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प्रेगनेंसी के दौरान अधिकतर गर्भवतियों के मन में यह सवाल जरूर आता है कि उनकी नॉर्मल डिलीवरी होगी या सीजेरियन। वहीं, गर्भावस्था के दौरान अगर सब कुछ सही होता है, तो डॉक्टर महिला की नॉर्मल डिलीवरी को ही प्राथमिकता देते हैं। फिर भी कुछ परिस्थितियां ऐसी पैदा हो जाती है, जिसमें न चाहते हुए भी सी-सेक्शन का निर्णय लेना पड़ता है। ऐसी ही एक स्थिति ब्रीच प्रेगनेंसी (पेट में बच्चा उल्टा होना) है। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम पेट में बच्चा उल्टा होने की स्थिति के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए, आप यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें।

हम लेख की शुरुआत ब्रीच डिलीवरी के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ करते हैं।

ब्रीच डिलीवरी का क्या मतलब होता है?

गर्भावस्था के दौरान गर्भ में शिशु की सबसे अच्छी पोजिशन वो होती है, जब शिशु का सिर नीचे की ओर होता है। इसे सामान्य प्रसव के लिए शिशु की सबसे सुरक्षित अवस्था माना जाता है। इससे प्रसव के दौरान किसी तरह की मुश्किल का जोखिम भी कम हो सकता है। वहीं, जब शिशु की इस पोजिशन में कुछ गड़बड़ या बदलाव होता है, तो उसे ब्रीच कहते हैं। आसान शब्दों में समझा जाए, तो गर्भ में बच्चे की पोजिशन उल्टी होने यानी पैर नीचे की तरफ होने को ब्रीच डिलीवरी कहते हैं (1) (2)

आगे लेख में जानिए इसके प्रकार के बारे में।

ब्रीच स्थिति (पेट में बच्चा उल्टा होने) के प्रकार

ब्रीच स्थिति तीन प्रकार के होती है, जो निम्न रूप से है (1) (3):

  1. कंपलीट ब्रीच – इसमें बच्चे के दोनों घुटने मुड़े होते हैं और बच्चे के कूल्हे प्रसव नलिका के पास होते हैं। यह पोजिशन ऐसी होती है, जैसे शिशु गर्भ में बैठा हो।
  1. फ्रैंक ब्रीच – इसमें भी बच्चे के कूल्हे प्रसव नलिका के पास होते हैं, लेकिन बच्चे के पैर ऊपर सिर की तरफ फैले हुए होते हैं।
  1. इनकंपलीट ब्रीच – इसमें बच्चे के कूल्हे और एक पैर मां के गर्भाशय ग्रीवा के पास होता है और एक पैर ऊपर सिर की तरफ होता है।

नोट : इन तीनों ब्रीच स्थिति के प्रकार में एक बात समान है कि तीनों में शिशु का सिर ऊपर की तरफ और कूल्हे गर्भाशय ग्रीवा के पास होते हैं।

आगे जानते हैं ब्रीच बेबी होने के लक्षणों के बारे में।

गर्भ में बच्चा उल्टा होने के लक्षण

अधिकांश बच्चे गर्भावस्था के आखिरी महीने तक जन्म के लिए तैयार यानी सिर-नीचे की स्थिति में आ जाते हैं। डॉक्टर इसे ‘वर्टेक्स’ (vertex) या ‘सेफेलिक’ (cephalic) स्थिति कहते हैं। गर्भावस्था के 35-36वें सप्ताह के पहले तक शिशु का ब्रीच पोजिशन में होना सामान्य है और जैसे-जैसे प्रसव का वक्त निकट आता है, शिशु धीरे-धीरे सेफेलिक स्थिति में आ जाता है।

असल में गर्भवती को ब्रीच बेबी के लक्षण पता नहीं चल पाते हैं। सिर्फ डॉक्टर ही इसका पता लगा पाते हैं। जब गर्भवती दूसरी और तीसरी तिमाही में जांच के लिए जाती हैं, तो डॉक्टर उसके पेट को छूकर जांच करते हैं, जिसे एब्डोमिनल पालपेशन (abdominal palpation) कहा जाता है।

35-36वें सप्ताह में डॉक्टर गर्भवती के पेट को छूकर जांच करते हैं कि शिशु प्रसव के लिए सेफेलिक पोजिशन में आया है या नहीं। अगर उन्हें संदेह होता है कि बच्चा ब्रीच स्थिति में है, तो वो अल्ट्रासाउंड स्कैन की सलाह दे सकते हैं, ताकि गर्भ में बच्चे की पोजिशन की पुष्टि कर सके (4)

लेख के इस भाग में जानिए उल्टा बच्चा होने के कारण।

गर्भ में बच्चा उल्टा होने के कारण

गर्भ में बच्चा उल्टा होने के कारण निम्न प्रकार से हो सकते हैं (1) (4)

  • अगर गर्भाशय का आकार असामान्य हो।
  • पॉलिहाइड्रेमनियोस यानी अधिक एमनियोटिक द्रव हो।
  • अगर गर्भ में जुड़वां बच्चे हों।
  • प्लेसेंटा प्रिविया (जब प्लेसेंटा गर्भाशय की दीवार के निचले हिस्से पर होता है, तो गर्भाशय ग्रीवा में बाधा हो सकती है)

आगे जानिए प्रेगनेंसी में बच्चा उल्टा होने का पता कैसे लगाया जा सकता है।

प्रेगनेंसी में बच्चा उल्टा होने का निदान

जैसा कि लेख में ऊपर जानकारी दी गई है कि ब्रीच बेबी के बारे में डॉक्टर गर्भवती के पेट को छूकर पता लगाते हैं। इसकी पुष्टि करने के लिए डॉक्टर महिला का अल्ट्रासाउंड स्कैन कर सकते हैं (4)

आगे जानिए बच्चा उल्टा होने से होने वाली जटिलताओं के बारे में।

पेट में बच्चा उल्टा होने की जटिलताएं

गर्भावस्था के दौरान पेट में बच्चा उल्टा होने से कुछ समस्याएं हो सकती हैं, जो इस प्रकार हैं (5) (6):

  • ब्रीच डिलीवरी की जटिलताओं की बात की जाए, तो इसमें प्रोलैप्स गर्भनाल (prolapsed umbilical cord) सामान्य है। यह तब होता है, जब गर्भनाल का कुछ हिस्सा शिशु के निकलने से पहले गर्भाशय ग्रीवा से नीचे फिसल जाता है। इस कारण बच्चे तक रक्त प्रवाह में कमी हो सकती है। ऐसे में आपातकालीन सी-सेक्शन की जरूरत हो सकती है।
  • इसके अलावा, ब्रीच डिलीवरी में शिशु में स्वास्थ्य समस्या या शिशु की जान को भी खतरा हो सकता है।

लेख के इस भाग में हम गर्भ में शिशु को सही पोजिशन में लाने के बारे में जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं।

बच्चे को पेट में पलटने या सही स्थिति में लाने के लिए क्या करें? | pet me baby ulta ho to kya kare

अगर शिशु 36 या 37वें सप्ताह तक गर्भ में अपनी सही पोजिशन में नहीं आता है, तो डॉक्टर एक्सटर्नल सेफालिक वर्शन (External Cephalic Version- ECV) तकनीक का सहारा ले सकते हैं। यह डॉक्टर द्वारा की जाने वाली प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के पहले डॉक्टर गर्भवती को कुछ दवाइयां या इंजेक्शन दे सकते हैं, जिससे गर्भाशय की मांसपेशियों को आराम मिले और यह प्रक्रिया आसानी से हो सके।

इसमें डॉक्टर अल्ट्रासाउंड के जरिए गर्भ में शिशु की पोजिशन का ध्यान रखते हुए धीरे-धीरे गर्भवती के पेट को दबाते रहते हैं, ताकि शिशु सही पोजिशन में आ सके। इसके साथ ही प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर शिशु की दिल की धड़कन पर भी ध्यान देते रहते हैं। ज्यादातर मामलों में यह प्रक्रिया सफल ही रहती है। खासतौर पर तब जब इस प्रक्रिया को गर्भावस्था के 35 से 37वें सप्ताह के भीतर किया जाए। इस समय शिशु थोड़ा छोटा होता है और बच्चे के चारों ओर सबसे अधिक द्रव्य होता है (1)। यह हम स्पष्ट कर दें कि आधुनिक मेडिकल ट्रीटमेंट में इस प्रक्रिया का उपयोग धीरे-धीरे कम हो रहा है।

अब सवाल यह उठता है कि गर्भवती डॉक्टर के पास कब जाएं। लेख के अगले भाग में हम इस बारे में ही जानकारी देने की कोशिश करेंगे।

डॉक्टर के पास कब जाएं

जब जांच या अल्ट्रासाउंड के बाद यह पता चलता है कि पेट में बच्चे की पोजिशन उल्टी है, तो हो सकता है डॉक्टर महिला की स्थिति के अनुसार आगे की प्रक्रिया के बारे में बताए। अगर उन्हें ECV तकनीक अपनानी है या सी-सेक्शन करना है, तो वो उसके लिए एक निर्धारित तिथि बताते हैं। वहीं, इस बीच अगर महिला को गर्भ में शिशु की हलचल में थोड़ी कमी महसूस हो या महिला को चिंता या अवसाद की स्थिति में हो, तो डॉक्टर से राय-परामर्श लें। इसके अलावा, अगर गर्भवती को लगे कि उनकी पानी की थैली फट चुकी है यानी उन्हें द्रव्य का रिसाव महसूस हो, तो बिना देर करते हुए डॉक्टर से संपर्क करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या ब्रीच स्थिति में सामान्य प्रसव संभव है? | ulta bacha normal delivery

जैसा कि हमने जानकारी दी है कि अगर पेट में बच्चा उल्टा होने की बात समय पर पता चलती है, तो डॉक्टर एक्सटर्नल सेफालिक वर्शन (ECV) तकनीक से शिशु को सही पोजिशन में लाने की कोशिश करते हैं। अगर यह प्रक्रिया सफल हो जाए, तो नॉर्मल डिलीवरी की जा सकती है। हालांकि, अगर प्लेसेंटा की पोजिशन या शिशु के आकार में वृद्धि हो गई हो, तो डॉक्टर एक्सटर्नल सेफालिक वर्शन तकनीक नहीं करते हैं (7)। डॉक्टर सीधे सी-सेक्शन की सलाह दे सकते हैं, क्योंकि नॉर्मल डिलीवरी में शिशु को खतरा हो सकता है (1)। इसलिए, सामान्य प्रसव या सी-सेक्शन कराना पूरी तरह गर्भवती और गर्भ में शिशु की पोजिशन पर निर्भर करता है।

ब्रीच बेबी डिलिवरी कैसे की जाती है? | ulta bacha delivery

अगर एक्सटर्नल सेफालिक वर्शन (ECV) तकनीक की गुंजाइश न रहे या इसके बाद भी शिशु ब्रीच पोजिशन में ही रहे, तो डॉक्टर सी-सेक्शन करने की सलाह दे सकते हैं (1)। सी-सेक्शन में डॉक्टर गर्भवती के पेट और गर्भाशय में चीरा लगाकर बच्चे की डिलीवरी करते हैं (8)

आशा करते हैं इस लेख के जरिए पाठकों को ब्रीच बर्थ के बारे में कई बातें पता चली होंगी। अगर कोई गर्भवती महिला इस अवस्था से गुजर रही है, तो उसे घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि प्रत्येक निर्धारित समय पर डॉक्टर से चेकअप करवाते रहने से इस समस्या को दूर किया जा सकता है। अगर समय रहते पेट में बच्चा उल्टा होने के बारे में पता चल जाए, तो इसका समाधान संभव है। इसलिए, चिंता न करें और संयम बरतें। गर्भावस्था से संबंधित और जानकारी के लिए आप हमारे अन्य आर्टिकल पढ़ सकते हैं।

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