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घर में नन्हे मेहमान के आने की सूचना भर से परिजन झट से पालना खरीद लाते हैं। घर के बड़े-बुजुर्गों का ऐसा मानना होता है कि छोटे बच्चे झूले में जल्दी सो जाते हैं। साथ ही उन्हें झूले में सोता देख हर किसी को उस पर प्यार आ जाता है। वहीं, डॉक्टर की बात करें, तो वो शिशुओं को झूले में सुलाने से मना करते हैं। अब दूविधा ये है कि घर के बड़े-बुजुर्गों की बात मानें या डॉक्टर की सुनें। मॉमजंक्शन के इस आर्टिकल में हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे। हम जानेंगे कि झूले का उपयोग करना चाहिए या नहीं और करना है, तो किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

सबसे पहले जानेंगे कि शिशु को पालने में सुलाना चाहिए या नहीं।

क्या शिशु का पालने में सोना सुरक्षित है?

नहीं, डॉक्टरों का कहना है कि शिशु को हमेशा ठोस, सपाट और स्थिर सतह वाली जगह पर सुलाना चाहिए, जबकि पालने की सतह सपाट नहीं होती। इसलिए, शिशु को झूले में सुलाना सही नहीं है। झूले में सुलाने से शिशु का सिर आगे की तरफ झुक सकता है, जिस कारण उसे सांस लेने में दिक्कत हो सकती है (1)। डॉक्टर कहते हैं कि छोटे बच्चों को ऐसे सुलाना चाहिए कि उनकी रीढ़ की हड्डी पर बल पड़े। सोने की स्थिति सही न हो, तो बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है (2)। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि गलत पॉश्चर में सोने से शिशुओं में सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम (SIDS) का खतरा बढ़ सकता है (3)।

निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि शिशु को झूले में सुलाना सुरक्षित नहीं है। हां, अगर शिशु जाग रहा है, तो उसे खेलने के लिए पालने में लेटाया या बैठाया जा सकता है। इस अवस्था में भी उस पर नजर बनाए रखना जरूरी है।

आगे जानते हैं कि बेबी को पालने में कितनी देर के लिए छोड़ना चाहिए।

शिशु को कब तक झूले में रहने देना चाहिए?

शिशु को कम से कम समय तक झूले में रहना चाहिए। दिन भर में 1 घंटे से ज्यादा समय तक झूले में बैठाना या लेटाना नहीं चाहिए। साथ ही एक बार में लगातार आधे घंटे से ज्यादा समय तक झूले में नहीं छोड़ना चाहिए। आप इसे कुछ इस तरह से समझें कि झूला आपके शिशु के सिर्फ मनोरंजन के लिए है। ऐसे में आराम और खेलने के दौरान थोड़े समय के लिए इसका प्रयोग किया जाना चाहिए (4)।

अब जानते हैं कि शिशु को झुले में सुलाने के क्या-क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

छोटे बच्चे को झूले में सुलाने से होने वाले नुकसान

पालने में शिशु का पोश्चर सही नहीं होने की वजह से उन्हें नुकसान पहुंच सकता है। यहां हम जानेंगे कि छोटे बच्चे को झूले में सुलाने के क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं।

  1. घुटन की समस्या : शिशु के गर्दन की मांसपेशियां पूरी तरह से विकसित नहीं होती हैं। पालने में सुलाने की वजह से उनके सिर का वजन गर्दन पर दबाव डाल सकता है। इसलिए, देखा गया है कि कुछ मामलों में घुटन हो सकती है। वहीं रिसर्च में सामने आया है कि नरम सतहों जैसे सोफा, वॉटरबेड, तकिया, रजाई या पालने में सुलाना नहीं चाहिए। इससे सडेन इंफेन्ट डेथ सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है (4) (5)।
  1. गिरने का खतरा : पालने में बच्चे के गिरने का खतरा बढ़ जाता है। 6 महीने तक होते-होते बच्चा रेंगना, लुढ़कना और हाथ-पैर मारना शुरू कर देता है। जानकारों का मानना है कि ऐसे में पालने में लेटे शिशु को चोट लगने की आशंका बढ़ जाती है।
  1. आदत लगना : शिशु को पालने में सोने की आदत लगने से वह उसी में सोना चाहेगा। ऐसे में उसे बेड या कहीं और नींद ही नहीं आएगी। एक बार पालने की आदत लग जाने से छुड़ाने में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
  1. विकास में रुकावट : छोटे बच्चों को पलटने, घुटनों के बल रेंगने और दूसरी गतिविधियों के लिए जगह की जरूरत होती है। अगर उन्हें पालने में रखा जाएगा, तो वे ये एक्टिविटी नहीं कर पाएंगे। यह उनके विकास के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। वहीं, पालने से बाहर होने पर वो दूसरी चीजों को देखकर उनकी तरफ आकर्षित होंगे और शारीरिक गतिविधि बेहतर तरीके से कर पाएंगे। इससे उनकी हड्डियों व मांसपेशियों का विकास होगा।
  1. एसिड रिफ्लक्स (खट्टी डकार) बिगड़ना : खट्टी डकार की स्थिति में कुछ पैरेंट्स अपने बच्चों को झूले में पेट के बल लिटा देते हैं। वो मानते हैं कि उल्टा लेटाने से ऐसी स्थिति में सुधार हो सकता है, जबकि ऐसा नहीं है। उल्टा ऐसा करने पर बच्चे की स्थिति और खराब हो सकती है (4)।
  1. कमजोर मांसपेशियां: शिशु की मांसपेशियों में पर्याप्त क्षमता नहीं होती है, जिस कारण वो अपने सिर को सहारा देने और अपनी गर्दन को सीधा नहीं रख पता है। जिस प्रकार शिशु को गोद में उठाते समय उसके गर्दन को सहारा दिया जाता है, उसी प्रकार सोते समय भी बच्चे की गर्दन को सहारे की जरूरत होती है। वहीं, झूले में शिशु के सिर और गर्दन को सपोर्ट मिल सके, ऐसा संभव नहीं है (“follow noopener noreferrer”>5 6)।
  1. प्लेगियोसेफली की समस्या : अगर बच्चा झूले में ज्यादा समय बिताता है, तो प्लेगियोसेफली का खतरा बढ़ जाता है। इसमें बच्चे का सिर चिपटा हो सकता है। झूले में बच्चे के सिर की गतिविधि कम होती है। वह अपने सिर को अच्छी तरह से चारों तरफ नहीं घुमा पाता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स का भी यही मानना है कि शिशु को ज्यादा देर तक झूले में रखने से प्लेगियोसेफली की समस्या हो सकती है (7)।

आगे जानते हैं कि अगर शिशु को पालने की आदत लग जाए, तो इसे कैसे दूर किया जा सकता है।

शिशु की झूले में सोने की आदत कैसे दूर करें?

बच्चे को अगर एक बार पालने या झूले में सोने की आदत पड़ जाए, तो उसे कहीं और सोने में परेशानी आती है। ऐसे में पैरंट्स की परेशानी पढ़ सकती है। यहां दिए कुछ टिप्स अपनाकर शिशु की इस आदत को बदला जा सकता है।

  1. सोने के बाद जगह बदलें : एक बार बच्चा झूले में सो जाए, तो उसे आराम से बेड या दूसरी सुरक्षित जगह पर सुला दें। पालने का उपयोग सिर्फ शिशु के सोने के लिए करें। ऐसे में बेबी की झूले में सोने की आदत धीरे-धीरे छूट सकती है।
  1. कमरे में शोर न हो : बच्चे के कमरे को हमेशा अंधेरा रखें और कोशिश करें कि वहां शांत रहे, ताकि बच्चे की नींद न टूट जाए। पालने को भी ठीक उसी स्थान पर और उसी कमरे में रखें। लगातार ऐसा सोने का माहौल बच्चे की पालना छोड़ने की आदत में मदद कर सकता है।
  1. झूले का इस्तेमाल खेलने में : बच्चे को झूले में सुलाने के बजाए, सिर्फ खेलने के लिए बैठाएं। बच्चे को पालने में व्यस्त रखें और उसके साथ मनोरंजक खेल खेलें। बच्चा जितनी देर पालने में रहे, उसके साथ खेलते रहें, ताकि वो सोए न। फिर जैसे ही लगे कि वो गहरी नींद में सोने वाला है, तो उसे उठाकर बेड पर लेटा दें। इससे उसकी झूले में सोने के आदत कुछ दिनों बाद अपने आप छूट सकती है।
  1. अच्छे से लपेट कर सुलाएं : शिशु को कपड़े में अच्छी तरह लपेटकर पालने में सुलाने की जगह बेड पर सुलाएं। इस स्थिति में बच्चे को मां के गर्भ की तरह गर्मी महसूस करने में मदद मिलती है।
  1. मालिश करें: हल्के हाथों से की गई मालिश से शिशु को आराम मिलता है। इससे शिशु को अच्छी नींद आने की संभावना बढ़ सकती है। मालिश के बाद उसे दूध पिलाएं और फिर बेड पर सुला दें।
  1. बांहों में लेकर झुलाएं : शिशु को पालने में सुलाने से बेहतर है कि उसे बांहों में लेकर झुलाएं और सो जाने पर बेड पर सुला दें। इस दौरान लौरी सुनाकर भी उसे शांत करने की कोशिश कर सकती हैं।

इस विषय के संबंध में और जानकारी के लिए पढ़ते रहें यह लेख।

शिशु के लिए झूले के अलावा सुरक्षित विकल्प

पालने में शिशु को सुलाने के नुकसान को देखते हुए इसके सुरक्षित विकल्प के बारे में जानना जरूरी हो जाता है। यहां हम कुछ ऐसे ही विकल्प के बारे में चर्चा करेंगे।

  1. क्रिब : इसे शिशु का बिस्तर भी कह सकते हैं। यह शिशुओं के सोने के लिए सबसे सुरक्षित विकल्प है। इसका ठोस और स्थिर सतह शिशुओं के सोने के लिए आदर्श है। साथ ही जब शिशु खड़े होने का प्रयास करने लगते हैं, तो इसके साइडबार उसे खड़ा होने में मदद करते हैं। साथ ही यह झूले की तरह हिलता भी नहीं है।
  1. बासीनेट्स: यह एक बेबी बास्केट होता है, जिसे पैरों के ऊपर लगाया जाता है। घर के अंदर एक बासीनेट को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना आसान होता है। यात्रा के दौरान आसानी से ले जाने के लिए फोल्डेबल और पोर्टेबल बासीनेट भी आते हैं।
  1. क्रेडल: ये बासीनेट से अधिक मजबूत होते हैं और पालने से छोटे होते हैं। बच्चे को शांत करने के लिए इसे हिलाया जा सकता है। कुछ क्रेडल में पहिए भी लगे होते हैं, जिस कारण इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना आसान होता है।

आइए, अब जानते हैं कि जब शिशु को झूले में बैठाएं, तो किन चीजों का ध्यान रखें।

शिशु के लिए झूले का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

शिशु को झूले में सुलाने के कई नुकसान हैं, जिस बारे में हम लेख में स्पष्ट कर चुके हैं। फिर भी कुछ माता-पिता अपने बच्चे को पालने में सुलाना पसंद करते हैं, क्योंकि इससे छोटे बच्चे को बहलाना आसान होता है (8)। ऐसे अवस्था में शिशु के लिए झूला इस्तेमाल करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना जरूरी है:

  • झूला खरीदने समय ही उस पर लिखे निर्देशों को ध्यान से पढ़कर सावधानीपूर्वक सेट करना चाहिए।
  • शिशु जब पालने में खेल रहा हो, तो इस बात का ध्यान रखें कि झूले की जंजीर कहीं से टूटी या खुली तो नहीं। कई बार ध्यान नहीं देने से हादसे की आशंका बढ़ जाती है।
  • जब तक बच्चा पालने में रहे, उसके आसपास ही रहें, ताकि किसी भी प्रकार की अनहोनी को होने से रोका जा सके।
  • मार्केट में बच्चे के लिए कई तरह के झूले मौजूद हैं। इस बात का खास ध्यान रखें कि झूला उसके वजन के हिसाब से मजबूत होना चाहिए।
  • शिशु के झूले में लगा कपड़ा बहुत ही मुलायम होना चाहिए, ताकि शिशु को चुभे नहीं।
  • पालने की मच्छरदानी छोटे छेद वाली हो, ताकि मच्छर अंदर न घुस पाएं और बच्चा आराम से उसमें खेल सके।

हम उम्मीद करते हैं कि ये लेख पढ़ने के बाद कोई भी अपने शिशु को पालने में नहीं सुलाएगा। साथ ही अगर कोई सिर्फ खेलने के लिए शिशु को पालने में छोड़ रहा है, तो हमेशा उस पर नजर बनाए रखेंगे। यह आपके शिशु के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। बच्चों की सेहत से जुड़ी ऐसी और ढेरों जानकारी के लिए आप हमारे अन्य आर्टिकल पढ़ सकते हैं।

References

  1. The Journal of Pediatrics
    https://www.jpeds.com/content/JPEDSBatra
  2. Sleeping position in infants over 6 months of age: implications for theories of sudden infant death syndrome
    https://academic.oup.com/femspd/article/25/1-2/29/439093
  3. Infant sleeping position and the sudden infant death syndrome: systematic review of observational studies and historical review of recommendations from 1940 to 2002
    https://academic.oup.com/ije/article/34/4/874/692905
  4. SIDS and Other Sleep-Related Infant Deaths: Evidence Base for 2016 Updated Recommendations for a Safe Infant Sleeping Environment
    https://www.cpsc.gov/s3fs-public/AAP_Sleep%20Death%20Technical%20Report%202016.pdf
  5. SAFE SLEEP FOR YOUR BABY
    https://www.nichd.nih.gov/sites/default/files/publications/pubs/Documents/STS_brochure_American_Indian_ed.pdf
  6. Positioning and baby devices impact infant spinal muscle activity
    https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC7188598/
  7. Car Seats, Infant Carriers, and Swings Their Role in Deformational Plagiocephaly
    https://journals.lww.com/jpojournal/fulltext/2003/07000/car_seats,_infant_carriers,_and_swings__their_role.10.aspx
  8. The effects of vestibular stimulation on a child with hypotonic cerebral palsy
    https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4434027/
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