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महिलाओं के लिए गर्भावस्था उनके जीवन का सुखद पल होता है। इस दौरान गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य को लेकर उनके मन में कई तरह के सवाल उठते हैं, जिनके जवाब पाने देने के लिए डॉक्टर कई तरह की जांच करने को कहते हैं। इन्हीं में से एक एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट भी है, जिसके बारे में माॉमजंक्शन विस्तारपूर्वक जानकारी लाया है। यहां एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट का मतलब समझाने के साथ-साथ इसकी लागत और इससे जुड़ी जटिलताएं बताई जाएंगी। बस तो एम्नियोसेंटेसिस जांच क्यों करवाई जाती है, जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़ें।

सबसे पहले समझते हैं कि एम्नियोसेंटेसिस होता क्या है।

एम्नियोसेंटेसिस क्या है? | Amniocentesis Test in hindi

एम्नियोसेंटेसिस, गर्भवतियों के लिए किया जाने वाला एक प्रकार का परीक्षण है, जिसमें एम्नियोटिक द्रव के नमूने की पहचान की जाती है। एम्नियोटिक द्रव पीले रंग का तरल पदार्थ होता है, जो भ्रूण को घेरे रहता है और उसकी रक्षा करता है। इस द्रव में कोशिकाएं होती हैं, जिससे भ्रूण के स्वास्थ्य के बारे में पता लगाया जाता है। साथ ही इससे शिशु में जन्म दोष या आनुवंशिक विकार की जानकारी भी मिलती है (1)

सरल शब्दों में कहें तो एम्नियोसेंटेसिस एक प्रकार का डायग्नोस्टिक यानी नैदानिक परीक्षण है। इसके माध्यम से पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में पल रहे शिशु को कोई स्वास्थ्य समस्या है या नहीं। इसके परिणाम हमेशा सही होते हैं, लेकिन यह स्क्रीनिंग टेस्ट से अलग होता है। अगर प्रेगनेंसी से जुड़े स्क्रिनिंग परीक्षण सामान्य नहीं आते, तो डॉक्टर एम्नियोसेंटेसिस या अन्य नैदानिक परीक्षण की सिफारिश कर सकते हैं (1)

आगे हम बता रहे हैं कि एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट क्यों करवाया जाता है।

एम्नियोसेंटेसिस जांच क्यों करवाई जाती है?

यह जांच आमतौर पर उन महिलाओं को कराने की सलाह दी जाती है, जिनके गर्भस्थ शिशु को जन्म दोष का खतरा रहता है। इनमें यह महिलाएं शामिल हो सकती हैं (1) (2) :

  • गर्भवती महिला की उम्र 35 या उससे अधिक होना।
  • स्क्रीनिंग टेस्ट में जन्म दोष या अन्य समस्या के बारे में पता चलना।
  • पिछली किसी प्रेगनेंसी में शिशु का जन्म दोष के साथ पैदा होना।
  • आनुवंशिक विकारों का पारिवारिक इतिहास।
  • आरएच यानी एक तरह के ब्लड प्रोटीन का बच्चे से मेल न खाना (Rh Incompatibility)। इसके कारण मां की प्रतिरक्षा प्रणाली, भ्रूण की लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करती है।

साथ ही गर्भ में पल रहे शिशु के विकास से जुड़ी कुछ अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए भी इस टेस्ट को किया जाता है। ये समस्याएं निम्नलिखित हो सकती हैं (1)

  • आनुवंशिक विकार – एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट से कई तरह के आनुवंशिक विकारों का पता लगाया जा सकता है। आमतौर पर यह कुछ जीनों में परिवर्तन के कारण होता है। इसमें सिस्टिक फाइब्रोसिस यानी फेफड़ों और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्या और टे-सेक्स (Tay-Sachs) मतलब मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं।
  • क्रोमोसोम डिसऑर्डर – क्रोमोसोम डीएनए के असामान्य तरीके से बढ़ने या खत्म होने से जुड़ी समस्या के बारे में जानने के लिए इस टेस्ट को करने की सिफारिश की जा सकती है। शोध के मुताबिक, यह विकार बौद्धिक अक्षमता और विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
  • न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट – न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट का पता लगाने के लिए भी यह टेस्ट किया जाता है। इस बर्थ डिफेक्ट के कारण बच्चे के मस्तिष्क या रीढ़ असामान्य रूप से विकासित होने लगते हैं।
  • फेफड़ों की जांच – एमनियोसेंटेसिस का उपयोग बच्चे के फेफड़ों के विकास की जांच के लिए भी किया जा सकता है। अगर किसी महिला को समय से पहले प्रसव होने का खतरा है, तो फेफड़ों के विकास की जांच करना महत्वपूर्ण माना जाता है।

यही नहीं, बच्चे में कई अलग-अलग जीन और क्रोमोसोम से जुड़ी कुछ अन्य समस्याओं के निदान के लिए एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट किया जा सकता है। नीचे हम उन समस्याओं के बारे में बता रहे हैं (2):

  • एनेंसेफेली (Anencephaly – बच्चे के मस्तिष्क का एक बड़ा हिस्सा गायब होना)
  • डाउन सिंड्रोम (Down syndrome – अत्यधिक क्रोमोसोम के साथ बच्चे का जन्म होना)
  • आनुवंशिक दुर्लभ चयापचय संबंधी विकार
  • ट्राइसॉमी-18 यानी शरीर के कई हिस्सों में असामान्यताएं होना
  • एम्नियोटिक द्रव में संक्रमण होना

अब समझिए कि एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट आखिर कब करवाया जाना चाहिए।

एम्नियोसेंटेसिस जांच कब करवानी चाहिए?

एम्नियोसेंटेसिस परीक्षण आमतौर पर गर्भावस्था के 15वें और 20वें सप्ताह के बीच किया जाता है। इसके अलावा, यह टेस्ट गर्भावस्था के आखिरी हफ्तों में शिशु के फेफड़ों के विकास की जांच करने या कुछ संक्रमणों का निदान करने के लिए भी किया जा सकता है (1)

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, एम्नियोसेंटेसिस गर्भावस्था के दूसरे या तीसरे तिमाही में किया जाने वाला परीक्षण है। साथ ही इस टेस्ट को गर्भावस्था के 15वें सप्ताह के बाद गर्भ रहने तक तक किसी भी समय किया जा सकता है (3)

लेख के इस हिस्से में हम बता रहे हैं कि इस जांच के दौरान क्या होता है।

एम्नियोसेंटेसिस जांच के दौरान क्या होता है?

एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट के दौरान निम्नलिखित चीजें होती हैं (1)

  • इस परिक्षण के लिए सबसे पहले महिला को एक टेबल पर पीठ के बल लेटना होगा।
  • इसके बाद महिला के पेट को सुन्न करने के लिए डॉक्टर दवा का इस्तेमाल कर सकता है।
  • फिर महिला के पेट के ऊपर अल्ट्रासाउंड डिवाइस को घुमाया जाएगा। बता दें कि अल्ट्रासाउंड में ध्वनि तरंगों का उपयोग करके महिला के गर्भाशय, गर्भनाल और बच्चे की स्थिति की जांच की जाती है।
  • इसके बाद, अल्ट्रासाउंड के चित्रों की मदद से महिला के पेट में एक पतली सी सुई डालकर थोड़ी मात्रा में एम्नियोटिक द्रव निकाला जाता है।
  • एक बार नमूना निकालने के बाद बच्चे के दिल की धड़कन की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है।

यहां हम बता रहे हैं कि इस परीक्षण से क्या पता चल सकता है।

एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट से क्या पता चल सकता है?

एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट से शिशु की स्थिति का पता चलता है। ये स्थिति सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही सकती है। नीचे हमने दोनों परीणामों के बारे में बारी-बारी से बताया है।

एम्नियोसेंटेसिस परिक्षण के समान्य परिणाम

अगर इस परीक्षण के परिणाम सामान्य आते हैं, तो इसका मतलब है (2)

  • भ्रूण को किसी प्रकार की आनुवंशिक या क्रोमोसोम संबंधी समस्या नहीं है
  • गर्भस्थ शिशु में बिलीरुबिन और अल्फा-भ्रूण प्रोटीन का स्तर सामान्य है
  • संक्रमण के कोई लक्षण नहीं हैं

एम्नियोसेंटेसंसिस परिक्षण के असमान्य परिणाम

इस परिक्षण के परिणाम असमान्य आते हैं, तो शिशु को निम्नलिखित में से एक या उससे ज्यादा समस्याएं हो सकती हैं (1) (2)

  • शिशु को जीन या क्रोमोसोम सबंधी समस्या (जैसे – डाउन सिंड्रोम) होना
  • संक्रमण
  • फेफड़े का सही से विकास न होना
  • मां-बच्चे का रक्त आरएच न मिलना यानी गर्भवती का नेगेटिव और भ्रूण का पॉजिटिव
  • स्पाइना बिफिडा जैसा जन्म दोष, जिसमें रीढ़ या मस्तिष्क प्रभावित होते हैं

एमनियोसेंटेसिस परिक्षण का परिणाम सामान्य नहीं है, तो महिलाएं अपने डॉक्टर से नीचे बताए गए सवालों को पूछ सकती हैं।

  • गर्भावस्था के दौरान या बाद में शिशु का इलाज कैसे होगा
  • जन्म के बाद बच्चे को किस चीज की खास जरूरत होगी
  • गर्भावस्था को बनाए रखने या समाप्त करने के क्या विकल्प हैं

इस टेस्ट के परीणामों को समझने के बाद जाने इसकी तैयारी कैसे करें।

एम्नियोसेंटेसिस जांच की तैयारी कैसे करें?

यहां हम क्रमवार बता रहे हैं कि एम्नियोसेंटेसिस जांच की तैयारी कैसे की जाती है। साथ ही यह भी बताएंगे कि इस टेस्ट को कराने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए (4)

जांच प्रक्रिया शुरू होने से पहले इन बातों का रखें ध्यान –

  • टेस्ट शुरू करने से पहले माता-पिता को जेनेटिक काउंसलिंग कराना चाहिए।
  • इस टेस्ट को शुरू करने से पहले माता-पिता को डॉक्टर से इस बारे में लिखित सहमति ले लेनी चाहिए।
  • माता-पिता को इस प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए, जैसे- इस टस्ट को कैसे, कब और किसके द्वारा किया जाएगा।
  • टेस्ट को करने से भ्रूण और गर्भवतियों से जुड़े जोखिमों के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए।
  • आरएच-निगेटिव (Rh-negative) महिलाओं को एंटी-डी की आवश्यकता के बारे में समझना चाहिए। एंटी-डी का उपयोग आरएचडी पॉजिटिव एंटीजन को बेअसर करने के लिए किया जाता है।
  • इस प्रक्रिया को करने से पहले उचित कागजी कार्रवाई की जानी चाहिए।
  • भ्रूण की संख्या, भ्रूण की विकासक्षमता और किसी भी स्पष्ट भ्रूण विकृति को जानने के लिए पहले अल्ट्रासोनोग्राफी करना चाहिए।

एम्नियोसेंटेसिस जांच के समय इन बातों का रखें ध्यान –

  • प्रक्रिया की शुरुआत में यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि अल्ट्रासाउंड के दौरान हाथ में पकड़कर इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण और गर्भवती की त्वचा जीवाणु है।
  • बेहोश करने के लिए किसी लोकल दवा का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
  • रोग निरोधक एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

अब इस जांच में लगने वाली लागत पर एक नजर डाल लेते हैं।

एम्नियोसेंटेसिस जांच पर कितना खर्च होता है?

भारत में एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट कराने की कीमत लगभग 8 से 15 हजार तक हो सकती है। हालांकि, इसकी कीमत इस बात पर भी निर्भर करती है कि यह परीक्षण किस राज्य में करवाया जा रहा है। ऐसे में इसका सटीक दाम बता पाना थोड़ा मुश्किल है।

यहां हम इस टेस्ट से जुड़ी जटिलताओं का जिक्र कर रहे हैं।

एम्नियोसेंटेसिस से जुड़ी जटिलताएं क्या हैं?

आमतौर पर एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट को एक सुरक्षित प्रक्रिया माना जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में इस वजह से संभावित जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है (5) :

  • संक्रमण – एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट के कारण संक्रमण हो सकता है, जिसकी वजह से बुखार की समस्या हो सकती है। ऐसे मामलों में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह दी जाती है।
  • योनि रिसाव – एक प्रतिशत मामलों में एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने के बाद योनि से एम्नियोटिक द्रव का रिसाव होने की पुष्टि हुई है। यह रिसाव धीमी गति से होता है और दो दिनों में बंद हो जाता है। अगर ऐसा बार-बार हो, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
  • गर्भपात – इस टेस्ट के जोखिमों में गर्भपात भी शामिल है। इस प्रकार की समस्या एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट से गुजरने वाली एक प्रतिशत से भी कम महिलाओं में हो सकती है।
  • आरएच सेन्सीटाइजेशन (Rh sensitisation) – एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट के बाद आरएच सेन्सीटाइजेशन होना भी दुर्लभ है। इसमें बच्चे की रक्त कोशिकाएं मां के रक्त प्रवाह में प्रवेश कर जाती हैं। अगर मां आरएच नेगेटिव है, तो शरीर में ऐसी एंटीबॉडी बनती है, जो बच्चे की लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला कर सकती हैं। इसे रोकने के लिए एक आरएच नेगेटिव मां को आरएच (डी) इम्युनोग्लोबुलिन (एंटी-डी) दिया जाता है।
  • बच्चे को चोट लगना – एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली सुई गलती से भ्रूण के शरीर के किसी हिस्से को छू सकती है। इससे गर्भस्थ शिशु को चोट लग सकती है। हालांकि, ऐसा बहुत कम मामलों में हो सकता है।

लेख के इस भाग में जानें कि एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट के बाद महिलाओं को कितना लंबा आराम करना चाहिए।

एम्नियोसेंटेसिस के बाद कब तक आराम करें?

एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट के बाद अधिकांश महिलाएं ठीक महसूस करती हैं। इस परीक्षण के बाद महिला को दिनचर्या में कुछ खास बदलाव करने की सलाह नहीं दी जाती है। हां, सावधानी के तौर पर टेस्ट के अगले दो-तीन दिन तक आराम करना चाहिए (5)

अब जानिए कि एम्नियोसेंटेसिस से गर्भपात हो सकता है या नहीं।

क्या एम्नियोसेंटेसिस से गर्भपात होने की आशंका रहती है?

हां, एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने से गर्भपात की समस्या हो सकती है। बताया जाता है कि इस परीक्षण को कराने से गर्भपात का जोखिम बना रहता है। हालांकि, इसकी आशंका एक प्रतिशत से भी कम होती है (1)

आगे हम इस टेस्ट से जुड़ी समस्याओं के बारे में बता रहे हैं।

एम्नियोसेंटेसिस के बाद किस तरह की समस्याएं हो सकती हैं?

आमतौर पर एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट को दर्द रहित माना गया है। फिर भी इस परीक्षण के तुरंत बाद महिला को लगभग एक घंटे तक आराम करने के लिए कहा जाता है। अब समझिए एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट के बाद होने वाली समस्याएं, जो कुछ इस प्रकार हो सकती हैं (5) (6):

लेख के अंत में एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट कराने और न करवाने के कारणों को समझिए।

एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट कराने और न कराने के क्या कारण हैं?

डॉक्टर की सलाह के बाद गर्भवती द्वारा एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट करवाना या न करवाना पूरी तरह से उसके खुद के फैसले पर निर्भर करता है। यहां हम कुछ ऐसे ही संभावित कारण बता रहे हैं, जिस वजह से महिलाएं इस परीक्षण को चुन सकती हैं या फिर मना कर सकती हैं।

निम्नलिखित लाभों के कारण महिलाएं इस टेस्ट को कराने का फैसला ले सकती हैं –

  • अगर शिशु को किसी प्रकार का दोष है, तो इस टेस्ट को कराने से उसके इलाज के बारे में सोचा जा सकता है।
  • इस जांच को कराने के बाद गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य का पता लगाया जा सकता है। फिर माता-पिता उस हिसाब से अपने बच्चे की देखभाल की योजना बना सकते हैं।
  • यही नहीं, अगर एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट में किसी अन्य गंभीर समस्या का पता चलता है, तो परिवार वाले इस बात का भी फैसला ले सकते हैं कि प्रेगनेंसी को आगे बढ़ना है या नहीं।

इन कारणों से महिलाएं एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट नहीं कराने का फैसला ले सकती हैं –

  • एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट न कराने का फैसला महिला या उसके परिवार का अपना व्यक्तिगत फैसला हो सकता है।
  • इस टेस्ट से जुड़ी जटिलताओं के कारण भी गर्भवती इस टेस्ट को न कराने का फैसला ले सकती है।

एम्नियोसेंटेसिस नियमित रूप से किया जाने वाला टेस्ट नहीं है। इसकी सलाह तभी दी जाती है, जब शिशु को कुछ स्वास्थ्य समस्या होने की आशंका हो। इस परीक्षण को लेकर किसी महिला को घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि इसे पूरी तरह से दर्द रहित बताया जाता है। हां, एम्नियोसेंटेसिस से जुड़ी कुछ जटिलताएं जरूर हैं, लेकिन ऐसा सिर्फ एक प्रतिशत मामलों में ही होता है। हमें उम्मीद हैं कि इस लेख को पढ़ने के बाद एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट के फायदे, प्रक्रिया और कीमत से जुड़ी सभी बातों समझ आ गई होंगी।

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