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गर्भधारण करने के बाद महिला के कई टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें थायराइड भी एक है। यह टेस्ट इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि थायराइड का स्तर असंतुलित होने पर मां और शिशु दोनों का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। यहां तक कि गर्भ में पल रहे शिशु को भी थायराइड होने की आशंका रहती है। साथ ही इसका उपयुक्त इलाज न करवाने पर कई गंंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है (1) (2)। इसलिए, प्रत्येक गर्भवती को थायराइड टेस्ट करवाना चाहिए। मॉमजंक्शन का यह लेख इसी विषय पर आधारित है। इस लेख में हम थायराइड से जुड़ी कई जानकारियां दे रहे हैं। अगर आप मां बनने की योजना बना रही हैं या गर्भधारण कर चुकी हैं, तो हर लिहाज से यह आर्टिकल आपके काम का है।
पहले हम यह जान लेते हैं कि थायराइड होता क्या है।
क्या है थायराइड?
हमारे गले में आगे की तरफ तितली के आकार की एक ग्रंथि होती है, उसे ही थायराइड कहा जाता है। यह ग्रंथि भोजन को ऊर्जा में बदलती है और टी3 यानी ट्राईआयोडोथायरोनिन और टी4 यानी थायरॉक्सिन हार्मोन का निर्माण करती है। ये दोनों हार्मोंस हमारी सांस, हृदय गति, पाचन तंत्र, शरीर के तापमान, हड्डियाें, मांसपेशियों व कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं। इन हार्मोंस के असंतुलित होने पर वजन कम या ज्यादा होने लगता है, इसे ही थायराइड बीमारी का नाम दिया गया है (3)।
इसके अलावा, मस्तिष्क के पिट्यूरी ग्रंथि से थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) जारी होता है। यह हार्मोन टी3 और टी4 हार्मोन के प्रवाह को नियंत्रित करने का काम करता है। टीएसएच के जरिए ही थायराइड के स्तर की जांच की जाती है (4)।
एक अहम बात यह है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं और 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को थायराइड होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है। वहीं, अगर आपके परिवार में किसी को थायराइड रहा है, तो आपके भी इसकी चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है (5)।
अब हम जानेंगे कि गर्भावस्था में थायराइड हार्मोंस क्यों जरूरी हैं।
गर्भावस्था में थायराइड हार्मोंस का महत्व? | Pregnancy Me Thyroid
गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए थायराइड हार्मोंस जरूरी होते हैं। इसी से उसके मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र का विकास होता है। गर्भावस्था की पहली तिमाही में शिशु को ये हार्मोंस गर्भनाल के जरिए मिलते हैं। इसके बाद शिशु की थायराइड ग्रंथि विकसित हो जाती है और थायराइड हार्मोंस का निर्माण होना शुरू हो जाता है, लेकिन 18 से 20 हफ्ते तक पर्याप्त हार्मोंस का निर्माण नहीं होता। इस लिहाज से गर्भावस्था में थायराइड हार्मोंस महत्वपूर्ण होते हैं (6)।
इसके अलावा, अहम बात यह भी है कि गर्भावस्था के दौरान ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (Human Chorionic Gonadotropin) नामक हार्मोंस का निर्माण होता है। एचसीजी के कारण गर्भवती के रक्त में थायराइड हार्मोंस का स्तर ज्यादा पाया जाता है। डॉक्टरों के अनुसार, एक स्वस्थ गर्भवती महिला में थायराइड का स्तर हल्का-सा ज्यादा होना गंभीरता का विषय नहीं होता है, लेकिन टीएसएच का स्तर सामान्य बनाए रखना जरूरी है (6)।
आइए, अब जानते हैं कि थायराइड का लेवल कितना होना चाहिए।
गर्भावस्था में थायराइड कितना होना चाहिए? | Pregnancy Me Thyroid Kitna Hona Chahiye
थायराइड का पता टीएसएच के जरिए लगाया जाता है। गर्भावस्था में टीएसएच का सामान्य स्तर क्या होना चाहिए, इसे हम नीचे तालिका के जरिए समझा रहे हैं (7):
टीएसएच (mIU/L) | कम | अधिक |
---|---|---|
पहली तिमाही | 0.1 | 2.5 |
दूसरी तिमाही | 0.2 | 3.0 |
तीसरी तिमाही | 0.3 | 3.0 |
अगर गर्भवती महिला में टीएसएच स्तर इतना या इसके बीच में रहता है, तो चिंता का विषय नहीं है। सामान्य महिलाओं में टीएसएच का स्तर 0.4-4mIU/L के आधार पर मापा जाता है।
आइए, अब यह जान लेते हैं कि गर्भावस्था के दौरान थायराइड किन कारणों से हो सकता है।
गर्भावस्था में थायराइड के कारण
मुख्य रूप से थायराइड के दो प्रकार माने गए हैं – हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म।
- हाइपोथायरायडिज्म : इस अवस्था में थायराइड ग्रंथि जरूरत से कम हार्मोंस का निर्माण करती है (8)।
- हाइपरथायरायडिज्म : जब थायराइड ग्रंथि अधिक हार्मोंस का निर्माण करती है, तो हाइपरथायरायडिज्म की समस्या होती है (9)।
गर्भावस्था के दौरान इन दोनों प्रकार के थायराइड होने के कारणों के बारे में हम विस्तार से बता रहे हैं (6)।
हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism)
- थायराइड ग्रंथि के ठीक प्रकार से कार्य न करने से।
- किसी बीमारी का इलाज करते समय थायराइड ग्रंथि को निकाल देने पर।
- रेडियेशन उपचार या फिर किसी दवा के दुष्प्रभाव के चलते।
- पिट्यूटरी रोग के कारण भी ऐसा हो सकता है।
- एंडेमिक गोइटर और भोजन में आयोडीन की कमी को भी अहम कारण माना गया है।
- गर्भावस्था के दौरान हाशिमोटो नामक ऑटोइम्यून बीमारी के कारण भी यह समस्या हो सकती है। ऐसा 100 गर्भवती महिलाओं में दो-तीन के साथ होता है। इस बीमारी में प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी का निर्माण करती है, जिससे थायराइड ग्रंथि प्रभावित होती है।
हाइपरथायरायडिज्म (Hyperthyroidism)
- ग्रेव डिजीज (Graves disease) : ऑटो इम्यून सिस्टम में विकार आने के कारण ऐसा होता है। एक हजार गर्भवती महिलाओं में से एक-चार इसका शिकार होती हैं। इस अवस्था में इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी निर्माण करता है, जिस कारण थायराइड ग्रंथि जरूरत से ज्यादा हार्मोंस का निर्माण करने लगती है।
- टॉक्सिक एडेनोमास (Toxic adenomas) : थायराइड ग्रंथि में नोड्यूल्स बनने लगते हैं, जो थायराइड हार्मोंस को प्रभावित करते हैं। इस कारण शरीर में रासायनिक संतुलन बिगड़ जाता है।
- सब-एक्यूट थायरायडिटिस (Subacute thyroiditis) : थायराइड में सूजन आने के कारण ग्रंथि ज्यादा हार्मोंस का निर्माण करने लगती है।
लेख के अगले भाग में इस बीमारी को पहचानने के लिए कुछ लक्षण बताए गए हैं।
गर्भावस्था में थायराइड के लक्षण
हम लक्षणों को भी थायराइड के दोनों प्रकारों के जरिए वर्णित कर रहे हैं, जो इस प्रकार हैं (6):
हाइपोथायरायडिज्म
- चेहरे में सूजन
- त्वचा में कसाव महसूस होना
- जरूरत से ज्यादा थकान
- नब्ज का धीरे होना
- अत्यधिक कब्ज
- ठंड बर्दाश्त न होना
- वजन बढ़ना
- शरीर में ऐंठन महसूस होना
- पेट में खराबी
- काम में ध्यान न लगा पाना या फिर याददाश्त का प्रभावित होना
- टीएसएच का स्तर ज्यादा होना और टी4 का कम होना
हाइपरथायरायडिज्म
- थायराइड हार्मोंस का स्तर अधिक होना
- थायराइड का आकार बढ़ना
- थकावट
- उल्टी आना
- ह्रदय गति का अधिक होना
- भूख कम या ज्यादा होना
- चक्कर आना
- पसीना अधिक आना
- नजर का कमजोर होना
- अगर डायबिटीज है, तो ब्लड शुगर बढ़ना
- पेट खराब होना
- वजन कम होना
गर्भावस्था में थायराइड से संबंधित और जानकारी के लिए पढ़ते रहें यह लेख।
गर्भावस्था में थायराइड के प्रभाव
यहां हम विस्तार से बताएंगे कि थायराइड के कारण गर्भवती महिला किस प्रकार प्रभावित हो सकती है (6):
हाइपोथायरायडिज्म
अगर हाइपोथायरायडिज्म का सही समय पर इलाज न किया जाए, तो यह निम्न प्रकार से हानिकारक साबित हो सकता है :
- प्रीक्लेम्पसिया या उच्च रक्तचाप
- एनीमिया
- गर्भपात
- जन्म के समय शिशु का वजन कम
- पूरी तरह से शिशु का मानसिक विकास न होना
- मृत शिशु का जन्म
ऊपर बताए गए सभी प्रभाव हाइपोथायरायडिज्म के गंंभीर रूप लेने के कारण होते हैं।
हाइपरथायरायडिज्म
हाइपरथायरायडिज्म का ठीक प्रकार से इलाज न करने पर इन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है :
- गर्भपात
- समय से पूर्व जन्म
- जन्म के समय शिशु का वजन कम
- प्रीक्लेम्पसिया यानी उच्च रक्तचाप
- थायराइड के अचानक और गंभीर लक्षण
- अचानक ह्रदय गति का रुकना
इसके लक्षण व प्रभाव के बाद अब जानते हैं इसकी जांच कैसे की जाती है।
गर्भावस्था में थायराइड का निदान
- हाइपोथायरायडिज्म : डॉक्टर आपमें थायराइड के लक्षणों की पहचान कर कुछ जरूरी ब्लड टेस्ट करेंगे। इन ब्लड टेस्ट के जरिए पता किया जाएगा कि टीएसएच और टी4 का स्तर क्या है। अगर हाशिमोटो बीमारी के कारण हाइपोथायरायडिज्म है, तो डॉक्टर रक्त में एंटीबॉडी की जांच करेंगे।
- हाइपरथायरायडिज्म : इसका पता लगाने के लिए भी डॉक्टर लक्षणों की पहचान कर कुछ ब्लड टेस्ट करेंगे, जिसके जरिए टी3 और टी4 का स्तर पता चल सकेगा। इसके लिए तीन मुख्य टेस्ट किए जाते हैं, जो इस प्रकार हैं :
- टीएसएच टेस्ट : हाइपरथायरायडिज्म का कोई भी लक्षण नजर आने पर सबसे पहले अल्ट्रासेंसटिव टीएसएच टेस्ट किया जाता है। अगर टीएसएच का स्तर सामान्य से कम है, तो इसका मतलब है कि हाइपरथायरायडिज्म है। यहां ध्यान देने वाली अहम बात यह है कि गर्भावस्था, खासकर पहली तिमाही में भी खून में टीएसएच का स्तर कम आ सकता है।
- फ्री टी3 व टी4 टेस्ट : रक्त में इनका स्तर ज्यादा होना समस्या की ओर इशारा करता है।
- टीएसआई टेस्ट : अगर पूर्व में ग्रेव डिजीज की शिकायत रही है, तो इस टेस्ट के जरिए पता किया जाता है कि टीएसआई एंटीसेप्टिक का असर वर्तमान में है या नहीं।
जांच के बाद इसके इलाज के बारे में जानना भी जरूरी है।
गर्भावस्था में थायराइड का उपचार
- हाइपोथायरायडिज्म : इसका इलाज थायरोक्सिन दवा के जरिए किया जाता है। यह दवा टी4 हार्मोन की तरह होती है। इसके जरिए शरीर में हार्मोन का स्तर बढ़ाया जाता है। यह दवा गर्भ में पल रहे शिशु के लिए सुरक्षित होती है (6)।
- हाइपरथायरायडिज्म : अगर गर्भावस्था के समय हाइपरथायरायडिज्म की समस्या थोड़ी-सी है, तो इसका इलाज नहीं किया जाता। अगर यह समस्या हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम (गर्भावस्था के दौरान गंभीर रूप से उल्टी की समस्या) से जुड़ी हुई है, तो डॉक्टर सिर्फ उल्टी व डिहाइड्रेशन का ही इलाज करेंगे। वहीं, अगर यह समस्या बेहद गंभीर है, तो डॉक्टर एंटीथायराइड दवा दे सकते हैं। इस दवा से हार्मोंस बनने कम हो जाते हैं। इसके जरिए शिशु के ब्लड में अधिक थायराइड हार्मोंस को जाने से रोका जा सकता है। ध्यान रहे कि एंटीथायराइड दवा से कुछ लोगों को निम्न प्रकार के साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं (6):
- त्वचा पर रैशेज या फिर खुजली हो सकती है।
- शरीर में श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो सकती है, जिससे आपको जल्द ही संक्रमण हो सकता है।
- कुछ विलक्षण मामलों में लिवर काम करना बंद कर सकता है।
अगर इस तरह के लक्षण दिखाइ दें, तो एंटीथायराइड दवा लेना बंद कर दें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें :
- त्वचा पीली नजर आए।
- अगर पेट में हल्का-हल्का दर्द महसूस हो।
- गले में लगातार सूजन रहे।
- अगर बुखार है।
नोट: थायराइड की दवा हमेशा डॉक्टर की सलाह पर ही लें। अपने मन से दवा की मात्रा कम या ज्यादा नहीं करनी चाहिए और न ही दवा को बंद करना चाहिए।
लेख के इस हिस्से में आप इस समस्या से बचने के कुछ टिप्स जानेंगे।
गर्भावस्था में थायराइड से कैसे बचें । Pregnancy Me Thyroid Se Kaise Bache
- अपने डॉक्टर की सलाह पर प्रतिदिन व्यायाम करें। ऐसा करने से जिन्हें थायराइड नहीं है, वो इससे बचे रहेंगे और जिन्हें है उनका थायराइड नियंत्रण में रहेगा।
- डॉक्टर की सलाह पर और योग प्रशिक्षक की देखरेख में योग व मेडिटेशन भी करते रहें।
- समय-समय पर डॉक्टर से जांच करवाते रहें और आपके थायराइड का स्तर क्या है, यह भी चेक करते रहें। भले ही आपको थायराइड न हो, फिर भी इसे हर तीन महीने में चेक करते रहना जरूरी है।
- सुबह और शाम को करीब आधा-आधा घंटा खुली हवा में पैदल चलें।
लेख के इस भाग में कुछ खास खाद्य पदार्थों के बारे में बताया है। इसलिए, आगे जरूर पढ़ें।
गर्भावस्था में थायराइड आहार | Thyroid Diet In Pregnancy In Hindi
क्या खाएं
हाइपोथायरायडिज्म :
- अनाज : पोषक तत्वों से भरपूर अनाज का सेवन करना चाहिए। इसमें गेंहू की रोटी, ब्राउन चावल, जौ, क्विनोआ व साबुत अनाज आदि शामिल हैं। इनमें फाइबर और विटामिन-बी पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
- फल व सब्जियां : थायराइड में फाइबर के साथ-साथ विटामिन-सी, विटामिन-ए, पोटैशियम और फोलेट की जरूरत होती है। इसलिए, खरबूजे, ब्लूबेरी, सेब, संतरे, हरी पत्तेदार सब्जियां व गाजर आदि का सेवन करना चाहिए।
- सेलेनियम : सेलेनियम के सेवन से शरीर में थायराइड हार्मोंस की मात्रा संतुलित होती है। साथ ही इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण भी होता है। सेलेनियम के लिए सूरजमुखी के बीज, मूंगफली, काजू व बादाम को अपने भोजन में शामिल करें।
- टायरोसिन : थायराइड हार्मोंस के निर्माण और उनकी मात्रा को संतुलित करने में टायरोसिन भी अहम भूमिका निभाता है। मांस, डेयरी उत्पादों और फलियों में टायरोसिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
- तेल : जैतून, कैनोला, सोया और कुसुम तेल के सेवन से वजन नियंत्रण में रहता है। दिनभर में एक-दो बार इनका सेवन किया जा सकता है। इन तेल को अपने भोजन में शामिल करें।
- दूध व अंडे : इनमें विटामिन-बी12 की मात्रा पर्याप्त रूप में पाई जाती है। दूध को कैल्शियम का मुख्य स्रोत माना गया है। इसलिए, हाइपोथायरायडिज्म की अवस्था में दिन में कम से कम दो बार तो दूध का सेवन करना ही चाहिए।
- ओमेगा 3 फैटी एसिड : मछली व अखरोट में ओमेगा 3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसके सेवन से थायराइड ग्रंथि में आई सूजन से राहत मिलती है।
- आयोडीन : थायराइड होने का एक अहम कारण भोजन में आयोडीन की कमी होना है, इसलिए जितना हो सके आयोडीन युक्त भोजन का सेवन करें। साथ ही खाना बनाते समय आयोडीन युक्त नमक इस्तेमाल करें।
- पानी : दिनभर में जितना हो सके पानी पिएं। पानी पीने से शरीर में जमा विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। साथ ही रोज एक-दो गिलास घर में बना जूस भी पी सकते हैं।
हाइपरथायरायडिज्म :
- सब्जियां : गोभी, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, फूलगोभी व शलजम आदि का सेवन करें।
- कम आयोडीन : आयोडीन थायराइड हार्मोंस का निर्माण करने में मदद करता है, इसलिए कम आयोडीन युक्त भोजन करना चाहिए। आप अपनी डाइट में ओट्स, शहद, बिना नमक लगे नट्स, अंडे का सफेद हिस्सा, ताजे फल व सोया युक्त चाय व कॉफी का सेवन कर सकते हैं।
- गाइट्रोजेनिक खाद्य पदार्थ : इस श्रेणी में पालक, आड़ू, नाशपाती, मूंगफली, आलू और सरसों का साग जैसे खाद्य पदार्थों को रखा जाता है।
- कम वसा : आप कम वसा वाले डेयरी उत्पादों को अपने भोजन में शामिल करें।
- आयरन : इस तत्व से युक्त भोजन को प्रतिदिन करें। हरी पत्तेदार सब्जियों व रेड मीट को आयरन का प्रमुख स्रोत माना गया है।
- कैल्शियम व विटामिन-डी : हाइपरथायरायडिज्म में कैल्शियम व विटामिन-डी की भी जरूरत होती है।
क्या न खाएं
हाइपोथायरायडिज्म :
- जंक फूड : आप बेशक स्वस्थ ही क्यों न हों, जंक फूड का सेवन नहीं करना चाहिए। थायराइड की अवस्था में तो बिल्कुल नहीं।
- सोया पदार्थ : सोयाबीन और सोया युक्त खाद्य पदार्थों में फाइट्रोएस्ट्रोजन पाया जाता है। यह थायराइड हार्मोंस के निर्माण में बाधा पहुंचाता है। इसलिए, टोफू, टेम्पेह व सोया दूध जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
- ग्लूटेन : ब्रेड, पास्ता व बियर आदि में ग्लूटेन की मात्रा अधिक होती है। अगर आपको हाइपोथायरायडिज्म है, तो इनका सेवन न करें।
- पेय पदार्थ : कॉफी, ग्रीन-टी व शराब से दूरी बनाए रखें।
- कुछ फल व सब्जियां : ब्रोकली, पालक, गोभी, आड़ू व नाशपाती आदि का सेवन न करें।
हाइपरथायरायडिज्म :
- अधिक आयोडीन : इस अवस्था में अधिक आयोडीन लेने से समस्या और बढ़ सकती है। सीफूड में आयोडीन भरपूर मात्रा में होता है। साथ ही डेयरी उत्पादों व अंडे के पीले हिस्से को भी आयोडीन का मुख्य स्रोत माना गया है।
- ग्लूटेन : यह एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो गेहूं व सूजी आदि में पाया जाता है।
- प्रोसेस्ड फूड व शुगर : जैम, जेली, कुकीज व पैस्ट्री जैसे प्रोसेस्ड फूड व शुगर से भरपूर खाद्य पदार्थों से दूर ही रहें।
- जंक फूड : हाइपोथायरायडिज्म हो या हाइपरथायरायडिज्म जंक फूड न ही खाएं तो बेहतर होगा।
नोट : गर्भावस्था में थायराइड होने पर क्या खाना है और क्या नहीं, इस बारे में सबसे बेहतर डॉक्टर ही बता सकता है। इसलिए, यहां बताए गए डाइट प्लान को फॉलो करने से पहले एक बार डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
थायराइड में प्रेग्नेंट होने का तरीका । Thyroid Me Pregnant Hone Ka Tarika
थायराइड हार्मोंस के असंतुलित होने पर मासिक धर्म चक्र प्रभावित होता है। साथ ही ओव्यूलेशन प्रक्रिया भी बाधित होती है, जिस कारण गर्भधारण करना कठिन हो जाता है। इस अवस्था में डॉक्टर ब्लड टेस्ट करेंगे, जिससे टीएसएच और टी4 के स्तर की जांच की जाएगी। यह टेस्ट गर्भवती होने से पहले और गर्भधारण करने के बाद दोनों अवस्थाओं में किया जाता है। इस टेस्ट के जरिए थायराइड की स्थिति का पता चलता है और उसी के अनुसार इलाज किया जाता है, ताकि मां और शिशु दोनों स्वस्थ रहें।
- गर्भावस्था से पहले थायराइड पाए जाने पर डॉक्टर एंटीथायराइड दवा देते हैं, जिससे हार्मोंस सामान्य स्तर पर आ जाते हैं। इसके बाद डॉक्टर गर्भधारण करने के लिए कह सकते हैं।
- वहीं, गंभीर मामलों में डॉक्टर रेडियोएक्टिव आयोडीन या फिर सर्जरी करते हैं। इससे थायराइड को पूरी तरह से या फिर सिर्फ प्रभावित हिस्से को निकाल देते हैं। इसके बाद डॉक्टर गर्भधारण करने के लिए करीब छह माह का इंतजार करने को कहते हैं, ताकि होने वाले शिशु पर इस उपचार का किसी भी तरह का दुष्प्रभाव न पड़े।
- अगर आप ग्रेव डिजीज का इलाज करवा रही हैं, तो इस दौरान ली जा रहीं दवाइयों का बुरा असर मां और शिशु पर पड़ सकता है। इसलिए, गर्भधारण करने से पहले अपने डॉक्टर से बात करें। वो आपकी स्थिति के अनुसार दवा की मात्रा तय करेंगे। इससे आपको हाइपरथायराइडिज्म के कारण गर्भावस्था में होने वाली समस्या, जैसे – गर्भपात, प्रीक्लेम्पसिया यानी उच्च रक्तचाप और समय पूर्व डिलीवरी की आशंका काफी हद तक कम हो जाएगी।
- ध्यान रहे कि गर्भधारण करने के बाद भी समय-समय पर थायराइड के स्तर की जांच करवाते रहना जरूरी है। साथ ही डॉक्टर की सलाह के बिना कभी कोई दवा न लें।
बेशक, गर्भावस्था के दौरान थायराइड होना चिंता का कारण है, लेकिन समझदारी दिखाकर और सावधानी बरत कर इस समस्या से निपटा जा सकता है। हमें उम्मीद है कि इस लेख में दी गई जानकारी जरूर आपके काम आएगी। अंत में हम आपको यही सुझाव देंगे कि सुरक्षित और स्वस्थ गर्भावस्था के लिए नियमित रूप से थायराइड की जांच करवाते रहें। अगर आपके सर्कल में कोई महिला गर्भधारण करने के बारे में सोच रही है और थायराइड से ग्रस्त है, तो यह लेख उसके साथ जरूर साझा करें।
References
1. Thyroid disorders in pregnancy By NCBI
2. Thyroid dysfunction in pregnancy By NCBI
3. Thyroid Diseases By MedlinePlus
4. TSH (Thyroid-stimulating hormone) Test By MedlinePlus
5. Thinking About Your Thyroid By NIH
6. Thyroid Disease & Pregnancy By NIDDK
7. Associations Between Subclinical Hypothyroidism and Pregnancy Complications By University of Colorado, Boulder
8. Hypothyroidism By MIRECC
9. Hyperthyroidism (Overactive Thyroid) By NIDDK
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