के लिए लेट कर आराम कर लें। ऐसे में अगर आपको गिरने पर पेट में दर्द, योनी मार्ग से रक्त स्त्राव या बच्चे के गति न करने का आभास होता है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
अब हम तीसरी तिमाही में महिलाओं के गिरने की संभावना और खतरे के बारे में बताएंगे।
तीसरी तिमाही के दौरान गिरना
यह गर्भावस्था का वह समय होता है, जब बच्चा पूर्ण रूप से विकसित हो गया होता है और मां का पेट बाहर की ओर पूरी तरह झलकने लगता है। ऐसे में जरा-सी चोट भी बच्चे के लिए घातक साबित हो सकती है (12)। साथ ही इस दौरान महिलाओं के गिरने की आशंका भी अधिक प्रबल हो जाती हैं, लेकिन कुछ सावधानियों के माध्यम से इस खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है (13)।
लेख के अगले भाग में अब हम गर्भावस्था में गिरने से होने वाले असर के बारे में आपको बताएंगे।
गर्भावस्था के दौरान गिरने से क्या असर पड़ सकता है?
गर्भावस्था के दौरान गिरने के कारण मुख्य रूप से निम्नलिखित असर देखने को मिल सकते हैं (1)।
- समय पूर्व प्रसव पीड़ा
- गर्भाशय थैली का फटना
- भ्रूण को सीधी चोट के कारण हानि
- भ्रूण की मानसिक क्षति
- कुछ मामलों में गहरी चोट गर्भ में बच्चे की मौत का कारण भी बन सकती है।
गर्भावस्था में गिरने के असर जानने के बाद अब हम आपको इस दौरान गिरने से बचने के कुछ उपायों के बारे में बताएंगे।
गर्भावस्था के दौरान गिरने से बचने के लिए इन बातों का रखें ध्यान
गर्भावस्था में गिरने से बचने के लिए आपको निम्न बातों का खास ध्यान रखना चाहिए।
- झुकने के दौरान किसी मजबूत चीज का सहारा लें।
- अगर चक्कर या कमजोरी महसूस हो रही हो, तो कुछ देर के लिए बैठ जाएं और खुद को सामान्य अवस्था में आने दें।
- सपाट चप्पल, सैंडल व जूते का इस्तेमाल करें। साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि फुटवियर में ग्रिप अच्छी हो, ताकि आप फिसलें नहीं।
- चिकनी या जहां पानी गिरा हो उस स्थान पर जाने से बचें।
- सीढ़ियों से उतरते वक्त रेलिंग या दीवार का सहारा लें।
- अधिक वजन उठाकर चलने से बचें।
- बाथरूम को सूखा रखें, साथ ही इस बात पर भी ध्यान दें कि जमीन पर चिकनाहट न हो (जैसे साबुन का पानी या काई)।
- रात को अंधेरे में चलने से बचें।
जहां एक तरफ गर्भावस्था में गिरना मां और शिशु दोनों के लिए खतरनाक है, वहीं इस अवस्था से बचना आसान है। बस गर्भवती महिला को कुछ सावधानियों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। इस लेख को पढ़ने वाली अगर कोई भी महिला गर्भावस्था के दौर से गुजर रही हो, तो वह इस लेख में बताए गए सुझावों का पालन कर सकती है। साथ ही इस लेख को अपनी परिचित महिलाओं के साथ भी जरूर शेयर करे।
References
1. Blunt abdominal trauma to a pregnant woman resulting in a child with hemiplegic spastic cerebral palsy and permanent eye damage By Ncbi
2. Pelvic Fractures in Women of Childbearing Age By Ncbi
3. Equilibrium of the human body and the gravity line: the basics By Ncbi
4. The effect of relaxin on the musculoskeletal system By Ncbi
5. Hypoglycemia as a possible factor in the induction of vasovagal syncope. By Ncbi
6. Orthostatic Syncope By Ncbi
7. Edema in pregnancy. By Ncbi
8. Fatigue in Pregnancy By Ncbi
9. The First Trimester By edu
10. Physical activity and injuries during pregnancy By Ncbi
11. The Second Trimester By Edu
12. Blunt abdominal trauma to a pregnant woman resulting in a child with hemiplegic spastic cerebral palsy and permanent eye damage By Ncbi
13. Evaluation of postural equilibrium and fall risk during pregnancy. By Ncb
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