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हर महिला गर्भधारण करते ही सावधानी बरतनी शुरू कर देती है, ताकि होने वाला शिशु सुरक्षित रहे। गर्भ में इन नौ महीनों के दौरान एक तरल पदार्थ भी शिशु को सुरक्षा प्रदान करता है, जिसे एमनियोटिक द्रव कहते हैं। यह द्रव शिशु को धक्के व दबाव आदि से होने वाले नुकसान से बचाता है। स्पष्ट शब्दों में कहें, तो आपका शिशु गर्भाशय के अंदर द्रव से भरी हुई थैली (जिसे एमनियोटिक सैक कहा जाता है) में सुरक्षित रहता है। कुछ मामलों में एमनियोटिक द्रव कम हो जाता है, जिसे मेडिकल भाषा में ओलिगोहाइड्रेमनियोस (Oligohydramnios) कहा जाता है। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम ओलिगोहाइड्रेमनियोस के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
सबसे पहले जानते हैं कि ओलिगोहाइड्रेमनियोस की समस्या होना कितना आम हैं।
एमनियोटिक द्रव में कमी कितना आम है?
गर्भावस्था में ओलिगोहाइड्रेमनियोस की समस्या होना आम है (1)। खासतौर से गर्भावस्था की आखिरी तिमाही में एमनियोटिक द्रव की कमी होने की आशंका ज्यादा बढ़ जाती है। अगर डिलीवरी में दो सप्ताह का समय बचा है, तो एमनियोटिक द्रव कम होने की आशंका ज्यादा बढ़ जाती है।
आइए, अब जानते हैं कि शिशु के लिए एमनियोटिक द्रव कितना जरूरी है।
शिशु के विकास में एमनियोटिक द्रव क्या भूमिका निभाता है?
यकीनन, गर्भ में शिशु के विकास के लिए एमनियोटिक द्रव की खास भूमिका होती है। इस बारे में हम नीचे विस्तार से बता रहे हैं (2) (3) :
- जब शिशु एमनियोटिक तरल पदार्थ में से घूमता है, तो यह उसकी हड्डी और मांसपेशियों के विकास में मदद करता है।
- शिशु के सांस लेने पर यह तरल उसके अंदर जाता है, जो उसके फेफड़ों के विकास में मदद करता है।
- शिशु के तरल पदार्थ ग्रहण करने और बाद में इसे निकालने से उसके पाचन तंत्र का विकास होता है।
- एमनियोटिक तरल गर्भनाल को सिकुड़ने से बचाता है। इससे शिशु मां के शरीर से पोषक तत्व आसानी से ग्रहण कर पाता है।
- एमनियोटिक तरल एक ल्यूब्रिकेंट की तरह भी काम करता है, जो शरीर के नाजुक अंगों के विकास में मदद करता है।
लेख के अगले भाग में इस द्रव की मात्रा के बारे में बताया गया है।
गर्भवती होने पर एमनियोटिक द्रव का सामान्य स्तर क्या होता है? | Pregnancy Me Amniotic Fluid Kitna Hona Chahiye
एमनियोटिक द्रव की समय-समय पर जांच करना जरूरी है, ताकि उसकी मात्रा का पता लगाया जा सके। एमनियोटिक द्रव की जांच एमनियोटिक फ्लूड इंडेक्स के जरिए की जाती है और इसे सेंटीमीटर में मापा जाता है। आपको बता दें कि प्रेगनेंसी की शुरुआत में एमनियोटिक द्रव बनना शुरू होता है और 14वें से 21वें सप्ताह तक यह सामान्य होता है (4)। प्रेगनेंसी के अंतिम समय में यह कम हो सकता है। नीचे एमनियोटिक फ्लूइड इंडेक्स (AFI) के जरिए इसकी स्थिति के बारे में जानें।
- सामान्य स्तर : इसमें एमनियोटिक द्रव का स्तर 5 से 25 सेंटीमीटर या 800 से एक हजार मि.ली. तक होता है (5) (6) (7)।
- ओलिगोहाइड्रेमनियोस : यह स्थिति तब आती है, जब एमनियोटिक द्रव का स्तर 5-6 सेंटीमीटर से कम हो। हालांकि, इसके सटीक नंबर में शिशु की उम्र के अनुसार अंतर आ सकता है (8)।
- पॉलीहाइड्राम्निओस : यह वो स्थिति है, जब एमनियोटिक द्रव का स्तर 25 सेंटीमीटर से ऊपर चला जाता है। यह मां और बच्चे के लिए जोखिम भरी स्थिति हो सकती है (9)।
आपको बता दें कि गर्भावस्था के 36वें सप्ताह के बाद यह द्रव धीरे-धीरे कम होने लगता है, क्योंकि प्रसव का समय इस सप्ताह तक नजदीक आ जाता है। इस दौरान तरल का स्तर 600 मिली तक पहुंच सकता है, जो सामान्य है (7)।
आइए, अब जानते हैं कि एमनियोटिक द्रव का स्तर कम होने पर क्या लक्षण नजर आते हैं।
कम एमनियोटिक द्रव के सामान्य लक्षण
इसके लक्षण हर महिला में अलग-अलग हो सकते हैं। नीचे हम कुछ सामान्य लक्षण बता रहे हैं, जिन्हें गर्भावस्था के दौरान कम एमनियोटिक द्रव होने पर महसूस कर सकते हैं, जैसे :
- गर्भाशय के विकास में कमी आना।
- पेट की परेशानी होना।
- एमनियोटिक द्रव का रिसाव होना।
- भ्रूण की हलचल कम हो जाना।
- गर्भाशय संकुचन होना।
लक्षण जानने के बाद, अब हम कम एमनियोटिक द्रव के कारणों के बारे में बात करेंगे।
कम एमनियोटिक द्रव के कारण
- झिल्ली का टूटना या रिसाव होना : अगर एमनियोटिक झिल्ली जरा-सी भी कहीं से टूट जाए, तो द्रव का रिसाव होने लगता है। यह ज्यादातर प्रसव निकट होने के समय होता है। यह स्थिति मां और बच्चे में संक्रमण के खतरे को बढ़ा सकती है। बहुत कम मामलों में ही टूटी हुई झिल्ली खुद से ठीक हो पाती है (10)।
- प्लेसेंटा की समस्या : अगर प्लेसेंटा (अपरा) में रक्त और पोषक तत्व आदि की आपूर्ति करने में समस्या उत्पन्न होती है, तो एमनियोटिक द्रव की कमी हो सकती है। इस स्थिति में प्लेसेंटा (अपरा) बच्चे के मूत्र और अपशिष्टों को निकालने में असमर्थ होता है। अगर डॉक्टर को प्लेसेंटा में कोई समस्या नजर आती है, तो गर्भवती महिला और होने वाल शिशु के स्वास्थ्य पर नजर रखी जाएगी। साथ ही एमनियोटिक द्रव के स्तर की जांच के लिए नियमित स्कैन किया जाएगा (11)।
- गर्भावस्था के दौरान होने वाली अन्य समस्याएं : अगर गर्भवती महिला को डिहाइड्रेशन (निर्जलीकरण), गर्भावधि मधुमेह, प्री-एक्लेमसिया या क्रोनिक हाइपोक्सिया की समस्या है, तो एमनियोटिक द्रव में कमी आ सकती है (12)।
- गर्भ में एक से ज्यादा शिशु होना : अगर गर्भ में एक से ज्यादा शिशु हैं, तो एमनियोटिक द्रव कम होने का जोखिम बढ़ जाता है।
- भ्रूण असामान्य : अगर गर्भावस्था की पहली और दूसरी तिमाही में द्रव कम होने की समस्या होती है, तो शिशु को किडनी या यूरिन की समस्या होने का अंदेशा हो सकता है।
- कुछ दवाओं की वजह से : आइब्रूफेन या उच्च रक्तचाप की दवाओं से भी एमनियोटिक द्रव में कमी आ सकती है। हालांकि, गर्भावस्था में डॉक्टर इन दवाओं के सेवन के लिए मना करते हैं (13)।
- डिलीवरी की नियत तिथि निकल जाना : अगर डिलीवरी की तय तिथि एक या दो सप्ताह आगे निकल गई है, तो एमनियोटिक द्रव कम होने लगता है। लगभग 100 में से 12 गर्भावस्थाओं में यह स्थिति देखने को मिल सकती है (14)।
अब जानते हैं कि ओलिगोहाइड्रेमनियोस का निदान यानी जांच कैसे की जाती है।
कम एमनियोटिक द्रव के लिए निदान के तरीके
चूंकि, गर्भावस्था के दौरान एमनियोटिक द्रव होना बहुत जरूरी है। इसके कम होने से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। यही कारण है कि इसके लक्षण दिखाई देने पर जरूरी जांच करनी चाहिए। ओलिगोहाइड्रेमनियोस के निदान के लिए डॉक्टर नीचे बताई गई जांच कर सकते हैं, जैसे :
- अल्ट्रासाउंड : इस स्कैन में शिशु के मूत्राशय और किडनी की जांच की जाती है। इसके अलावा, डॉक्टर डॉप्लर अल्ट्रासाउंड भी कर सकता है, क्योंकि यह असामान्य प्लेसेंटा को पहचाने में मदद कर सकता है (15)।
- एमनियोटिक फ्लूड इंडेक्स (एएफआई) टेस्ट : एएफआई टेस्ट से एमनियोटिक द्रव की मात्रा मापी जाती है। इस टेस्ट को करने के लिए अल्ट्रासोनोग्राफी की जाती है, जो प्रेगनेंसी में एमनियोटिक द्रव मापने का सुरक्षित तरीका है (16)। इस टेस्ट के दौरान गर्भवती को पीठ के बल लेटना होगा और डॉक्टर उसके पेट पर अल्ट्रासाउंड ट्रांसड्यूसर से जांच करेंगे। चूंकि, यह जांच करना आसान नहीं होता, इसलिए अनुभवी डॉक्टर से ही इसे करवाना चाहिए। अगर जांच के दौरान पेट पर ज्यादा दबाव पड़ता है, तो यह जांच ठीक से नहीं हो पाती और द्रव का स्तर ठीक से पता नहीं चल पाता।
- स्टेराइल स्पेक्युलम जांच : जैसा कि हमने बताया एमनियोटिक सैक फटने के कारण भी द्रव निकल सकता है। ऐसे में डॉक्टर स्टेराइल स्पेक्युलम जांच कर सकते हैं (17)।
- मैक्सिमम वर्टिकल पॉकेट : इस टेस्ट में अल्ट्रासाउंड की मदद से गर्भाशय की गहराई तक एमनियोटिक द्रव के स्तर की जांच की जाती है।
- रक्त जांच : एमनियोटिक द्रव की जांच के लिए रक्त जांच का भी सहारा लिया जा सकता है। इसमें मेटरनल सीरम स्क्रीनिंग की जाती है, जिसमें कम एमनियोटिक द्रव के स्तर का पता लगाया जाता है। इस टेस्ट से यह भी जाना जाता है कि कहीं शिशु को किडनी या अन्य जन्मजात दोष विकृति तो नहीं हैं (18)।
जांच के बाद आइए जानते हैं इसके जोखिम कारक।
एमनियोटिक द्रव कम होने के जोखिम कारक
कुछ गर्भवती महिलाओं को एमनियोटिक द्रव की मात्रा कम होने का जोखिम ज्यादा रहता है, तो कुछ को कम। नीचे हम बता रहे हैं कि किन्हें एमनियोटिक द्रव कम होने का जोखिम ज्यादा रहता है :
- जिन्हें गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप की समस्या हो।
- जिन्हें मधुमेह हो।
- जिन्हें प्लेसेंटा संबंधी कोई समस्या हो।
- मोटापे के कारण।
- ल्यूपस (शरीर में इम्यून सिस्टम को कमजोर बनाने वाली बीमारी)।
नोट: अगर कोई महिला गर्भावस्था के दौरान इन समस्याओं से जूझ रही हैं, तो उसे समय-समय पर जांच करवाते रहना चाहिए।
एमनियोटिक द्रव के संबंध में और जानकारी के लिए यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें।
कम एमनियोटिक द्रव आपके बच्चे को कैसे प्रभावित करता है?
अगर गर्भावस्था की पहली और दूसरी तिमाही में जांच के दौरान एमनियोटिक द्रव की मात्रा का स्तर कम आता है, तो यह चिंता का विषय बन सकता है। वहीं, तीसरी तिमाही में इस समस्या को नियंत्रित करना आसान होता है। एमनियोटिक द्रव कम होने से बच्चे पर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं, जिनके बारे में हम नीचे बताने जा रहे हैं :
- एमनियोटिक द्रव की कमी होने से शिशु के फेफड़े विकसित होने में परेशानी होती है।
- पहली तिमाही और दूसरी तिमाही की शुरुआत में एमनियोटिक द्रव कम होने पर गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है (19)।
- अगर यह समस्या ज्यादा बढ़ जाती है (24वें सप्ताह से पहले), तो मृत शिशु के जन्म का खतरा बढ़ सकता है।
- इस समस्या के कारण 37वें सप्ताह से पहले यानी समय पूर्व जन्म होने की आशंका बढ़ सकती है।
- अगर तीसरी तिमाही में एमनियोटिक द्रव कम होने का पता चलता है, तो हो सकता है डिलीवरी के दौरान गर्भनाल कुछ सुकड़ी हुई हो। इसके अलावा, इस अवस्था में सिजेरियन डिलीवरी की आशंका भी बढ़ जाती है।
लेख के अगले भाग में बताया गया है कि इस द्रव के कम होने से क्या-क्या जोखिम हो सकते हैं।
कम एमनियोटिक द्रव की जटिलताएं
अगर गर्भावस्था में एमनियोटिक द्रव का स्तर कम होता है, तो इससे नीचे बताई गई जटिलताएं हो सकती हैं। ये जटिलताएं गर्भावस्था के लिए जोखिम पैदा कर सकती हैं और बच्चे को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है।
- एमनियोटिक बैंड सिंड्रोम : इस स्थिति में भ्रूण के चारों ओर एमनियोटिक बैंड उलझ जाते हैं।
- पल्मोनरी हाइपरप्लासिया : इसमें शिशु के फेफड़े ठीक से विकसित नहीं हो पाते।
- भ्रूण को संक्रमण : इस स्थिति में शिशु को संक्रमण हो सकता है।
- फीटल कंप्रेशन सिंड्रोम : एमनियोटिक द्रव का स्तर कम होने से यह जटिलता भी उत्पन्न हो सकती है।
आइए, अब जानते हैं कि इनका उपचार कैसे किया जा सकता है।
कम एमनियोटिक द्रव के लिए उपचार | Amniotic Fluid Badhane Ke Upay
- एमनियोफ्यूजन : इस उपचार में डॉक्टर कमरे के तापमान पर एक इंट्रायूटरिन कैथेटर के माध्यम से एमनियोटिक थैली में बाहरी स्त्रोत से सलाईन (saline) देकर द्रव की मात्रा बढ़ाने का प्रयास करते हैं।
- वेसिको-एमनियोटिक शंट : अगर एमनियोटिक द्रव में कमी बच्चे के पेशाब न करने के कारण आ रही है, तो डॉक्टर वेसिको-एमनियोटिक शंट की मदद से उसे बाहर निकालते हैं। आपको बता दें कि वेसिको-एमनियोटिक शंट एक तरह की ट्यूब होती है, जो अतिरिक्त तरल निकालने के लिए गर्भवती के पेट से होते हुए शिशु के मूत्राशय में डाली जाती है (20)।
- हाइड्रेट रहें : डॉक्टर गर्भवती को पूरी तरह से हाइड्रेट रहने की सलाह देते हैं, ताकि शरीर में प्राकृतिक रूप से एमनियोटिक द्रव बने।
- आराम करें : अगर ओलिगोहाइड्रेमनियोस की समस्या हल्की-सी है, तो डॉक्टर दोपहर को आराम करने की सलाह देते हैं। हाइड्रेट रहकर और पर्याप्त आराम करके इंट्रावैस्कुलर स्थान बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
आइए, अब जानते हैं कि ओलिगोहाइड्रेमनियोस को कैसे रोका जा सकता है।
आप एमनियोटिक द्रव को कम होने से कैसे रोक सकते हैं?
हालांकि, इस समस्या को रोका नहीं जा सकता। यह किसी भी गर्भवती महिला को हो सकती है, लेकिन कुछ सावधानियां बरतकर इसके खतरे को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। नीचे हम बताएंगे कि कैसे इस समस्या के होने की आशंका को कम किया जा सकता है।
- इस समस्या से बचने के लिए जरूरी है आपका सही खानपान। हमेशा पौष्टिक खाना खाएं और डॉक्टर के कहे अनुसार अपने काम करें।
- डॉक्टर से बिना पूछे खुद से कोई दवा न लें।
- नियमित रूप से योग करें। आप गर्भावस्था के लिए विशेष योग कक्षाओं में भी जा सकती हैं। साथ ही नियमित रूप से सैर करना फायदेमंद होगा।
- आप धूम्रपान बिल्कुल न करें। इससे आपके और शिशु के फेफड़ों पर बुरा असर पड़ता है।
- प्रत्येक समयांतराल पर डॉक्टर से अपनी जांच कराते रहें, ताकि अगर कोई समस्या शुरू हो रही हो, तो उसका निदान शुरुआत में ही हो जाए और उचित इलाज मिल जाए।
गर्भावस्था के दौरान एमनियोटिक द्रव शिशु का सुरक्षा कवच होता है, इसलिए इसके स्तर का ध्यान रखना जरूरी है। कुछ सावधानियों को बरतते हुए इस समस्या से बचा जा सकता है। वहीं, अगर कोई गर्भवती इस समस्या से ग्रस्त है, तो उसे उचित इलाज करवाना चाहिए। हम उम्मीद करते हैं कि आपको ओलिगोहाइड्रेमनियोस से जुड़ी सभी जानकारियां इस लेख में मिल गई होंगी। आप इस आर्टिकल को अपनी सहेलियों के साथ भी शेयर कर सकती हैं, ताकि उनकी गर्भावस्था भी स्वस्थ और सुरक्षित रहे।
References
1. Oligohydramnios: problems and treatment. By Ncbi
2. Amniotic fluid as a vital sign for fetal wellbeing By Ncbi
3. Potential function of amniotic fluid in fetal development—novel insights by comparing the composition of human amniotic fluid with umbilical cord and maternal serum at mid and late gestation. By Ncbi
4. [Alpha-fetoprotein: normal values in amniotic fluid between 14 and 21 weeks]. By Ncbi
5. Amniotic fluid index By Radiopedia
6. Comparative study of amniotic fluid index in normal & high risk pregnancy complicated by PIH By Academia
7. Amniotic fluid By Medline Plus
8. Oligohydramnios By My health
9. Polyhydramnios – Frequency of congenital anomalies in relation to the value of the amniotic fluid index By Research Gate
10. Fetal membrane healing after spontaneous and iatrogenic membrane rupture: A review of current evidence By Ncbi
11. Placental Insufficiency and Fetal Growth Restriction By Ncbi
12. Oligohydramnios: maternal complications and fetal outcome in 145 cases. By Ncbi
13. NSAIDs: maternal and fetal considerations. By Ncbi
14. Postterm pregnancy By Ncbi
15. Ultrasound estimate of amniotic fluid volume: color Doppler overdiagnosis of oligohydramnios. By Ncbi
16. Relationship of amniotic fluid index (AFI) in third trimester with fetal weight and gender in a southeast Nigerian population By Ncbi
17. Oligohydramnios in Women with Preterm Prelabor Rupture of Membranes and Adverse Pregnancy and Neonatal Outcomes By Ncbi
18. Maternal serum and amniotic fluid alpha-fetoprotein testing: our approach to screening, diagnosis and counseling. By Ncbi
19. Severe midtrimester oligohydramnios: Treatment strategies By Ncbi By researchgate
20. Interventional procedure overview of fetal vesicoamniotic shunt for lower urinary tract outflow obstruction By National Institute For Health And Care Excellence
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