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ट्यूबरकुलोसिस को विश्व स्तर पर एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या माना गया है। दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी, यानी लगभग दो अरब लोग टीबी रोग से संक्रमित हैं। अनुमान है कि हर साल लगभग 90 लाख लोग इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। 2020 तक करीब 20 करोड़ लोगों के इस बीमारी की चपेट में आने की आशंका है (1)। यही वजह है कि स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम टीबी से संबंधित हर प्रकार की जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं। हम टीबी को होने से रोकने या फिर जिन्हें टीबी हैं, उनमें टीबी के लक्षण कम करने में मदद करने वाले कुछ घरेलू उपचार बता रहे हैं। वहीं, इस गंभीर बीमारी के संकेत मिलते ही तुरंत इलाज के लिए डॉक्टर से संपर्क किया जाना जरूरी है।
चलिए, सबसे पहले जान लेते हैं टीबी रोग कहते किसे हैं।
टीबी क्या है? – What is TB in Hindi
ट्यूबरकुलोसिस जिसे आम भाषा में टीबी के नाम से जाना जाता है, एक गंभीर बीमारी है। यह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह बैक्टीरिया अधिकतर फेफड़ों को निशाना बनाता है, लेकिन फेफड़े के साथ ही शरीर के अन्य अंग को भी यह नुकसान पहुंचा सकता है। यह हवा के माध्यम से फैलने वाली बीमारी है। जब टीबी रोग से ग्रसित व्यक्ति छींकता या खांसता है, तो माइकोबैक्टीरियम हवा के माध्यम से दूसरे व्यक्ति को अपना शिकार बना लेते हैं। अगर किसी का इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है, तो वो आसानी से टीबी रोग की चपेट में आ सकता है। अगर सही तरीके से इलाज न किया जाए, तो टीबी प्राणघातक भी साबित हो सकती है। टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित लोगों को दवा देकर इसे बढ़ने से रोका जा सकता है (2)।
चलिए, अब एक नजर टीबी के प्रकार पर डाल लेते हैं।
टीबी के प्रकार – Types of TB in Hindi
टीबी रोग एक गंभीर बीमारी है, यह तो आप जानते ही हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि टीबी के प्रकार भी होते हैं। दरअसल, टीबी को दो प्रकार में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है (3) (4):
1. लेटेंट टीबी (Latent TB): इस प्रकार के टीबी के दौरान शरीर में ट्यूबरकुलोसिस का बैक्टीरिया रहता है, लेकिन व्यक्ति को बीमार नहीं करता। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रतिरक्षा प्रणाली कीटाणु को फैलने से रोकती है। इस प्रकार के टीबी से ग्रसित व्यक्ति में यह रोग नहीं फैलता है और कई मामलों में तो टीबी के लक्षण भी नजर नहीं आते हैं। ऐसे व्यक्ति संक्रामक नहीं होते, बल्कि टीबी ग्रसित संक्रामक (Infectious) लोगों से संक्रमित (Infected) होते हैं। ऐसे लोगों को एक्टिव टीबी होने का खतरा होता है।
2. एक्टिव टीबी (Active TB) : जब प्रतिरक्षा प्रणाली टीबी के बैक्टीरिया को पनपने से रोक नहीं पाता, तब टीबी बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। जब टीबी के जीवाणु सक्रिय होते हैं तो यह शरीर में गुणा यानी मल्टीप्लाई होने लगते हैं। इसे टीबी रोग व एक्टीव टीबी कहा जाता है। टीबी होने वाले लोग बीमार होते हैं। ये बैक्टीरिया एक से दूसरे व्यक्ति में फैलाते हैं, जिसके साथ संक्रमित व्यक्ति समय बिताते हैं।
टीबी के प्रकार के साथ ही टीबी की साइट्स जानना भी जरूरी है। टीबी साइट्स यानी शरीर का वो हिस्सा जिसे टीबी प्रभावित करता है। टीबी साइट्स को तीन हिस्सों में बांटा गया है। नीचे हम विस्तार से इस बारे में बता रहे हैं।
कहां-कहां होता है टीबी रोग – Sites of TB Disease
आमतौर पर टीबी रोग फेफड़ों यानी लंग्स से संबंधित हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि टीबी रोग शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित नहीं करता है। क्षय रोग के बैक्टीरिया की वजह से रीढ़ की हड्डी में टीबी, पेट का टीबी और बोन टीबी भी हो सकता है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक टीबी रोग कहां-कहां होता है यह हम विस्तार से नीचे बता रहे हैं (5):
- पल्मोनरी (Pulmonary) : टीबी रोग फेफड़ों को सबसे अधिक प्रभावित करता है और इसे पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। पल्मोनरी टीबी के मरीजों में आमतौर पर खांसी होती है। फेफड़े से संबंधित क्षय रोग से प्रभावित लोगों का चेस्ट एक्स-रे असामान्य होने के साथ ही संक्रामक हो सकता है। हालांकि, टीबी के सबसे अधिक मामले फेफड़े में ही होते हैं, लेकिन यह एक अंग से दूसरे अंग में फैल सकता है।
- एक्सट्रापल्मोनरी (Extrapulmonary) : एक्सट्रापल्मोनरी टीबी फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में होता है। इसमें पेट का टीबी, गले, इम्यून सिस्टम ग्लैंड्स (Lymph nodes), मस्तिष्क, किडनी और हड्डी का टीबी शामिल है। एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों में एक्सट्रापल्मोनरी टीबी की समस्या अक्सर पल्मोनरी टीबी के साथ ही होती है। अगर एक्सट्रापल्मोनरी टीबी मुंह या गले में हो जाए, तो यह संक्रामक हो सकता है। साथ ही अगर एक्स्ट्रापल्मोनरी रोग के दौरान या उसकी वजह से फोड़ा व घाव हो जाए, जिससे पानी निकलता हो, तो यह संक्रामक हो सकता है।
- मिलियरी (Miliary) टीबी रोग : मिलियरी टीबी रोग तब होता है, जब ट्यूबरकुलोसिस के बैक्टीरिया ट्यूबरकल बेसिली (Tubercle bacilli) रक्त वाहिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं। फिर ये जीवाणु रक्त प्रवाह के जरिए पूरे शरीर में फैल जाते हैं। यह स्थिति दुलर्भ और बेहद गंभीर होती है। ऐसा सबसे अधिक नवजात और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होता है। इस टीबी का पता किसी भी अंग से लगाया जा सकता है, क्योंकि बैक्टीरिया पूरे शरीर में फैल गए होते हैं। समय रहते उपचार न कराने पर यह प्राणघातक भी हो सकता है।
- केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) : यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में टीबी होने के बजाय इनके आसपास के ऊतक यानी टश्यू में टीबी होता है। इसे ट्यूबरकोलोसिस मेनिन्जाइटिस (Tuberculous meningitis) कहा जाता है।
लेख के अगले हिस्से में हम टीबी के कारण के बारे में बता रहे हैं।
टीबी के कारण – Causes of Tuberculosis in Hindi
टीबी के कारण कुछ इस प्रकार हैं (6) (7):
- माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) बैक्टीरिया के कारण ऐसा हो सकता है।
- जैसा कि हम ऊपर बता ही चुके हैं कि टीबी एक संक्रामक रोग है, इसलिए यह हवा के माध्यम से भी फैल सकता है।
- टीबी ग्रसित व्यक्ति का संक्रमित रूमाल या तौलिया इस्तेमाल करने से भी यह हो सकता है।
- एचआईवी की अवस्था में भी टीबी हो सकता है।
आगे हम टीबी रोग के लक्षण के बारे में बता रहे हैं। इसके बाद टीबी का घरेलू इलाज के बारे में बताएंगे, जो टीबी के लक्षण को कम करने में मदद कर सकता है।
टीबी के लक्षण – TB Symptoms in Hindi
टीबी अधिकतर फेफड़ों में ही होता है, जिसके कई तरह के लक्षण सामने आते हैं। नीचे हम टीबी के आम लक्षणों के बारे में बता रहे हैं (2):
- तीन हफ्ते या उससे ज्यादा समय तक बुरी तरह से खांसी होना।
- भूख में कमी आना।
- खांसते वक्त बलगम और खून का निकलना।
- कमजोरी या थकान महसूस होना।
- बुखार आना।
- रात को पसीना आना।
- सीने में दर्द होना।
- ठंड लगना।
वहीं, बोन टीबी के लक्षण में जोड़ों में दर्द, कमर दर्द व रीढ़ की हड्डी में दर्द शामिल हैं। चलिए, अब एक नजर टीबी के जोखिम कारकों पर भी डाल लेते हैं।
टीबी के जोखिम कारक – Risk Factors of TB in Hindi
वैसे तो टीबी के इलाज के लिए डॉक्टर से ही संपर्क करना चाहिए, लेकिन इसके लक्षण कम करने के लिए टीबी का घरेलू इलाज भी किया जा सकता है। इसके बारे में हम लेख में आगे विस्तार से बताएंगे। वैसे आमतौर पर टीबी रोग की चपेट में आने के ज्यादा जोखिम को दो श्रेणियों में बांटा जाता है (8) (9):
1. ऐसे व्यक्ति, जो हाल ही में टीबी के बैक्टीरिया से संक्रमित हुए हों :
- संक्रामक (Infectious) टीबी रोग वाले व्यक्ति के संपर्क में आने वाले।
- टीबी की उच्च दर वाले देश से लौटने वाले।
- 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे।
- बैक्टीरिया के चपेट में आसानी से आने वाले लोग।
- बेघर व्यक्ति, इंजेक्शन वाले ड्रग का इस्तेमाल करने वाला और एचआईवी संक्रमण वाले व्यक्ति।
- ऐसे लोग, जो टीबी प्रभावित लोगों के साथ रहते हों।
- ऐसे व्यक्ति, जो अस्पतालों या बेघर आश्रयों, सुधारात्मक सुविधाओं व नर्सिंग होम में टीबी के मरीज के साथ काम करते हों।
2. ऐसी बीमारी व शारीरिक समस्या, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करती हो
शिशुओं और छोटे बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली अक्सर कमजोर होती है। इसके अलावा, किसी बीमारी से लड़ रहे लोगों में भी प्रतिरक्षा प्रणाली की कमी देखी जाती है, जो कुछ इस प्रकार हैं:
- एचआईवी संक्रमण (एड्स का कारण बनने वाला वायरस)।
- मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले।
- सिलिकोसिस (फेफड़े से संबंधित रोग)।
- डायबिटीज के मरीज।
- किडनी की गंभीर बीमारी।
- शरीर का कम वजन होना।
- अंग प्रत्यारोपण।
- सिर और गर्दन का कैंसर।
- कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स जैसे चिकित्सा उपचार।
- अर्थराइटिस का कोई खास उपचार।
इसके अलावा धूम्रपान और अल्कोहल के सेवन से भी टीबी होने का खतरा हो सकता है। एक शोध के मुताबिक, धूम्रपान भी टीबी संक्रमण और बीमारी का जोखिम कारक है। घर के अंदर वायु प्रदूषण यानी खाना पकाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ियों से निकलने वाला घुआं और कुषोषण को भी टीबी का जोखिम कारक माना गया है।
टीबी के इलाज के लिए वैसे तो डॉक्टर से ही संपर्क करना चाहिए, लेकिन इसके लक्षण कम करने के लिए टीबी का घरेलू इलाज भी किया जा सकता है। आइए, अब इस बारे में ही जानते हैं।
टीबी के लिए कुछ घरेलू उपाय – Home Remedies for TB in Hindi
1. विटामिन-डी
सामग्री:
- 400 से 800 IU विटामिन-डी
उपयोग का तरीका:
- मछली, डेयरी उत्पाद, पनीर और अंडे जैसे विटामिन-डी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
- डॉक्टर से परामर्श करने के बाद विटामिन डी के सप्लीमेंट भी ले सकते हैं।
कितनी बार इस्तेमाल करें:
- विटामिन-डी का सेवन प्रतिदिन किया जा सकता है।
कैसे लाभदायक है:
विटामिन-डी की कमी वालों में टीबी होने का खतरा अधिक होता है। इसलिए, माना जाता है कि विटामिन-डी का सेवन करने और सुबह के समय सूरज की पहली किरणों में बैठने से ट्यूबरकुलोसिस के खतरे से बचा जा सकता है। विटामिन-डी के माध्यम से टीबी की समस्या पैदा करने वाले माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के संक्रमण को रोकने और इससे होने वाली समस्या को कम करने में मदद मिल सकती है। दरअसल, विटामिन-डी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के साथ ही साइटोकिन (प्रोटीन की श्रेणी) के उत्पादन में सहायता करता है। इससे टीबी के बचाव के साथ ही इसके लक्षण को कम करने में मदद मिल सकती है (10)। अगर आप विटामिन-डी के सप्लीमेंट लेने के बारे में सोच रहे हैं, तो पहले एक बार डॉक्टर से जरूर पूछें।
2. एसेंशियल ऑयल
सामग्री:
- दामियाना (Damiana), लिप्पिए (Lippia) तेल व सेज (Sage) ऑयल
- डिफ्यूजर
- पानी
उपयोग का तरीका:
- पहले डिफ्यूजर को पानी से भर लें।
- अब पानी से भरे डिफ्यूजर में तीनों तेल में से किसी की भी 3-4 बूंदें डाल लें।
- अब इसे इनहेल करें।
कितनी बार इस्तेमाल करें:
- ऐसा रोजाना 1 से 2 बार करें।
कैसे लाभदायक है:
इन तीनों एसेंशियल ऑयल को लेकर किए गए एक अध्ययन की मानें, तो ये एंटीमाइकोबैक्टीरियल (Antimycobacterial) गुणों से भरपूर होते हैं। ये गुण टीबी के बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं। इसलिए, माना जाता है कि इन एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल करके ट्यूबरकॉलोसिस के लक्षण से बचने में मदद मिल सकती है। साथ ही इससे बचाव भी किया जा सकता है (11)।
3. ग्रीन टी
सामग्री:
- 1 चम्मच ग्रीन टी
- 1 कप पानी
- शहद
उपयोग का तरीका:
- एक कप गर्म पानी में एक चम्मच ग्रीन टी डालें।
- उबाल आने के बाद इसे छान लें।
- चाय को थोड़ी देर ठंडा होने के लिए रख दें।
- फिर शहद मिलाकर पी लें।
कितनी बार इस्तेमाल करें:
- रोजाना 1 से 2 बार ग्रीन टी का सेवन किया जा सकता है।
कैसे लाभदायक है:
एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, ग्रीन टी सहित विभिन्न चाय की पत्तियों में एपिग्लोकैटेचिन-3-गैलेट (ईजीसीजी) नामक पॉलीफेनोल्स मौजूद होते हैं। माना जाता है कि यह गुण ट्यूबरकुलोसिस के जीवाणु को बढ़ने से रोक सकता है। इसलिए, टीबी की रोकथाम और बचाव के लिए ग्रीन टी का नियमित सेवन करना अच्छा माना गया है। ग्रीन टी के साथ ही काली और ऊलोंग (Oolong) चाय का सेवन भी किया जा सकता है (12)।
4. प्रोबायोटिक (Probiotics)
सामग्री:
- एक कटोरा प्रोबायोटिक युक्त खाद्य पदार्थ, जैसे- दही
उपयोग का तरीका:
- प्रतिदिन प्रोबायोटिक युक्त दही के एक कटोरे का सेवन करें।
कितनी बार इस्तेमाल करें:
- इसका सेवन दैनिक रूप से किया जा सकता है।
कैसे लाभदायक है:
प्रोबायोटिक्स एक तरह के जीवित सूक्ष्म जीव यानी लाइव माइक्रोऑर्गेनिजम होते हैं। इन्हें स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। दरअसल, प्रोबायोटिक्स में बैक्टीरिया-न्यूट्रलाइजिंग यानी जीवाणु को बेअसर करने का प्रभाव पाया जाता है। इसलिए, माना जाता है कि यह टीबी को बढ़ने से रोकने के साथ ही इससे लड़ने में भी मदद कर सकते हैं। प्रोबायोटिक्स योगर्ट व फर्मेंटिड मिल्क जैसे खाद्य पदार्थों में मौजूद होते हैं (13) (14) (15)।
5. लहसुन
सामग्री:
- 1-2 चम्मच लहसुन का पेस्ट
उपयोग का तरीका:
- आहार में एक से दो चम्मच कुचला हुआ लहसुन व इसका पेस्ट शामिल करें।
- इसके अलावा, सीधे लहसुन को चबाया भी जा सकता है।
कितनी बार इस्तेमाल करें:
- इसका इस्तेमाल प्रतिदिन नियमित रूप से किया जा सकता है।
कैसे लाभदायक है:
लहसुन टीबी के बैक्टीरिया को फैलने से रोकने में मदद करता है। दरअसल, इसमें एलिसिन (Allicin) और अजिन (Ajoene) नामक यौगिक होता है, जो एंटीमाइकोबैक्टीरियल (Antimycobacterial) गुण प्रदर्शित करता है। यह टीबी के बैक्टीरिया से भी लड़ने में लाभदायक होता है। इसलिए, माना जाता है कि लहसुन ट्यूबरकुलोसिस को रोकने और क्षय रोग के लक्षण को कम करने में सहायक हो सकता है (16)।
[ पढ़े: Lahsun Khane Ke Fayde in Hindi ]
6. आंवला (Indian Gooseberry)
सामग्री:
- 3-4 छोटे आंवले
- आवश्यकतानुसार पानी
- आवश्यकतानुसार शहद
उपयोग का तरीका:
- तीन से चार छोटे आंवलों से बीज निकालें।
- अब थोड़ा पानी डालकर इसे ब्लेंड कर दें।
- ब्लेंड करने के बाद इससे रस निकाल लें।
- फिर आंवले के जूस में थोड़ा शहद मिलाएं और तुरंत पी लें।
कितनी बार इस्तेमाल करें:
- रोजाना सुबह खाली पेट एक बार इसे पिया जा सकता है।
कैसे लाभदायक है:
आंवले में मौजूद विटामिन-सी शरीर में बतौर एंटीऑक्सीडेंट काम करता है। इसलिए, यह ट्यूबरकुलोसिस, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के घरेलू उपचार के लिए जरूरी माना जाता है (17)। वहीं, जवारिश (Jawarish) आंवला का सेवन करने से टीबी के लक्षण और टीबी की दवा, जैसे डॉट्स की वजह से होने वाली समस्याएं – जी-मिचलाना, उल्टी आदि से कुछ राहत पाने में मदद मिल सकती है। जवारिश आंवला मीठा, अर्ध-ठोस और दानेदार होता है। यह आंवला (Emblica officinalis) गाय के दूध और चीनी को मिलाकर बनाया जाता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने और लिवर को मजबूत बनाने का भी काम कर सकता है (1)।
7. साबूत काली मिर्च
सामग्री:
- 8-10 साबूत काली मिर्च
- बटर व घी
- नींबू और शहद
उपयोग का तरीका:
- बटर व घी में काली मिर्च को भून लें।
- इसमें थोड़ा-सा शहद और नींबू मिलाकर पेस्ट तैयार करें।
- हर घंटे में आधा चम्मच इस मिश्रण का सेवन करें।
- आप अपने पसंदीदा व्यंजनों में भी काली मिर्च पाउडर मिला सकते हैं।
कितनी बार इस्तेमाल करें:
- ऐसा आपको रोजाना करना चाहिए।
कैसे लाभदायक है:
आमतौर पर लोग काली मिर्च का इस्तेमाल घरघराहट और छींकों को कम करने के लिए करते हैं, लेकिन इसका इस्तेमाल घर में टीबी का इलाज यानी इसके लक्षणों को कम करना और इससे बचाव के लिए भी किया जा सकता है। दरअसल, काली मिर्च में पिपेरिन नामक घटक पाया जाता है, जो इम्युनोमॉड्यूलेटरी एक्टिविटी की क्षमता रखता है। इसकी मदद से शरीर जरूरत के हिसाब से बैक्टीरिया से लड़ता है और माइकोबैक्टीरियल को पनपने से रोकता है (18) (19)।
8. सहजन (Drumstick) के पत्ते
सामग्री:
- एक मुट्ठी ड्रमस्टिक के पत्ते
- 1 कप पानी
- 1 चम्मच नींबू का रस
- एक चुटकी नमक व काली मिर्च
उपयोग का तरीका:
- एक कप ड्रमस्टिक की पत्तियों को धोकर डेढ़ कप पानी में डालें।
- अब इसे सॉस पैन में डालकर उबाल लें और 5 मिनट के लिए पानी में छोड़ दें।
- इसके बाद इसमें एक चम्मच नींबू का रस, एक चुटकी नमक और काली मिर्च डालें।
- फिर इसका सेवन सुबह खाली पेट करें।
कितनी बार इस्तेमाल करें:
- रोजाना इसका सेवन किया जा सकता है।
कैसे लाभदायक है:
सहजन की पत्तियां सीधे तौर पर टीबी व क्षय रोग के लिए लाभदायक नहीं होती हैं, लेकिन माना जाता है कि इसमें मौजूद एंटीमाइक्रोबियल गुण ट्यूबरकुलोसिस से संबंधित बैक्टीरिया को शरीर में पनपने से रोक सकता है (20)। फिलहाल, इस संबंध में और वैज्ञानिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है।
नोट: ध्यान रखें कि टीबी एक गंभीर बीमारी है। अगर किसी को भी टीबी के लक्षणों का अनुभव होता है, तो उसे तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। यह एक गंभीर स्थिति है, जिसके लिए चिकित्सकीय परामर्श और इलाज जरूरी है। घरेलू उपचार टीबी का इलाज नहीं, बल्कि इस बीमारी के लक्षणों को कम करने और इसके बैक्टीरिया को फैलने से रोकने में मदद कर सकता है।
घर में क्षय रोग उपचार कैसे किया जाता है, यह तो आप जान ही चुके हैं। अब हम टीबी का निदान और इलाज के बारे में बता रहे हैं।
टीबी का निदान और इलाज – TB Treatment in Hindi
टीबी रोग जैसी गंभीर स्थिति का समय पर निदान और इलाज जरूरी है। इसको लेकर पूरी जानकारी हम नीचे आपको दे रहे हैं।
टीबी की बीमारी का निदान:
टीबी का निदान करने के लिए टीबी की जांच करना जरूरी है। क्षय रोग से कोई ग्रसित है या नहीं यह सुनिश्चित करने के लिए टीबी स्किन और ब्लड टेस्ट किए जाते हैं। इससे सिर्फ यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति को टीबी की बीमारी है या नहीं, लेकिन यह नहीं पता चलता कि व्यक्ति को लेटेंट टीबी है या एक्टिव टीबी। इसके लिए आगे कई अन्य टेस्ट किए जाते हैं, जैसे – चेस्ट एक्स-रे और थूक का नमूना लिया जाता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति को लेटेंट टीबी है या एक्टिव टीबी रोग (21)।
टीबी की बीमारी का इलाज:
टीबी रोग का इलाज संभव है। 6 से 9 महीने तक कई दवाओं का सेवन करके टीबी का इलाज किया जा सकता है। वर्तमान में टीबी के इलाज के लिए अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) द्वारा 10 दवाएं अनुमोदित की गई हैं। टीबी की दवा कुछ इस प्रकार हैं :
- आइसोनियाजिड (Isoniazid – INH)
- रिफैम्पिन (Rifampin – RIF)
- इथाम्बुटोल (Ethambutol – EMB)
- पाइराजिनमाइड (Pyrazinamide- PZA)
इसके अलावा, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1990 के दशक की शुरुआत से टीबी के इलाज और स्वास्थ्य देखभाल में सुधार करने के लिए शॉर्ट कोर्स डॉट – DOT (डायरेक्टली ऑबसर्बड ट्रीटमेंट – Directly observed treatment) की सिफारिश की थी। इसे टीबी रोग के इलाज के लिए अभी भी भारत व अमेरिका जैसे कई देशों में इस्तेमाल किया जाता है (22)। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार डॉट कई तरह से टीबी रोगी की मदद भी करता है, जो कुछ इस प्रकार है (23):
- स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता टीबी रोगी को समय पर दवाई लेने के बारे में याद कराने में मदद कर सकते हैं, ताकि दवा का कोर्स पूरा हो सके और इलाज अच्छी तरीके से परिणाम दिखाए।
- डॉट उपचार वालों को रोजाना दवा लेने के बजाए, हफ्ते में सिर्फ 2 या 3 बार ही दवाई लेनी होती है। स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता यह भी सुनिश्चित करते हैं कि दवाइयां वैसे ही काम कर रही हैं, जैसे उन्हें करनी चाहिए। ये दवाई की वजह से होने वाले दुष्प्रभावों पर भी गौर करते हैं।
- टीबी के बारे में सभी सवालों के जवाब भी देते हैं।
वैसे अगर किसी को अंग्रजी दवाओं से एलर्जी है, तो एक विकल्प टीबी का आयुर्वेदिक इलाज भी हो सकता है। ध्यान रहे कि आयुर्वेदिक डॉक्टर से टीबी के इलाज के लिए तभी संपर्क किया जा सकता है, जब समस्या ज्यादा गंभीर न हो। ऐसा इसलिए, क्योंकि टीबी का आयुर्वेदिक इलाज अपना असर दिखाने में समय लेता है।
आगे हम टीबी से ग्रसित होने पर किस आहार का सेवन करना चाहिए, इस बारे में बता रहे हैं। क्षय रोग में आहार के बारे में जानने के लिए पढ़ते रहें यह लेख।
टीबी में आहार – Diet for TB in Hindi
ट्यूबरकुलोसिस के लिए क्षय रोग उपचार के साथ ही पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन करना जरूरी है, क्योंकि क्षय रोग में आहार की अहम भूमिका होती है। टीबी पीड़ित कुछ इस तरह की डाइट को फॉलो कर सकते हैं (24) (25)।
खाने का समय | आहार |
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सुबह 7 बजे | बटर टोस्ट, आधा उबला हुआ या पका हुआ अंडा; दलिया या ओटमील और दूध |
सुबह 11 बजे | चावल, सब्जी, मीट की करी, चटनी, दही और नींबू |
चार बजे | दूध, फल और मिठाइयां |
सात बजे | चावल, रोटी, सब्जियां, दाल, मछली की करी, दूध |
नोट: अगर ऊपर बताई गई किसी खाद्य सामग्री में से एलर्जी हो, तो उसका सेवन न करें। साथ ही इनमें कुछ ऐसा हो, जो पसंद न हो, तो उसे किसी अन्य पौष्टिक खाद्य पदार्थ से बदल सकते हैं।
- क्षय रोग में आहार का सेवन करते समय यह ख्याल रखना होगा कि डाइट में भरपूर कैलोरी, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन-ए, डी, ई जरूर शामिल करें।
- खासकर, विटामिन-सी व दो संतरे का प्रति सप्ताह सेवन करें।
- आवश्यक खनिज, जिंक, आयरन, कॉपर व कोलेस्ट्रॉल के लिए फल और सब्जियों का सेवन करें।
- सामान्य नमक की जगह क्लोराइड के अलावा खनिज से भरपूर नमक को उपयोग में लाएं।
- कार्बोहाइड्रेट और पशुओं से मिलने वाले प्रोटीन का सेवन थोड़ा कम करें।
टीबी को फैलने से रोकने के कुछ टिप्स नीचे बता रहे हैं।
टीबी से बचाव – Prevention Tips for TB in Hindi
टीबी रोग को बढ़ने और फैलने से रोकना ही इसके रोकथाम की कुंजी कहलाता है। टीबी की संक्रामकता को रोकने के लिए सक्रिय टीबी रोग का प्रारंभिक निदान और उपचार जरूरी है। टीबी से बचने के कुछ जरूरी टिप्स हम नीचे बता रहे हैं (26) (27)।
- छींकते व खांसते हुए हमेशा मुंह को कपड़े या टिश्यू पेपर से ढकें।
- धूम्रपान करने से बचें और धूम्रपान करने वालों के सामने न रहें।
- शराब पीने से बचें।
- अपना तौलिया और अन्य सामान किसी के साथ शेयर न करें।
- छींकने, खांसने और भोजन करने से पहले व बाद में हाथ धोएं।
- टीबी प्रभावित लोगों के घर न जाएं।
अगर कोई टीबी से प्रभावित है तो उसे टीबी को फैलने से रोकने के लिए इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है:
- टीबी के ठीक होने तक अन्य लोगों से मिलने से बचें।
- भीड़ वाली जगहों व सार्वजनिक जगहों पर ठीक होने से पहले जाने से बचें।
- कमरे की खिड़कियां खुली रखें ताकि ताजी हवा का संचार हो।
- सार्वजनिक परिवहन व गाड़ियों में सफर करने से बचें।
टीबी रोग के बारे में विस्तार से हम आपको जानकारी दे चुके हैं। किसी में भी टीबी से संबंधित लक्षण नजर आने पर, सीधे डॉक्टर के संपर्क करना चाहिए। साथ ही टीबी के लक्षण को कम करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिए डाइट और टीबी के घरेलू इलाज का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। बस इतना ध्यान रखें कि पूरी तरह से घरेलू उपचार और डाइट पर निर्भर रहना ठीक नहीं है, क्योंकि टीबी एक गंभीर रोग है। इसका संपूर्ण इलाज किया जाना जरूरी है। अब, नीचे हम टीबी से संबंधित पाठकों द्वारा पूछे गए कुछ सवाल के जवाब दे रहे हैं। इनके अलावा अगर आपके जहन में कुछ अन्य सवाल हों, तो उन्हें नीचे दिए कमेंट बॉक्स के माध्यम से हम तक पहुंचा सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
टीबी के इलाज के बाद क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
टीबी का इलाज महीनों तक चलता है। क्षय रोग के निर्धारित उपचार के पूरे होने के बाद एक बार फिर टीबी की जांच करवा लेनी चाहिए। इससे यह साफ हो जाएगा कि टीबी के बैक्टीरिया से पूरी तरह से छुटकारा मिल चुका है। साथ ही टीबी रोग के फिर से होने की आशंका से बचने के लिए लेख में ऊपर बताए गए टिप्स को अपनाया जा सकता है।
टीबी शरीर में कब तक रहता है?
शरीर को क्षय रोग के बैक्टीरिया से छुटकारा पाने में कम से कम छह महीने लगते हैं। दरअसल, 6 से 9 महीने तक दवाओं का सेवन करके टीबी रोग का इलाज किया जाता है (23)।
टीबी परीक्षण कैसे काम करता है?
टीबी रोग के संक्रमण का पता लगाने के लिए दो प्रकार से टीबी की जांच की जाती है, एक टीबी स्किन टेस्ट और दूसरा टीबी ब्लड टेस्ट। स्किन टेस्ट में बांह के निचले हिस्से की त्वचा में तरल पदार्थ (जिसे ट्यूबरकुलिन कहा जाता है) की छोटी-सी मात्रा को इंजेक्ट किया जाता है। अगर इंजेक्शन वाले क्षेत्र के चारों ओर की त्वचा एक-दो दिन में कठोर और लाल हो जाती है, तो टीबी हो सकता है। इसके अलावा, दूसरा ब्लड टेस्ट किया जाता है, जिसकी जांच के बाद पता चलता है कि रक्त में टीबी रोग के बैक्टीरिया मौजूद हैं या नहीं (28)।
डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए?
टीबी रोग के लक्षण, जैसे – खांसी, सीने में दर्द, थकान, बुखार, वजन घटना व रात को पसीना आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। टीबी का इलाज और टीबी की दवा जितनी जल्दी शुरू होगी, उतना क्षय रोग के फैलने और बढ़ने का खतरा कम होगा।
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