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पीलिया ऐसी बीमारी है, जिसमें आंखें और त्वचा पीली पड़ जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि अधिकांश बच्चे जन्म के समय पीलिया यानी जॉन्डिस से पीड़ित होते हैं। हालांकि, जन्म के एक-दो सप्ताह में शिशु का जॉन्डिस खुद से ठीक हो जाता है, लेकिन ऐसा न होने पर इसका समय पर उपचार कराना जरूरी हो जाता है। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम नवजात शिशु को पीलिया होने के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में बात करेंगे।
नवजात शिशुओं को जन्म के समय पीलिया क्यों होता है? | Newborn Baby Ko Jaundice
शिशुओं को पीलिया तब होता है, जब उनमें बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है। नवजात शिशुओं के अंग बिलीरुबिन को खुद से कम करने के लिए ठीक से विकसित नहीं हुए होते, जिस वजह से उन्हें जन्म के समय पीलिया हो जाता है। इस तरह का पीलिया आमतौर पर शिशु के जन्म के 24 घंटे बाद नजर आता है। फिर यह तीसरे या चौथे दिन में और बढ़ सकता है, जो आमतौर पर एक सप्ताह तक रहता है (1)।
नवजात शिशुओं में पीलिया कितना आम है?
नवजात शिशुओं में पीलिया होना काफी आम है। 10 में से छह नवजात शिशु पीलिये से पीड़ित हो जाते हैं। वहीं, 10 बच्चों में से आठ समय से पहले जन्में (गर्भावस्था के 37वें सप्ताह से पहले) बच्चे होते हैं। 20 में से केवल एक ही बच्चे को इसके इलाज की जरूरत होती है (2)।
नवजात शिशु में पीलिया के कारण
नवजात शिशु को किन कारणों से पीलिया होता है, इसके बारे में जानकारी होनी जरूरी है। नीचे हम नवजात शिशु में पीलिया होने के कारण बता रहे हैं :
- अविकसित लिवर : शरीर में बिलीरुबिन की अधिकता शिशुओं में पीलिया होने का अहम कारण होता है। आपको बता दें कि लिवर खून से बिलीरुबिन के प्रभाव को कर करने या फिर साफ करने काम करता है। फिर इसे आंतों तक पहुंचा देता है, लेकिन नवजात शिशु का लिवर ठीक से विकसित नहीं होता, जिस कारण वह बिलीरुबिन को फिल्टर करने में सक्षम नहीं होता। यही कारण है कि शिशु में इसकी मात्रा बढ़ जाती है और उसे पीलिया हो जाता है।
- प्रीमेच्योर बेबी : प्रीमेच्योर बेबी को जॉन्डिस होने का खतरा ज्यादा रहता है। प्रीमेच्योर बेबी का लिवर अविकसित होता है, जिस कारण उसे पीलिया हो जाता है। करीब 80 प्रतिशत प्रीमेच्योर बेबी को पीलिया होता ही है (3)।
- ठीक से स्तनपान न करना : कुछ महिलाओं के स्तनों में ठीक से दूध नहीं बन पाता, जिस कारण शिशु को पर्याप्त पोषण न मिल पाने के कारण जॉन्डिस हो सकता है।
- बेस्ट मिल्क के कारण : ब्रेस्ट मिल्क के कारण : कभी-कभी ब्रेस्ट मिल्क में ऐसे तत्व मौजूद होते हैं, जो बिलीरुबिन को रोकने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचाते हैं। इस वजह से भी शिशु पीलिया के चपेट में आ सकता है। अमूमन, पीलिया शिशु के पैदा होने के एक हफ्ते बाद शुरू होता है और दूसरे या तीसरे सप्ताह में चरम पर होता है (4)।
- रक्त संबंधी कारण : यह तब होता है, जब मां और भ्रूण का ब्लड ग्रुप अलग-अलग होता है। ऐसी अवस्था में मां के शरीर से ऐसे एंटीबॉडीज निकलते हैं, जो भ्रूण की लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये शरीर में बिलीरुबिन की मात्रा को बढ़ाते हैं, जिससे बच्चा पीलिये के साथ जन्म लेता है।
- अन्य कारण : इनके अलावा, लिवर के ठीक से काम न करने, बैक्टीरियल या वायरल इन्फेक्शन व एंजाइम की कमी के कारण भी बच्चे को पीलिया हो सकता है।
नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण | Baccho Me Piliya Ke Lakshan
नवजात शिशु को पीलिया होना ज्यादा खतरनाक नहीं है, बशर्ते उसके लक्षणों को सही समय पर पहचान कर जरूरी सावधानियां बरत ली जाएं। इसलिए, नीचे हम आपको शिशु को पीलिया होने के लक्षण बता रहे हैं :
- पीलिया होने का सबसे पहला लक्षण है कि आपको शरीर पर पीलापन नजर आएगा। शिशु को पीलिया होने पर सबसे पहले चेहरे पर पीलापन दिखेगा। उसके बाद छाती पर, पेट पर, हाथों पर व पैर पर पीलापन आने लगेगा।
- पीलिया होने पर शिशु की आंखों का सफेद भाग भी पीला पड़ने लगता है।
इसके अलावा, कुछ अन्य लक्षण भी हैं, जो इस बात का संकेत देते हैं कि अब शिशु को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए, जैसे :
- अगर शिशु की भूख खत्म होने लगे।
- अगर वो आपको सुस्त दिखाई देने लगे।
- अगर वो बहुत तेज-तेज रोता रहे।
- अगर उसे 100 डिग्री से ज्यादा बुखार हो।
- अगर उसे उल्टी-दस्त या दोनों ही लगे हों।
- शिशु को गहरे पीले रंग का पेशाब और फीके रंग का मल आए।
- इसके अलावा, अगर शिशु को सात दिन का हो जाने के बाद पीलिया हुआ हो, तो यह चिंता का विषय बन सकता है।
पीलिया का निदान कैसे किया जाता है?
अगर आपको ऊपर बताए गए गंभीर लक्षण नजर आते हैं, तो शिशु को डॉक्टर के पास ले जाने में देरी न करें। डॉक्टर लक्षणों को समझते हुए नीचे बताए गए तरीकों से शिशु के पीलिये की जांच कर सकते हैं :
- शारीरिक जांच के आधार पर डॉक्टर शिशु के हाथ, हथेलियों और त्वचा पर पीलेपन की जांच करते हैं।
- इसके अलावा, पीलिये की जांच के लिए डॉक्टर बच्चे के खून की जांच करते हैं। इस जांच में बिलीरुबिन का स्तर और स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं के स्तर का पता लगाया जाता है।
- वहीं, बच्चे में पीलिये की जांच के लिए यूरिन और मल की जांच भी की जा सकती है। इससे यह पता लगाया जाता है कि कहीं शिशु के लिवर में संक्रमण तो नहीं है, क्योंकि लिवर में संक्रमण के चलते भी पीलिया हो सकता है।
ऐसे में शिशु को कम से कम तीन दिन तक रोजाना डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। फिर बाद में पांचवें दिन ले जाना चाहिए। शुरुआत के पांच दिनों में ही बिलीरुबिन का उच्च स्तर सामने आता है।
नवजात शिशु में पीलिया का लेवल चार्ट | Newborn Baby Jaundice Level Chart In Hindi
नीचे हम नवजात शिशु में पीलिये का लेवल चार्ट दे रहे हैं, जिसमें बिलीरुबिन की मात्रा से जुड़ी जानकारी दी गई है (5)। यह चार्ट सैम्पल के तौर पर साझा किया गया है। बिलीरुबिन की मात्रा को लेकर किसी भी तरह की जानकारी के लिए डॉक्टरी सुझाव लेना बेहतर विकल्प होता है :
शिशु की उम्र (दिन में) | सामान्य बिलीरुबिन | कम जोखिम | लो इंटरमीडिएट जोखिम | हाई इंटरमीडिएट जोखिम | हाई रिस्क |
---|---|---|---|---|---|
एक दिन | 5 एमजी/डीएल से कम | 5 एमजी/डीएल | 5-6 एमजी/डीएल | 6-7.7 एमजी/डीएल | 7.7 एमजी/डीएल से ज्यादा |
दो दिन | 8.5 एमजी/डीएल से कम | 8.5 एमजी/डीएल | 8.5-11 एमजी/डीएल | 11-13 एमजी/डीएल | 13 एमजी/डीएल से ज्यादा |
तीन दिन | 11 एमजी/डीएल से कम | 11 एमजी/डीएल | 11-13.3 एमजी/डीएल | 13.3-16 एमजी/डीएल | 16 एमजी/डीएल से ज्यादा |
चार दिन | 12.3 एमजी/डीएल से कम | 12.3 एमजी/डीएल | 12.3-15 एमजी/डीएल | 15-17.3 एमजी/डीएल | 17.3 एमजी/डीएल से ज्यादा |
पांच दिन | 13.2 एमजी/डीएल से कम | 13.2 एमजी/डीएल | 13.2-15.7 एमजी/डीएल | 15.7-17.5 एमजी/डीएल | 17.5 एमजी/डीएल से ज्यादा |
अगर शिशु का पीलिया ज्यादा बढ़ जाए, तो आप घबराएं नहीं। उसे डॉक्टर के पास लेकर जाएं। डॉक्टर बच्चे की स्थिति देखकर जरूरी इलाज करेंगे। ऐसे में डॉक्टर नीचे बताए गए तरीकों से शिशु का इलाज कर सकते हैं :
- फोटोथैरेपी : बच्चों में पीलिया का उपचार करने का यह जाना-माना तरीका है। इस थैरेपी के दौरान शिशु को ऐसी रोशनी के नीचे बिस्तर पर लिटाया जाता है, जो वेवलेंथ किरणें छोड़ती है। इस दौरान शिशु की आंखों को सुरक्षित रखने के लिए पट्टी लगा दी जाती है। इस दौरान, शिशु को आराम देने के लिए हर तीन-चार घंटे में आधे घंटे के लिए यह प्रक्रिया बंद की जाती है। इस आधे घंटे में मां शिशु को दूध पिला सकती है और उसकी नैपी बदल सकती है। इस दौरान, बच्चे को हाइड्रेट रखना जरूरी है और स्तनपान इसका बेहतरीन जरिया माना जाता है (6)।
- इम्यूनोग्लोबुलीन इन्जेक्शन : यह इन्जेक्शन तब लगाया जाता है, जब शिशु और मां का ब्लड ग्रुप अलग-अलग होने के कारण शिशु को पीलिया हो सकता है। हालांकि, जरूरी नहीं है कि हमेशा ही यही कारण हो। ऐसे में यह इन्जेक्शन शिशु के शरीर में एंटीबॉडीज के स्तर को कम करता है। ऐसा करने से पीलिया कम होने लगता है।
- शिशु का रक्त बदलना : यह तरीका तब अपनाना पड़ता है, जब अन्य कोई उपचार काम नहीं करता। इस प्रक्रिया में बार-बार डोनर के रक्त के साथ शिशु का रक्त बदला जाता है। यह तब तक किया जाता है, जब तक पूरे शरीर से बिलीरुबिन की अधिकता कम नहीं हो जाती (2)।
- बिली ब्लैंकेट : बिली ब्लैंकेट ऐसा कंबल है, जिसमें एलईडी लगी होती है। यह एक ऐसा कवर है, जो आपके शिशु को दोनों तरफ से कवर कर लेता है। यह बच्चों का पीलिया ठीक करने में काम आता है (7)। ध्यान रहे कि यह डॉक्टर या विशेषज्ञ की देखरेख में ही उपयोग किया जाना चाहिए, क्योंकि इसे घरेलू उपचार नहीं मान सकते हैं।
नवजात शिशु में पीलिया के घरेलू उपचार
यहां हम कुछ घरेलू उपचार बता रहे हैं, जिनका इस्तेमाल नवजात शिशु को पीलिया होने पर किया जा सकता है :
- धूप में रखें : कई बार डॉक्टर शिशु को फोटोथैरेपी देना जरूरी नहीं समझते। ऐसे में हो सकता है कि वो आपको कुछ देर के लिए बच्चे को धूप में रखने के लिए कहें। भले ही यह फायदेमंद उपचार है, लेकिन कभी भी अपनी मर्जी से बच्चे को धूप में न ले जाएं। यह कोई डॉक्टरी इलाज नहीं है, इसलिए हमेशा डॉक्टर की सलाह लेकर ही बच्चे को धूप में लेकर जाएं (6)।
- स्तनपान कराएं : शिशुओं को पीलिया होने पर उन्हें ज्यादा से ज्यादा स्तनपान कराएं। ब्रेस्ट मिल्क में ऐसे गुण होते हैं, जो बिलीरुबिन के स्तर को कम कर सकते हैं। इसलिए, उसे दिन में आठ से 10 बार स्तनपान जरूर कराएं।
- सप्लीमेंट्स : अगर आपका शिशु ठीक से स्तनपान नहीं कर पा रहा हो और उसे जरूरी पोषण नहीं मिल रहे हैं, तो डॉक्टर से पूछकर मां के दूध का सप्लीमेंट्स दे सकते हैं।
- जूस : अगर आपके बच्चे ने ठोस आहार लेना शुरू कर दिया है, तो आप उसे थोड़ा-थोड़ा गाजर, पालक, गन्ने और वीटग्रास का जूस दे सकते हैं। एक बार इसे देने से पहले आप डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें।
- बिली ब्लैंकेट : बिली ब्लैंकेट ऐसा कंबल है, जिसमें एलईडी लगी होती है। यह एक ऐसा कवर है, जो आपके शिशु को दोनों तरफ से कवर कर लेता है। यह बच्चों का पीलिया ठीक करने में काम आता है (7)।
नवजात शिशुओं में पीलिया के बारे में मिथक
आपको बता दें कि आज भी समाज में पीलिया को लेकर ऐसे कई मिथक प्रचलित हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इसके बावजूद, लोग इन पर भरोसा कर लेते हैं। नीचे हम इन्हीं मिथक की सच्चाई बता रहे हैं :
मिथक – शिशु को पीलिया होने पर स्तनपान कराने वालीं मांओं को पीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए और न ही पीली चीजें खानी चाहिए।
सच्चाई – मां के पीले कपड़े पहनने से या पीली चीज खाने से बच्चे को पीलिया होता है, इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
मिथक – शिशु को पीलिया से बचाने के लिए मां को मसालेदार और तैलीय चीजें नहीं खानी चाहिए।
सच्चाई – इसमें कोई दो राय नहीं है कि स्वस्थ जीवनशैली के लिए मसालेदार और तैलीय चीजों से परहेज करना चाहिए। जब वयस्कों को पीलिया होता है, तो डॉक्टर इन चीजों का सेवन करने से इसलिए मना करते हैं, क्योंकि इससे लिवर पर असर पड़ता है और उन्हें लिवर की वजह से पीलिया होता है। वहीं, बच्चों को पीलिया लिवर के कारण नहीं होता। इसलिए, अगर मां तैलीय चीजें खा रही है, तो उससे स्तनपान करने वाले शिशु को पीलिया होने का खतरा नहीं होगा।
मिथक – शिशु को घर में ट्यूब के नीचे रखने से फोटोथैरेपी हो सकती है।
सच्चाई – यह सरासर गलत है। उल्टा ऐसी ट्यूब के नीचे बच्चे को नग्न लिटाने से उसे ठंड लग सकती है और बुखार हो सकता है। वहीं, फोटोथैरेपी में ऐसी रोशनी के नीचे शिशु को लिटाया जाता है, जिसमें से वेवलेंथ निकलती है। यह सुविधा केवल अस्पतालों में ही मिलती है।
शिशुओं में पीलिया को कैसे रोकें?
ज्यादातर बच्चे पीलिया के साथ ही जन्म लेते हैं, तो ऐसे में इससे बचाव कर पाना मुश्किल ही होता है, लेकिन पैथोलॉजिकल जॉन्डिस से आप बचाव कर सकते हैं (8)। इसके लिए आपको नीचे बताई गई बातों पर ध्यान देने की जरूरत होती है :
- साफ-सफाई पर ध्यान दें : आप जब भी शिशु का डायपर बदलें, तो उसके बाद अपने हाथ अच्छी तरह धोएं। उसी के बाद ही शिशु को दोबारा छुएं। अगर आप बाहर से आ रही हैं, तो शिशु के पास जाने से पहले हाथ-मुंह अच्छी तरह धोएं।
पीलिया होने पर नवजात शिशु को धूप में कितनी देर रखना चाहिए?
आप दिन में दो बार 10-10 मिनट के लिए धूप में रख सकते हैं। बेहतर होगा कि उसे सीधा धूप में न रखकर कमरे में ऐसी जगह पर रखें, जहां खिड़की से धूप आ रही हो (6)। ध्यान रहे कि पीलिया होने पर नवजात शिशु को धूप में रखना कोई मेडिकल चिकित्सा नहीं है। ऐसे में बेहतर है इस बारे में एक बार डॉक्टरी सलाह जरूर लें।
इस लेख में हमने आपको नवजात शिशु को पीलिया होने से संबंधित जरूरी जानकारियां देने की कोशिश की है। उम्मीद है कि यह जानकारियां आपके काम आएंगी। हमारी सलाह यही है कि अगर शिशु में पीलिया के लक्षण दिखे, तो डॉक्टरी परामर्श लेने में बिलकुल भी देर न करें। नवजात में पीलिया घातक भी हो सकता है। ऐसे में इसे गंभीरता से लें और इस लेख को अन्य लोगों के साथ शेयर कर सभी को इस विषय के बारे में जागरूक बनाएं।
References
1. Jaundice in Newborns (Hyperbilirubinemia) By Health link bc
2. Newborn jaundice By NHS
3. Hyperbilirubinemia and Jaundice By children’s hospital of philadelphia
4. Breastfeeding and breast milk jaundice By Ncbi
5. Hyperbilirubinemia in the Term Newborn By American family physician
6. Parents’ knowledge and behaviour concerning sunning their babies; a cross-sectional, descriptive study By Ncbi
7. BiliBlanket phototherapy system versus conventional phototherapy: a randomized controlled trial in preterm infants By Ncbi
8. Jaundice in newborns By Ncbi
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