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खानपान में लापरवाही बरतने पर या फिर साफ-सफाई का ध्यान न रखने से फूड पॉइजनिंग की समस्या हो सकती है। इससे सामान्य व्यक्ति से लेकर गर्भवती महिला तक प्रभावित हो सकती है। खासकर गर्भवती महिला को इस संबंध में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। इस अवस्था में गर्भवती महिला को हर चीज सोच-समझ कर खाने की सलाह दी जाती है। मॉमजंक्शन के इस आर्टिकल में हम प्रेगनेंसी और फूड पॉइजनिंग के विषय पर ही बात करेंगे। इस लेख में हम जानेंगे कि गर्भवती महिला कैसे इस समस्या से बची रह सकती है। वहीं, अगर कोई इसकी चपेट में आ जाए, तो कैसे घरेलू नुस्खों से इसे ठीक किया जा सकता है।

लेख की शुरुआत हम फूड पॉइजनिंग की परिभाषा के साथ करेंगे।

क्या है फूड पॉइजनिंग?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विकासशील देशों में फूड पॉइजनिंग के प्रतिवर्ष करीब 10 करोड़ मामले सामने आते हैं (1)। फूड पॉइजनिंग को संक्रामक रोग माना गया है। यह बीमारी बासी भोजन करने या फिर खाना बनाते वक्त साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखने से होती है। दूषित भोजन से शरीर में हानिकारक बैक्टीरिया और विभिन्न तरह के वायरस उत्पन्न होते हैं, जो फूड पॉइजनिंग का कारण बनते हैं। फूड पॉइजनिंग होने की सबसे बड़ी वजह स्टैफिलोकोकस व ई. कॉली नामक बैक्टीरिया है, जो किसी किसी भी तरह के भोजन को संक्रमित कर सकता है। इसके कारण उल्टी व डायरिया भी हो सकता है (2)

आइए, अब जानते हैं कि फूड पॉइजनिंग होना आम है या किसी-किसी को होता है।

प्रेगनेंसी में फूड पॉइजनिंग होना कितना आम है?

प्रेगनेंसी के चलते महिला के शरीर में हार्मोन में बदलाव होता है। ऐसा माना जाता है कि हार्मोन में बदलाव होने के कारण गर्भवती महिला का इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है। इम्यून सिस्टम कमजोर होने से विभिन्न तरह की बीमारियां हो सकती है, लेकिन इसकी पुष्टि के लिए कोई वैज्ञानिक शोध उपलब्ध नहीं है।

लेख के अगले हिस्से में हम फूड पॉइजनिंग के विभिन्न प्रकारों के बारे में बता रहे हैं।

फूड पॉइजनिंग के प्रकार

यहां हम स्पष्ट कर दें कि आम लोगों और गर्भवती महिला को होने वाले फूड पॉइजनिंग के प्रकार एक समान हो सकते हैं। ये प्रकार निम्न रूप से हैं:

  1. लिस्टेरियोसिस – लिस्टेरियोसिस फूड पॉइजनिंग का प्रकार है। अगर आप कच्ची सब्जी या कच्चा मीट खाते हैं, तो लिस्टेरियोसिस इंफेक्शन होने का अंदेशा बना रहता है। यह इंफेक्शन लिस्टेरिया मोनोसाइटोजेन नामक बैक्टीरिया के कारण होता है, जो कच्ची सब्जियों, कच्चे मांस व डेयरी प्रोडक्ट्स में हो सकता है। लिस्टेरियोसिस ऐसा संक्रमण है, जो सामान्य लोगों की तुलना में गर्भवती महिलाओं 20 गुना ज्यादा हो सकता है। प्रेगनेंसी के दौरान इस तरह के संक्रमण होने से समय पूर्व शिशु का जन्म, गर्भ में बच्चे की जान को खतरा या लंबे समय के लिए स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं (3)
  1. टोक्सोप्लाज्मोसिस – यह फूड पॉइजनिंग का वो गंभीर प्रकार है, जो टॉक्सोप्लाजमा गोंडी पैरासाइट के कारण होता है। इस इन्फेक्शन का खतरा बिल्ली से हो सकता है, इसलिए जो लोग बिल्ली पालने का शौक रखते हैं, वो ये बात जान लें कि बिल्ली के मल से यह इंफेक्शन हो सकता है। यह इंफेक्शन होने से गर्भपात की आशंका हो सकती है (4)
  1. सालमोनेलोसिस – यह इंफेक्शन गली-मोहल्ले में घूमने वाले जानवरों से होता है। इससे डिहाइड्रेशन और रक्त कोशिकाओं में हानिकारक बैक्टीरिया पनप सकते हैं। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को जानवरों से दूर रहना चाहिए। सालमोनेलोसिस गर्भावस्था के दौरान मां से बच्चे में हो सकता है, जिसके कारण पैदा हुए बच्चों को डायरिया या फिर मेनिनजाइटिस की समस्या हो सकती है। मस्तिष्क व स्पाइनल कॉर्ड में सूजन आने को मेनिनजाइटिस कहा जाता है (5)

लेख के अगले हिस्से में फूड पॉइजनिंग के लक्षणों के बारे में बता रहे हैं।

प्रेगनेंसी में फूड पॉइजनिंग के लक्षण क्या हैं?

फूड पॉइजनिंग के लक्षण साधारण व्यक्ति व गर्भवती महिला के एक जैसे हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं (6) (7):

  • पेट में लगातार दर्द का होना
  • पेट में मरोड़ का अहसास होना
  • दस्त लगना (साथ में खून आना)
  • ठंड लगकर बुखार आना
  • सिर में दर्द का होना
  • मतली और उल्टी
  • शारीरिक कमजोरी

लक्षण जानने के बाद अब हम इस समस्या के प्रमुख कारणों पर चर्चा करेंगे।

प्रेगनेंसी में फूड पॉइजनिंग के कारण क्या होते हैं?

फूड पॉइजनिंग के लक्षणों की तरह ही इसके कारण भी सामान्य व्यक्ति व गर्भवती महिला के लगभग एक जैसे ही होते हैं। इन कारणों के बारे में हम नीचे बता रहे हैं (6)

  • खाना बनाते समय सफाई की अनदेखी करना, जिसके कारण हानिकारक बैक्टीरिया मीट को दूषित कर सकते हैं।
  • खेत में सिंचाई के समय नाले का या गंदे कुएं का पानी इस्तेमाल करने से भी फल व सब्जियां संक्रमित हो सकती हैं।
  • खाने-पीने की चीजों को हाथ धोए बिना छूना और खाना।
  • किसी भी तरह के डेयरी उत्पाद को मार्केट से लाने के बाद फ्रिज की जगह बाहर खुले में रखना।
  • कच्चे मांस को खाना।
  • बाजार से लाई हुई कच्चे फल या सब्जियों को बिना धोए पकाना और फिर खाना।
  • प्यास लगने पर किसी भी तरह के पानी का सेवन जैसे कुएं, तालाब या बिना फिल्टर किया हुआ पानी पीना।

कई तरह के हानिकारक बैक्टीरिया भी फूड पॉइजनिंग का कारण बन सकते हैं, जैसे :

  • कैम्पिलोबैक्टर एंटरटाइटिस – यह एक तरह का इन्फेक्शन है, जिसकी शुरुआत पेट से होते हुए पेट के अंदर मौजूद कई कोशिकाओं में होती है। इस तरह का इंफेक्शन होने से पेट में दर्द हो सकता है और पेट खराब हो सकता है। इस तरह के इंफेक्शन से बचने के लिए किसी भी खाने को खासतौर से मांसाहारी खाद्य पदार्थों को अच्छी तरह से धोकर सफाई के साथ बनाकर खाना चाहिए (8)
  • कॉलरा (Cholera) – कॉलरा यानी हैजा से पेट खराब होने की गंभीर समस्या हो सकती है। अगर इसका समय पर इलाज न हो, तो ये जानलेवा हो सकती है। दरअसल, हैजा में दस्त होने पर शरीर में पानी की भारी कमी हो सकती है। इसलिए, इस स्थिति में पानी ज्यादा से ज्यादा पीने की सलाह दी जाती है (9)
  • ई.कॉली (E. Coli) – ई-कॉली ऐसा संक्रमण है, जो दूषित खाना और दूषित पानी की वजह से होता है (10)
  • ज्यादा दिन की फिश – ज्यादा दिन की फिश को खाना खतरे से खाली नहीं होगा, क्योंकि इस तरह की फिश में हानिकारक बैक्टीरिया का प्रवेश होता है। इसे खाने पर सारे बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और शरीर को क्षति पहुंचा सकते हैं (11)
  • साल्मोनेला – साल्मोनेला बैक्टीरिया का हानिकारक प्रभाव कॉलरा बैक्टीरिया जैसा ही है। इसमें दस्त की समस्या होती है और पानी की कमी हो जाती है। किसी भी खाद्य पदार्थ को पचाना मुश्किल हो जाता है, इसलिए इसमें हल्का खाना ही मरीज को खिलाया जाता है (5)

आइए, अब जान लेते हैं कि इस समस्या का मेडिकल ट्रीटमेंट क्या है।

गर्भावस्था में फूड पॉइजनिंग का इलाज कैसे किया जा सकता है?

गर्भावस्था के दौरान फूड पॉइजनिंग होने पर बिना देरी किए डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टर इस समस्या का निम्न प्रकार से उपचार कर सकते हैं (5):

  • हाइड्रेटेड रहें – फूड पॉइजनिंग की अवस्था में उल्टी और दस्त शुरू हो सकते हैं। इससे डिहाइड्रेशन हाे सकता है, जो गर्भवती महिला के लिए खतरनाक स्थिति है। इससे निपटने के लिए डॉक्टर पर्याप्त पानी, सूप या फिर ओआरएस (ओरल रिहाइड्रेशन सिस्टम) का घोल पीने की सलाह दे सकते हैं। इससे शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स के स्तर को संतुलित किया जा सकता है ।
  • कारण की पहचान करें – इस समस्या के पीछे मुख्य कारण क्या है, इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर कुछ मेडिकल टेस्ट कर सकते हैं। अब किसके लिए कौन-सा मेडिकल टेस्ट सही है, यह डॉक्टर ही बेहतर बता सकते हैं।
  • एंटीबायोटिक – कारण की सही पहचान होने पर डॉक्टर उचित एंटीबायोटिक दे सकते हैं। ये एंटीबायोटिक दवा न सिर्फ गर्भवती महिला के लिए सुरक्षित होती है, बल्कि भ्रूण को भी संक्रमित होने से बचा सकती है। ध्यान रहे कि गर्भवती महिला को बिना डॉक्टरी की सलाह के कोई भी दवा नहीं लेनी चाहिए।

लेख के इस जरूरी भाग में फूड पॉइजनिंग से निपटने के लिए जरूरी घरेलू उपचार बताए गए हैं।

फूड पॉइजनिंग में कौन-से घरेलू नुस्खे अपनाने चाहिए?

मेडिकल ट्रीटमेंट के साथ-साथ कुछ घरेलू नुस्खे भी हैं, जो गर्भवती महिला को इस समस्या से उबरने में मदद कर सकते हैं। आइए जानते हैं फूड पॉइजनिंग के घरेलू उपायों के बारे में।

  • जितना हो सके ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में जमा सभी विषाक्त पदार्थ बाहर निकल सकते हैं।
  • फूड पॉइजनिंग होने पर नरम, हल्के और आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। इससे पाचन तंत्र को सही प्रकार से काम करने में मदद मिल सकती है। अब इस स्थिति में किसी गर्भवती के लिए कौन-सा खाद्य पदार्थ लेना उचित है, उसे बारे में डॉक्टर ही बता सकते हैं।
  • इस अवस्था में प्रोबायोटिक्स युक्त खाद्य पदार्थ लेने की सलाह दी जाती है, जैसे कि दही। अब गर्भावस्था में दही लेनी चाहिए या नहीं, यह गर्भवती महिला की अवस्था पर निर्भर करता है।
  • पूरी तरह से बाहर के खाने और पैक व डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से दूर रहें।
  • गर्भावस्था में नारियल पानी का सेवन किया जा सकता है। इसे इलेक्ट्रोलाइट का सबसे बेहतर स्रोत माना गया है। इससे गर्भवती महिला को राहत मिल सकती है।

अब जानते हैं कि प्रेगनेंसी में फूड पॉइजनिंग होने से किस बात का खतरा रहता है।

गर्भावस्था में फूड पॉइजनिंग से होने वाले खतरे

गर्भावस्था में फूड पॉइजनिंग मां और होने वाले शिशु दोनों के लिए खतरनाक है। इससे मां और शिशु दोनों को निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है (3) (4) (5):

  1. न्यूरोलॉजिकल विकास पर प्रभाव – गर्भावस्था के दौरान फूड पॉइजनिंग होने से गर्भ में पल रहे शिशु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके कारण होने वाले शिशु का मानसिक विकास बाधित हो सकता है।
  1. खून में इंफेक्शन – गर्भवती महिला के रक्त में संक्रमण फैल सकता है। इससे जोड़ों में दर्द व तेज बुखार हो सकता है।
  1. गर्भपात या समय पूर्व जन्म – कुछ मामलों में फूड पॉइजनिंग के चलते गर्भावस्था प्रभावित हो सकती है। इससे प्रीटर्म बर्थ होने की आशंका बनी रहती है। वहीं, कुछ गंभीर मामलों में गर्भपात तक हो सकता है।

चलिए, अब जानते हैं फूड पॉइजनिंग के बचाव से जुड़ी जरूरी जानकारी।

गर्भावस्था में फूड पॉइजनिंग से बचाव कैसे करें?

सामान्य व्यक्ति से लेकर गर्भवती महिला नीचे बताई गई बातों को ध्यान में रखकर इस बीमारी से बच सकती है (12):

  • खाने से पहले अपने हाथों को साबुन से अच्छे से साफ करें।
  • कच्चे मीट, मछली व अड्डों के लिए उपयोग किए गए बर्तनों में खाना बनाने से पहले उन्हें अच्छी तरह साफ करें।
  • मांसाहारी खाद्य पदार्थों व अंडे को कच्चा या अधपका खाने से बचें।
  • रेफ्रिजरेटर को लगभग 40° F (4.4° C) और फ्रीजर को 0° F (-18° C) या उससे नीचे के तापमान पर रखें।
  • 1-2 दिन से ज्यादा समय तक फ्रिज में रखे बिना पके मांस को न खाएं।
  • उन खाद्य पदार्थों का उपयोग न करें जिनकी गंध अच्छी न हो या फिर खाने का स्वाद बदल गया हो।
  • हमेशा साफ और फिल्टर किया पानी ही पिएं।

इस विषय से संबंधित और जानकारी के लिए जुड़े रहें हमारे साथ।

फूड पॉइजनिंग से ठीक होने में कितना समय लगता है?

फूड पॉइजनिंग का प्रभाव परहेज करने से कुछ ही दिन में कम हो जाता है। साथ ही यह प्रत्येक गर्भवती महिला के के इम्यून सिस्टम व स्वास्थ्य पर भी निर्भर करता है। हां, अगर अवस्था गंभीर हो, तो इसे ठीक होने में समय लग सकता है (6)

आगे जानिए कि इस समस्या में किस गर्भवती महिला को बिना देरी किए डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

डॉक्टर से कब परामर्श करें?

अगर गर्भवती महिला जरा भी महसूस होता है कि उसे फूड पॉइजनिंग है, साथ ही मतली, उल्टी या दस्त के लक्षण दिखे, तो बिना देरी किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।इस दौरान  इंतजार नहीं करना चाहिए, क्योंकि गर्भावस्था सबसे नाजुक दौर होता है और इसमें किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहिए।

गर्भावस्था जैसे नाजुक दौर में फूड पॉइजनिंग होना मां और शिशु दोनों के लिए सही संकेत नहीं है। इसलिए, बेहतर यही है कि गर्भवती महिला अपने खानपान पर पूरा ध्यान दे, ताकि ऐसी किसी भी अवस्था से बचा जा सके। हां, अगर तमाम सावधानियों के बावजूद गर्भवती महिला इसका शिकार हो जाती है, तो बिना समय गंवाए डॉक्टर के पास जाना चाहिए और ऊपर लेख में बताए गए घरेलू उपचार का पालन करना चाहिए। गर्भावस्था से जुड़ी ऐसी ही और फायदेमंद जानकारी के लिए पढ़ते रहें मॉमजंक्शन।

References

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