अच्छी परवरिश से मिलेगा महिलाओं को बराबरी का हक

Written by , BA (Mass Communication) Arpita Biswas BA (Mass Communication)
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आज समाज में महिला और पुरुष के बीच बराबरी की बात हो रही है, लेकिन क्या इससे कुछ फायदा हो रहा है? बेहतर यह होगा कि हम इस पर वाद-विवाद करने की जगह अपने बच्चों का अच्छा पालन-पोषण करने का प्रयास करें। अगर आप गौर करेंगे, तो पाएंगे कि घर में लड़का या लड़की पैदा होने के बाद से ही फर्क शुरू हो जाता है। एक ही घर में दोनों का पालन-पोषण अलग-अलग तरीके से किया जाता है। इसलिए, समाज में बदलाव की नींव बच्चों की परवरिश से ही रखी जाने की जरूरत है। इसी विषय पर है हमारा यह टॉपिक, जानिए बेटे और बेटियों के परवरिश के बारे में कुछ महत्वपूर्ण अंतर।

लड़कों की परवरिश के लिए

खिलौने का चयन

खिलौने बच्चों के जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में लड़कों को खिलौना देते वक्त लिंग का भेदभाव न करें। किसी भी खिलौने पर नहीं लिखा होता कि यह लड़की के लिए है और वो लड़के के लिए। ये भेदभाव हम शुरू करते हैं कि गुड़िया है, तो लड़की खेलेगी और बॉल से लड़का। क्यों न अपने लड़के को किचन सेट दें और उन्हें शेफ बनने और घर के कामों को सीखने का मौका दें। तो क्यों हुई न बदलाव की शुरूआत। आज के समय में घर के काम लड़कियों के साथ-साथ लड़कों को भी आने चाहिए।

भावनाओं को व्यक्त होने दें 

भावनाओं को व्यक्त होने दें 
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‘क्या लड़कियों की तरह रो रहे हो’, ‘तुम लड़का हो बेटा और लड़के रोते नहीं’, ‘बेटा तुम लड़के हो तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है।’ कई माता-पिताओं को अक्सर यह कहते सुना जाता है। इसी बात को तो बदलना है, जब कोई छोटा लड़का रोए या डरे तो उन्हें चुप कराएं, लेकिन उन्हें ये नहीं कहें कि लड़के रोते या डरते नहीं। भावनाएं सब में होती है चाहे वो लड़का हो या लड़की, इसलिए इसमें कोई शर्म नहीं कि बेटे रोते या डरते हैं। जरूरत है, तो उन्हें सही सीख देने की।

सख्त होने के साथ-साथ संवेदनशील बनाएं

सख्त होने के साथ-साथ संवेदनशील बनाएं
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इसमें कोई बुराई नहीं कि आप बेटे को सख्त और मजबूत होना सिखाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बच्चे जोर आजमाने के लिए खिलौनों को तोड़ना सीखने लगते हैं और धीरे-धीरे यह उनकी आदत बन जाती है। अब ऐसे में यह माता-पिता की ड्यूटी है कि वो बच्चों को संवेदनशीलता के बारे में भी सिखाएं। अगर आपका बेटा किसी खिलौने को मजे के लिए तोड़ता है या गुड़िया से खेलने से इंकार कर उसे फेंकता है, तो उसे समझाएं कि ये चीजें कितनी महत्वपूर्ण है। उन्हें अपनी चीजों को ठीक से रखना और संभालना सिखाएं। यह सीख उसे भविष्य में अपना जीवन व्यवस्थित करने में मदद करेगी।

भाई-बहन में अंतर न करें 

भाई-बहन में अंतर न करें 
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बच्चे वही करते हैं, जो वो देखते हैं। इसलिए, यह माता-पिता की जिम्मेदारी है कि भाई-बहन में अंतर न करें। बेटे को ये पाठ न पढ़ाएं कि आगे चलकर उनको ही हेड ऑफ दी फैमिली बनना है या उन्हें ही परिवार की जिम्मेदारी लेनी है। साथ ही सिर्फ भाई की उपयोग की हुई चीजें ही बहन को न दें, बल्कि बहन के खिलौनों को भी भाई को दें, ताकि बच्चे के मन में बराबरी की बातें शुरुआत से ही विकसित होने लगें।

करियर का चुनाव

करियर का चुनाव
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जरूरी नहीं कि अगर वो लड़का है तो वो डॉक्टर या इंजीनीयर ही बनेगा। अगर आपका बेटा शेफ या कोरियोग्राफर बनना चाहता है, तो उसे प्रोत्साहित करें। ये न कहें कि ‘ये सब तो लड़कियों की करने की चीजें हैं।’

लड़कियों के परवरिश के लिए

खिलौने का चुनाव 

खिलौने का चुनाव 
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जैसे लड़कों के लिए खिलौने मायने रखते हैं, वैसे ही लड़कियों के लिए भी खिलौने अहम होते हैं। इसलिए, अगर आपकी बेटी वीडियो गेम या फुटबॉल की चाहत रखती है, तो उसे ये कहकर न टालें कि बेटा ये तो लड़कों की खेलने की चीजें हैं तुम क्या करोगी लेकर। उनकी पसंद का ख्याल रखें और उन्हें बिना किसी झिझक वो खिलौने दें।

शब्दों का चुनाव ध्यान से करें

शब्दों का चुनाव ध्यान से करें
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तुम तो मेरी राजकुमारी हो’, ‘तू तो मेरा शेर बेटा है’ क्यों लड़की शेरनी नहीं हो सकती, राजकुमारी ही क्यों? इस तरह के जेंडर बेस्ड शब्दों से बचें। अपनी बेटी के लिए भी ‘शेर बेटा’, ‘स्मार्ट गर्ल’, ‘स्ट्रॉन्ग लेडी’ जैसे शब्दों का चयन कर उन्हें प्रोत्साहित करें और उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ाएं।

मजबूत बनाएं 

मजबूत बनाएं 
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हमेशा कहा जाता है कि मानसिक तौर पर महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मजबूत और सहनशील होती हैं। तो क्यों न बचपन से ही उन्हें शारीरिक तौर पर भी मजबूत बनाया जाए। उन्हें बचपन से ही कराटे क्लास, स्पोर्ट्स और अन्य इस तरह की चीजों के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि वो आत्मनिर्भर बन सकें। वैसे भी आज के दौर में हर लड़की को सेल्फ डिफेंस आना ही चाहिए।

रोक-टोक न लगाएं 

रोक-टोक न लगाएं 
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कई बार लड़कियों को कहा जाता है, ‘ये मत करो, वो मत करो, लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे’, तो अब इस तरह की बातों पर रोक लगाएं। उन्हें डराए नहीं, बल्कि माता-पिता होने के नाते उन्हें बताएं कि आप उनके साथ हमेशा हैं। आपके लिए वो बेटी नहीं बल्कि बेटा हैं और जितनी आजादी उनके भाई को मिलती है उतनी ही उन्हें भी मिलेगी। अगर उनसे कोई गलती होती भी है, तो आप माता-पिता होने के नाते उन्हें सही तरह से गाइड करेंगे। समाज के नाम पर उन्हें डराने की जरूरत नहीं, क्योंकि उनके साथ उनके माता-पिता भी हैं। उन्हें अपना काम खुद करने की आजादी दें।

करियर का चयन 

करियर का चयन
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आपकी बेटी अगर क्रिकेटर, फुटबॉलर, बॉक्सर व पत्रकार बनना चाहती है, तो उस पर अंकुश न लगाएं, बल्कि उसे प्रोत्साहित करें। वह कोई भी करियर चुनना चाहे उसका पूरा सहयोग करें। बेटे की तरह ही बेटी को भी पढ़ने-बढ़ने और आजादी से अपना करियर चुनने का पूरा मौका दें।

बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए माता-पिता को अपने मन से भेदभाव को खत्म करना होगा। हमेशा याद रखें कि समाज किसी और से नहीं, बल्कि हमसे ही बनता है इसलिए बदलाव भी अपने आप से ही शुरू करना जरूरी है। बेटे और बेटी को एक-दूसरे का सम्मान करना सिखाएं, ताकि बेहतर समाज का निर्माण हो सके। ऐसा करने पर सही मायनों में महिलाओं को बराबरी का हक मिलेगा।

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Arpita Biswas
Arpita Biswasब्यूटी एंड लाइफस्टाइल राइटर
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