शादी से पहले काउंसिलिंग के हो सकते हैं ये फ़ायदे
In This Article
शादी सभी के जीवन का एक महत्वपूर्ण फैसला होता है। शादी दो लोगों के बीच जुड़ने वाला एक पवित्र बंधन होता है जिसे उन्हें जीवन भर निभाना होता है। हालाँकि कई बार आपसी तालमेल ठीक तरह से न होने के कारण झगड़े होने लगते हैं। फिर पति-पत्नी का तलाक तक होने की नौबत आ जाती है। प्रेम विवाह हो या सुसंगत विवाह (अर्रेंज मैरिज) लड़का और लड़की दोनों को कुछ समझौते करने पड़ते हैं जिसका उन्हें पहले से पता होना चाहिए। इसलिए अच्छा होगा कि आप शादी से पहले किसी काउंसिलर से विशेष राय-परामर्श करें।
हो सकता है आपका मानना हो की घर के बड़े-बुज़ुर्ग या माता-पिता की राय ही सही है। लेकिन आप ये मत भूलें कि परिवार वाले कहीं न कहीं भावनात्मक रूप से सोचकर फैसले लेते हैं जो पूरी तरीक़े से सही नहीं भी हो सकते हैं। इसलिए आजकल शादी से पहले मन में होने वाले उलझनों को सुलझाने के लिए आप काउंसलिंग का सहारा ले सकते हैं। अगर शादी से पहले आप और आपके भावी साथी के बीच कुछ बातें स्पष्ट हो जायें तो आने वाली नयी ज़िंदगी आसान और सुखमय हो सकती है। इसलिए आज इस लेख में हम शादी से पहले काउंसलिंग लेने के फ़ायदों के बारे में आपको बता रहे हैं।
१. रिश्ते को शुरू से ही समझने लगते हैं
काउंसलिंग के दौरान आप और आपके भावी साथी एक दूसरे के बारे में छोटी-छोटी बातें जानने लगते हैं। सुसंगत विवाह में काउंसलिंग के द्वारा आप और आपके भावी साथी को एक दूसरे की पसंद-नापसंद, ज़रूरतें और कई छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातें जानने और समझने का मौका मिलता है।
अगर बात करें प्रेम विवाह की तो हो सकता है इसमें आपको और आपके भावी साथी को एक दूसरे के बारे में पहले से ही बहुत कुछ पता हो। जैसे – एक दूसरे का स्वभाव कैसा है, पसंद-नापसंद और कई अन्य बातें। लेकिन फिर भी हो सकता है कुछ छोटी-छोटी बातें आपको साथ रहने के बाद ही पता चले।
इसलिए दोनों ही मामलों में काउंसलिंग मददगार साबित हो सकती है। काउंसलिंग के दौरान आप और आपका भावी साथी कुछ ज़िम्मेदारियों के बारे में पहले से ही जानने लगते हैं। आप दोनों एक दूसरे को और एक दूसरे के कामों को पहले से ही थोड़ा बहुत समझने लगेंगें। पहले से ही योजना बना सकते हैं कि शादी के बाद कैसे ज़िम्मेदारियों को आपस में बाँटा जा सकता है। ऐसा करने से आपको शादी के बाद घर संभालने में ज़्यादा दिक्कतें नहीं आयेंगी। और आगे चलकर आपसी मतभेद होने की संभावना कम होगी।
२. चिंता होती है कम
शादी से पहले जैसे आपके मन में कई चिंताएं चलती हैं वैसे ही आपके भावी साथी के मन में भी कई बातें होती है। आप दोनों को एक नया परिवार और नये रिश्ते मिलने वाले होते हैं। इसको लेकर मन में थोड़ी घबराहट और उलझन भी होती है। आप बे-झिझक अपने मन की बात और चिंताओं को काउंसिलर के सामने रख सकते हैं। इन्हीं उलझनों को सुलझाने में काउंसिलर मदद करता है।
३. आर्थिक स्थिति या बचत की बात
शादी से पहले आपकी ज़िंदगी स्वतंत्र होती है और आप अपनी ज़िंदगी के मज़े लेने के आदि होते हैं। पैसे की परवाह न करते हुए आप अक्सर ज़्यादा ख़र्च कर बैठते हैं। हालाँकि शादी के बाद ऐसा करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्योंकि तब आप पर पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी होती है। इसलिए आपको और आपके भावी साथी को घर के ख़र्चों के बारे में पहले से ही बात कर लेनी चाहिए। इसके बारे में भी आप दोनों काउंसिलर से बात कर सकते हैं। अगर आप दोनों में से कोई एक ज़्यादा ख़र्चीला है तो उसके बारे में भी काउंसिलर के सामने विचार-विमर्श करके समाधान निकाला जा सकता है।
४. परिवार के बारे में भी होती हैं बातें
शादी से पहले आप और आपका भावी साथी अपने-अपने परिवार के बारे में सोचते हैं लेकिन शादी के बाद आप दोनों को ही नया परिवार मिलता है। इसलिए काउंसलिंग के दौरान दोनों को एक दूसरे के परिवार को लेकर भी कई बातें सिखायी जाती है। जैसे अगर लड़की अपने माता-पिता और घर को छोड़कर एक नये घर को अपनाती है तो लड़के को भी लड़की के माता-पिता को अपने माता-पिता जैसे ही समझना चाहिए। दोनों को ही एक दूसरे के परिवार के बीच तालमेल बिठाकर चलने की बातें बताई जाती हैं। अगर आप दोनों के बीच किसी बात को लेकर मतभेद है या परिवार के किसी सदस्य को लेकर कोई धारणा है तो उसके बारे में काउंसिलर के सामने बात करें।
५. एक दूसरे के स्वभाव के बारे में बातचीत
काउंसिलिंग के दौरान आप और आपके भावी साथी के स्वभाव के बारे में बातचीत होती है। अगर आप दोनों का गुसैल स्वभाव है तो कैसे उस पर काबू पायें? अगर आप दोनों में से किसी एक का स्वभाव बात-बात पर गुस्सा होने का है तो दूसरा व्यक्ति उसे कैसे संभाले? एक दूसरे से और एक दूसरे के परिवार से कैसे बात करें? अगर दोनों में से किसी को कोई बुरी आदत है तो उसके बारे में भी काउंसिलिंग के दौरान खुलकर बात करने से मसला काफ़ी हद तक हल हो सकता है।
६. हिचकिचाहट से उभारना
अगर अतीत की कोई बात है जिसे साझा करने में आपको हिचक हो रही है तो वो बात काउंसिलिंग के दौरान रखी जा सकती है। ऐसा करने से मन में उथल-पुथल नहीं होगी और मन शांत होगा। आप दोनों के बीच विश्वास का रिश्ता बनेगा। याद रखें – बात करने से ही बात बनती है।
नये रिश्ते की शुरुआत करने से पहले माता-पिता और घर के अन्य सदस्यों की राय ज़रूरी होती है लेकिन अगर इसी में काउंसिलर की राय जुड़ जाये तो आगे का नया जीवन और सुखमय हो सकता है।
Community Experiences
Join the conversation and become a part of our vibrant community! Share your stories, experiences, and insights to connect with like-minded individuals.