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हर महिला को अपना ध्यान रखना जरूरी होता है। खासतौर पर जब वे गर्भवती हों, गर्भावस्था में उन्हें अपने स्वास्थ्य के प्रति और ज्यादा सजग होना चाहिए। यह वह समय है जिसमें थोड़ी सी लापरवाही भी मां और शिशु के लिए जोखिमभरा हो सकता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान खान-पान के साथ-साथ बीमारियों को लेकर भी सावधान रहना जरूरी है। जहां कुछ बीमारियों से टीका सुरक्षा प्रदान कर सकता है, वहीं कुछ बीमारियों से जुड़ी जानकारी ही उससे बचाव कर सकती है। इन्हीं में शामिल है फिफ्थ डीजीज। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम न सिर्फ फिफ्थ डिजीज क्या है यह बताएंगे, बल्कि प्रेगनेंसी में फिफ्थ डिजीज होने से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां भी साझा करेंगे। तो प्रेगनेंसी के दौरान फिफ्थ डिजीज क्या है और इससे जुड़ी अन्य जानकारियों के लिए लेख को अंत तक पढ़ें।

आर्टिकल की शुरुआत में जानते हैं कि फिफ्थ डिसीज क्या है।

फिफ्थ डिजीज क्या होता है?

कई वायरल बीमारियों में से एक बीमारी है फिफ्थ डिजीज। इसे एरीथेमा इंफेकशियोसम (Erythema infectiosum) भी कहा जाता है। यह पारावोवायरस बी 19 (Parvovirus B19) की वजह से होता है। यह बीमारी वयस्कों से ज्यादा बच्चों में पाई जाती है। इसमें चेहरे और शरीर के अन्य हिस्सों पर रैशेज हो सकते हैं। कुछ लोगों को जोड़ों में दर्द और सूजन की शिकायत भी हो सकती है (1)। आगे हम गर्भावस्था में इस बीमारी से जुड़ी कई अन्य जानकारियां भी दे रहे हैं।

फिफ्थ डिजीज के बारे में जानने के बाद अब बारी है यह जानने की कि गर्भावस्था में यह कितना सामान्य है।

क्या प्रेगनेंसी में फिफ्थ डिजीज होना सामान्य है?

फिफ्थ डिजीज होने का जोखिम आमतौर पर बच्चों को होता है। वहीं, अगर गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज की बात की जाए, तो गर्भावस्था के दौरान फिफ्थ डिजीज होना सामान्य नहीं है। एक स्टडी के अनुसार यह 1 से 5 प्रतिशत गर्भवती को ही प्रभावित कर सकता है (2)। वहीं सीडीसी के अनुसार, अधिकतर गर्भवतियां परवोवायरस बी 19 (Parvovirus B19) से प्रतिरक्षित (Immune) होती है। इसलिए उनमें और उनके बच्चे में आमतौर पर इस वायरस का जोखिम कम होता है। वहीं, जिन गर्भवती महिलाओं का शरीर इस वायरस से इम्यून नहीं होता है, तो उनमें इसके हल्के लक्षण दिख सकते हैं (3)

लेख के इस भाग में हम गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज होने के कारण से जुड़ी जानकारियां देंगे।

प्रेगनेंसी के दौरान फिफ्थ डिजीज होने के कारण

सामान्य अवस्था हो या गर्भावस्था हो, फिफ्थ डिजीज होने का बस एक ही कारण है। यह मानव पार्वोवायरस बी 19 (Parvovirus B19) के कारण होता है (3)। अगर बात करें इस वायरस के फैलने की तो, यह श्वसन संबंधी स्रावों से फैल सकता है। जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है, तो उसके लार, थूक या नाक के बलगम से उसके आस-पास के स्वस्थ व्यक्ति को यह वायरस लग सकता है। साथ ही यह खून के जरिए भी फैल सकता है। वहीं, अगर कोई गर्भवती इससे संक्रमित है, तो उसके होने वाले शिशु को भी यह वायरस लग सकता है (1)

आर्टिकल के इस हिस्से में हम आपको बता रहे हैं कि गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज का खतरा कब होता है।

गर्भवती को फिफ्थ डिजीज का खतरा कब हो सकता है?

गर्भावस्था की पहली तिमाही में फिफ्थ डिजीज होने का जोखिम अधिक हो सकता है (4)। वहीं, गर्भावस्था के दूसरी तिमाही में अगर यह बीमारी हो, तो जटिलताओं का जोखिम बढ़ सकता है (5)

लेख के इस भाग में हम गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज होने के लक्षणों पर गौर करेंगे।

प्रेगनेंसी के दौरान फिफ्थ डिजीज होने के लक्षण

गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज होने पर कुछ लक्षणों द्वारा इसकी पहचान की जा सकती है। हालांकि, हम यहां स्पष्ट कर दें कि सामान्य दिनों में हो या प्रेगनेंसी के दौरान हो, फिफ्थ डिजीज के लक्षण एक समान ही हो सकते हैं। ऐसे में ये लक्षण क्या है, उसकी जानकारी हम यहां दे रहे हैं। तो प्रगनेंसी में फिफ्थ डिजीज के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं (1):

लक्षणों को जानने के बाद जानते हैं कि गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज होने पर कौन-कौन से टेस्ट हो सकते हैं।

प्रेगनेंसी में फिफ्थ डिजीज के लिए होने वाले टेस्ट और निदान

गर्भावस्था के दौरान फिफ्थ डिजीज में डॉक्टर बीमारी की पहचान शारीरिक परीक्षण या टेस्ट के जरिए कर सकते हैं। नीचे हम इसी की जानकारी दे रहे हैं। तो गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज के लक्षण जानने के लिए डॉक्टर यहां बताए गए तरीकों से इसका निदान कर सकते हैं (4) (6) :

  • अगर शरीर पर किसी प्रकार के रैशेज हों, तो डॉक्टर रैशेज को देखकर फिफ्थ डिजीज के बारे में पता लगा सकते हैं।
  • गर्भावस्था में ब्लड टेस्ट के द्वारा भी फिफ्थ डिजीज का निदान किया जा सकता है। ब्लड टेस्ट में सीरोलॉजिकल टेस्ट हो सकता है, इसमें खून में मौजूद एंटीबॉडीज के बारे में पता लगाया जाता है। साथ ही इसमें यह पता लगाया जा सकता है कि गर्भवती का शरीर इस वायरस से इम्यून है या नहीं।

यहां आप जानेंगे गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज से बचाव करने के कुछ टिप्स।

प्रेगनेंसी में फिफ्थ डिजीज होने से कैसे करें बचाव?

गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज से बचने के लिए कुछ उपायों को अपनाया जा सकता है। यहां हम कुछ जरूरी बातों पर प्रकाश डाल रहे हैं जिन्हें अपनाकर फिफ्थ डिजीज से बचाव किया जा सकता है (1)

  • जैसे कि हमने ऊपर जानकारी दी है कि यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से फैल सकता है। ऐसे में गर्भावस्था के दौरान कोशिश करें कि भीड़भाड़ वाली जगहों पर कम से कम जाएं।
  • अगर किसी को सर्दी-जुकाम हो, तो उससे दूरी बनाकर रहें। हाथों को कम से कम 20 सैकेण्ड के लिए धोएं।
  • बाहर से आने के बाद हाथ-मुंह को अच्छी तरह से धोएं।
  • अगर भीड़-भाड़ वाले जगह में जा रहे हैं तो रूमाल साथ लेकर जाएं।
  • अपने साथ सैनिटाइजर रखें।
  • बाहर के खाने से परहेज करने की कोशिश करें।
  • अगर बीमार महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर से मिलें और सलाह लें।

गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज से बचाव जानने के बाद अब बारी आती है इस बीमारी की जटिलताएं जानने की।

प्रेगनेंसी में फिफ्थ डिजीज होने से क्या कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं?

प्रेगनेंसी के दौरान फिफ्थ डिजीज से होने वाली जटिलताएं दुर्लभ हैं (3)। अगर समस्या पर ध्यान न दिया गया, तो हो सकता है इससे कुछ जटिलताएं हों, जो कुछ इस प्रकार हैं (6):

  • गर्भ में शिशु की मृत्य।
  • हाइड्रॉप्स फेटालिस (Hydrops fetalis- यह एक एक ऐसी स्थिति है जब भ्रूण यानी गर्भ में शिशु के दो या दो से अधिक अंगों में ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थ जमने लगता है, जिससे शिशु को सूजन की समस्या हो सकती है) (7)

फिफ्थ डिजीज के बारे में विस्तार से जानने के बाद अब बारी है इसके उपचार के बारे में जानने की।

प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले फिफ्थ डिजीज के उपचार

आम तौर पर यह बीमारी हल्की होती है और अपने आप बिना उपचार के ठीक हो सकती है। ऐसे में इस संक्रमण के लिए कोई एंटीवायरल दवा फिलहाल मौजूद नहीं है। हालांकि, मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द और सूजन की समस्या हाेने पर डॉक्टर ऐंटीइन्फ्लेमेटरी दवाइयां दे सकते हैं (6)। ध्यान रहे कि गर्भावस्था में किसी भी प्रकार की दवा के सेवन से पहले डॉक्टरी सलाह जरूर लें। वहीं, गर्भवती और गर्भस्थ शिशु यानी भ्रूण की स्थिति को देखते हुए, हो सकता है डॉक्टर कुछ अन्य उपचार भी करें।

आर्टिकल के अंत में हम बता रहे हैं कि गर्भावस्था में फिफ्थ डिजीज होने पर डॉक्टर की सलाह कब लेनी चाहिए।

डॉक्टर से कब परामर्श करें

प्रेगनेंसी के दौरान फिफ्थ डिजीज होने से नीचे बताई गई परिस्थितियों में डॉक्टरी सलाह लेना जरूरी है। ये स्थितियां कुछ इस प्रकार हैं (4):

  • यदि गर्भवती को फिफ्थ डिजीज के लक्षण जैसे – शरीर पर रैशेज या गर्भावस्था में खुजली की समस्या हो, तो बिना देर करते हुए डॉक्टरी सलाह लें।
  • अगर गर्भवती किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आई है, तो भी डॉक्टर से सलाह-परामर्श लेना आवश्यक है।
  • वहीं फिफ्थ डिजीज होने पर घर में ही रहें और डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करें। साथ ही समय-समय पर रूटीन चेकअप कराते रहें। इस दौरान अगर असहज महसूस हो तो रूटीन चेकअप का इंतजार न करके तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

ऐसे तो बड़ों की तुलना में फिफ्थ डिजीज बच्चों में ज्यादा सामान्य है, लेकिन हो सकता है गर्भवती भी इसकी चपेट में आ जाए। ऐसे में यहां बताए गए जानकारियों पर गौर करें। ऊपर दिए गए अगर कोई भी लक्षण दिखे तो बिना देर करते हुए डॉक्टरी सलाह लें। याद रखें कि वक्त रहते इस बीमारी के लक्षणों पर ध्यान देकर इसे गंभीर होने से रोका जा सकता है। इसलिए इस लेख को दूसरों के साथ भी शेयर करें और हर किसी को इस बीमारी से जागरूक कराएं। ऐसे ही अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहिए मॉमजंक्शन से।

संदर्भ (References):

 

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