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गर्भावस्था में महिलाओं को कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है। कुछ के बारे में महिलाओं को पता होता है, तो कुछ से वो अनजान होती हैं। ऐसी ही एक समस्या थैलेसीमिया भी है। शायद ही इस बीमारी के बारे में लोग जानते हों। इसी वजह से मॉमजंक्शन के इस लेख में हम थैलेसीमिया से जुड़ी सभी जानकारी लेकर आए हैं। यहां हम सबसे पहले बताएंगे कि थैलेसीमिया बीमारी आखिर क्या है और यह बीमारी कितने प्रकार की होती है। उसके बाद इसके कारण, इलाज जैसी जरूरी बातों पर चर्चा करेंगे।

सबसे पहले समझते हैं कि थैलेसीमिया और इसके प्रकार क्या हैं।

थैलेसीमिया क्या है व इसके प्रकार?

थैलेसीमिया, जेनेटिक यानी आनुवंशिक रक्त विकार है। यह परिवार के एक सदस्य से दूसरे को जीन के माध्यम से मिलता है। इस परेशानी के दौरान शरीर हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद प्रोटीन, अल्फा और बीटा ग्लोबिन) का असामान्य रूप या अपर्याप्त मात्रा बनाता है। इसके कारण शरीर की लाल रक्त कोशिकाएं भारी संख्या में नष्ट होने लगती है, जिससे एनीमिया की परेशानी हो जाती है (1)

इस थैलेसीमिया को मुख्य रूप से दो प्रकार में बांटा गया है, जिसके बारे में हम आगे विस्तार से बता रहे हैं (1)

  1. अल्फा थैलेसीमिया – यह विकार तब होता है, जब अल्फा ग्लोबिन प्रोटीन से संबंधित जीन शरीर में नहीं होते या फिर उनमें कुछ परिवर्तन हो जाता है।
  2. बीटा थैलेसीमिया – थैलेसीमिया का यह प्रकार बीटा जीन की अनुपस्थिति के कारण होता है। इससे बीटा ग्लोबिन प्रोटीन का उत्पादन प्रभावित होता है।

थैलेसीमिया के प्रत्येक प्रकार को अलग-अलग उपप्रकार में बांटा गया है। अल्फा और बीटा थैलेसीमिया दोनों में निम्नलिखित दो रूप शामिल हैं:

  • थैलेसीमिया मेजर : माता-पिता दोनों के जीन में मौजूद दोष व्यक्ति में होने पर उसे थैलेसीमिया मेजर कहा जाता है।
  • थैलेसीमिया माइनर : यदि केवल माता या पिता से दोषपूर्ण जीन मिलते हैं, तो वह थैलेसीमिया माइनर कहलाता है।

आगे प्रेगनेंसी में थैलेसीमिया होने की वजह जानिए।

गर्भावस्था में थैलेसीमिया होने के कारण | Pregnancy mein Thalassemia hone ke karan

हम ऊपर बता ही चुके हैं कि यह जेनेटिक रक्त विकार है। इसी वजह से सामान्य समय और प्रेगनेंसी दोनों में थैलेसीमिया होने के कारण एक जैसे ही होते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं (1) (2)

  • माता-पिता से मिलने वाले दोषपूर्ण जीन्स
  • शरीर में हीमोग्लोबिन प्रोटीन बनाने वाले जीन्स में परिवर्तन होना
  • एशिया, अफ्रीका, मेडिटेरियन के लोगों को थैलेसीमिया होने का जोखिम
  • परिवार में किसी को थैलेसीमिया होना

लेख में आगे जानिए कि गर्भवती को थैलेसीमिया हुआ है या नहीं, कैसे पता चलता है।

गर्भावस्था के दौरान थैलेसीमिया का निदान

प्रेगनेंसी में थैलेसीमिया का पता लगाने के लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट करने की सलाह दे सकते हैं। ये टेस्ट कुछ इस प्रकार हैं (2):

  1. इलेक्ट्रोफोरेसिस (Electrophoresis)
    यह एक तरह का ब्लड टेस्ट है, जिसकी मदद से थैलेसीमिया का पता लगाया जाता है। इस टेस्ट के जरिए शरीर में मौजूद हीमोग्लोबिन प्रोटीन का विश्लेषण किया जाता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि शरीर में अल्फा और बीटा ग्लोबिन में से किसकी कमी है।
  1. पेरीफेरल स्मीयर (Peripheral Smear)
    थैलेसीमिया का पता लगाने वाला यह भी एक तरह का ब्लड टेस्ट ही है। इस टेस्ट के दौरान रक्त के आकार को देखकर पता लगाया जाता है कि थैलेसीमिया है या नहीं। हीमोग्लोबिन के असामान्य वितरण होने पर रक्त कोशिकाएं माइक्रोस्कोप में बैल की आंख के आकार जैसी नजर आती हैं।
  1. डीएनए एनलेसिस (Deoxyribonucleic Acid Analysis)
    डीएनए टेस्ट को थैलेसीमिया और इसके मूल कारण के साथ ही जीन्स में होने वाले परिवर्तन का पता लगाने के लिए किया जाता है। इससे अल्फा और बीटा थैलेसीमिया है या नहीं, यह स्पष्ट हो जाता है।

अब पढ़िए कि प्रेगनेंसी में थैलेसीमिया हो जाए, तो इसका प्रभाव बच्चे पर पड़ता है या नहीं।

क्या गर्भावस्था के दौरान थैलेसीमिया होने से बच्चे पर प्रभाव पड़ता है?

हां, प्रेगनेंसी में थैलेसीमिया होने से गर्भस्थ शिशु पर भी प्रभाव पड़ सकता है। ये प्रभाव कुछ इस प्रकार के हो सकते हैं (1) (2)

  • स्टिल बर्थ यानी प्रसव के दौरान शिशु की मौत
  • शिशु का बीटा थैलेसीमिया के साथ पैदा होना
  • पैदा होने के एक साल तक बच्चों को एनीमिया की शिकायत
  • शिशु की ग्रोथ प्रभावित हो सकती है
  • हाइड्रोप्स फेटलिस (Hydrops Fetalis) यानी भ्रूण को असामान्य घातक सूजन होना

आगे बढ़ते हुए जानिए कि गर्भस्थ शिशु को थैलेसीमिया हुआ है या नहीं, इसका पता कैसे चलता है।

कैसे पता करें कि गर्भ में पल रहे बच्चे को थैलेसीमिया है?

अगर माता-पिता को थैलेसीमिया है, तो भ्रूण को भी यह समस्या होने का जोखिम होता है। इसके बारे में पता करने के लिए प्रसवकालीन जांच (Antenatal screening) करने की सलाह दी जाती है। ये टेस्ट कुछ इस प्रकार हैं, जिनसे पता लगाया जा सकता है कि भ्रूण को थैलेसीमिया है या नहीं (2)

  1. फीटल डीएनए एनालिसिस
    इस टेस्ट से पता लगाया जा सकता है कि भ्रूण को थैलेसीमिया हुआ है या नहीं। यह टेस्ट करने के लिए भ्रूण की कोशिकाओं को एमनियोसेंटेसिस (गर्भाशय से निकाला गया एमनियोटिक द्रव) से या कोरियोनिक विलस सैम्पलिंग (Chorionic villus sampling) से यानी गर्भनाल से निकाला जाता है।
  1. जेनेटिक टेस्टिंग ऑफ एमनियोटिक
    भ्रूण के थैलेसीमिया होने का जोखिम हो, तो एमनियोटिक द्रव की जांच की जाती है। यह खासकर तब किया जाता है जब भ्रूण को माता-पिता दोनों से ही यह समस्या मिलने का खतरा हो। इससे शिशु के जिन्स की असामान्य संयोजन का पता लगाया जा सकता है।

अब प्रेगनेंसी में थैलेसीमिया का इलाज कैसे किया जाता है, इसपर एक नजर डाल लेते हैं।

गर्भावस्था के दौरान थैलेसीमिया का इलाज

प्रेगनेंसी में थैलेसीमिया का ट्रीटमेंट कुछ इस तरीके से विशेषज्ञ कर सकते हैं (2)

  • आयरन थेरेपी : अगर पेशेंट को आयरन की कमी है, तो डॉक्टर आयरन थेरेपी की सलाह दे सकते हैं।
  • ट्रांसफ्यूजन : थैलेसीमिया मेजर से जूझ रही महिलाओं को डॉक्टर ब्लड ट्रांसफ्यूजन करने की सलाह दे सकते हैं।
  • फोलिक एसिड पूरकता : थैलेसीमिया ग्रस्त गर्भवतियों को डॉक्टर अन्य ट्रीटमेंट के साथ ही फोलिक एसिड की निर्धारित खुराक लेने की सलाह दे सकते हैं।
  • चेलेशन थेरेपी : ब्लड ट्रांसफ्यूजन से महिला के शरीर में अगर आयरन की अधिकता हो जाती है, तो चेलेशन थेरेपी से अधिक आयरन को निकाला जाता है।
  • बोन मैरो ट्रांसप्लांट : गर्भवती को डॉक्टर जरूरत पड़ने पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने की भी सलाह दे सकते हैं।
  • जीन थेरेपी : महिला के जिन में होने वाली गड़बड़ी को सुधारने के लिए जीन थेरेपी दी जाती है। इससे थैलेसीमिया में कुछ सुधार हो सकता है।

इस स्थिति में विशेषज्ञ से परामर्श कब लेना चाहिए, यह जानना भी जरूरी है।

डॉक्टर से कब सलाह लें

गर्भधारण करने की सोच रही महिलाएं को थैलेसीमिया के बारे में पता लगाने के लिए डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है। साथ ही अगर महिला को पहले से ही पता है कि उसे थैलेसीमिया है, तो बिना किसी तरह की ढिलाई के चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। इससे भ्रूण को थैलेसीमिया से बचाया जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या मेरे शिशु को थैलेसीमिया होगा?

हां, माता-पिता दोनों को या किसी एक को थैलेसीमिया है, तो शिशु को थैलेसीमिया होने का खतरा रहता है (2)

क्या बीटा थैलेसीमिया के साथ गर्भवती हो सकते हैं?

हां, बीटा थैलेसीमिया होने पर महिला गर्भधारण कर सकती हैं। गर्भ को सुरक्षित रखने के लिए महिला को गर्भवती होने से पहले डॉक्टर से चेकअप कराकर उनके दिशानिर्देशों का पालन करना जरूरी है (3)

अब आप थैलेसीमिया के बारे में समझ ही गए होंगे। यह आनुवंशिक विकार गर्भावस्था को प्रभावित कर सकता है, इसलिए गर्भधारण करने से पहले ही सभी जरूरी जांच करवा लें। अगर किसी महिला को पहले से ही पता है कि वो या उनके पति थैलेसीमिया से ग्रस्त हैं, तो डॉक्टर को इसके बारे में बताना बिल्कुल न भूलें। ऐसा करने से गर्भस्थ शिशु को इस आनुवंशिक विकार से बचाने में मदद मिल सकती है। इसी वजह से कहा जाता है कि गर्भावस्था से पहले ही महिला को सतर्कता बरतनी चाहिए, ताकि होने वाले शिशु को शारीरिक समस्याओं और बीमारियों से बचाया जा सके।

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